बिलासपुर: दुनिया मे जितने मंदिर उतनी ही अलग कहानी है, उतनी ही मान्यता भी है। वहीं, देवी देवताओं को प्रसन्न करने मंदिरों में अलग-अलग भोग भी चढ़ाए जाते हैं। जहां एक ओर कलकत्ता की मां काली को मछली चढ़ाया जाता है, तो वहीं राजस्थान के मेंहदीपुर स्थित बालाजी को जलेबी चढ़ाया जाता है। इसी परिसर में दुनिया का इकलौता प्रेतराज का भी मंदिर है, जहां चावल से बने लड्डू चढ़ाए जाते हैं। इन मंदिरों की कहानी फिर कभी बताएंगे। लेकिन ये बताना इसलिए भी जरूरी था क्योंकि आज हम आपको माता के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां भक्त माता को मिर्ची भजिया, दही- बड़ा, सेव, गठिया, इमरती जलेबी और खारे चरपरे भोग चढ़ाते हैं। एक मान्यता ऐसी भी है कि यहां माता के चरणों मे चिट्ठी लिखकर अपनी समस्या बताने से महज 3 दिन में मुक्ति मिल जाती है। आइए जानते हैं क्या है इस मंदिर की मान्यता और कहां स्थित है, माता का यह मंदिर।
हम बात कर रहे हैं बिलासपुर के चिंगराजपारा स्थित श्रीमाई धूमावती पीताम्बर पीठम मंदिर की। यहां विराजमान हैं मां धूमावती। यह दुनिया की इकलौती देवी है। जिन्हें श्रद्धालु प्रसन्न करने के लिए मिर्ची भजिया, दही बड़ा, सेव, गाठिया सहित खारे चरपरे भोग चढ़ाते हैं और देवी मां की चरणों में रखी सुपा पर अपनी मनोकामना और मनचाही मुराद को कागजों पर लिखकर चिट्ठी उनके सुपा में छोड़ देते हैं। जिन्हें मां निर्मल मन से सहर्ष स्वीकार करती है और अपने भक्तों की मुराद केवल चिट्ठी में लिखी हुई बातों से ही पूरी करती है। इस देवी मां की महिमा जितनी ही निराली है। उतनी ही देवी मां विनम्र है इस देवी मां का श्रृंगार सफेद साड़ी, साल, सफेद पुष्प, सफेद चंदन है, और अस्त्र सूपा है। इसी तरह मां का वाहन काला कौवा है, जो कि अब तक आपने ना ही कहीं इस कौवे की सवारी वाली कहानी को कहीं ना तो सुनी होगी और ना ही कहीं देखी होगी। यहां मां धूमावती की मूर्ति लगभग 2 फीट की है, जिसमें देवी मां विधवा, वृद्ध रूप में बैठी हुई वरदायिनी अभयमुद्रा स्वरूपा है।
यहां के पुजारी पंडित देवानंद गुरुजी बताते हैं कि बिलासपुर के चिंगराजपारा स्थित मंदिर साल 1985 में मां दुर्गा, भगवान शिव जी, हनुमान जी आदि देवी-देवताओं का मंदिर स्थापित था। इस दौरान इलाहाबाद के चंडी पत्रिका के संपादक रमादत्त शुक्ल की पत्रिका प्रकाशित होती थी, जिसमें मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित मां धूमावती के मंदिर की महिमा विशेष रूप से लिखी हुई होती थी। उक्त पत्रिका में मां धूमावती की महिमा पढ़कर पंडित देवानन्द ने भी माता धूमावती की आराधना करने की ठान ली और दतिया स्थित माता के दरबार पहुंच गए। इसके बाद पंडित देवानंद गुरुजी साल 1990 से 2003 तक अनवरत कुछ लोगों के साथ दतिया जाकर माता की आराधना व साधना करते थे, वहीं माता को प्रसन्न करने के लिए अनुष्ठान करते थे। देवानंद को साल 2003 में एक प्रेरणा प्राप्त हुई। देवानन्द का कहना है कि माता ने हमें प्रेरणा दी कि आप लोगों को मेरे आशीर्वाद और अनुष्ठान के लिए यहां इतनी दूर आने की जरूरत नहीं है, बल्कि मैं स्वयं चिंगराजपारा में स्थापित होना चाहती हूं। माता से प्रेरणा मिलने के बाद पंडित देवानंद ने कई राज्यों से जैसे इलाहाबाद, काशी, बनारस, मुजफ्फरपुर दतिया और बिलासपुर से विद्वान महंतों को बुलाकर बसंत पंचमी के दिन माता धूमावती की स्थापना की। माता की स्थापना के लिए अलग-अलग राज्यों से आए महंत अनवरत 11 दिन तक अनुष्ठान करते रहे। तब जाकर मां धूमावती के मंदिर की स्थापना इस परिसर में की गई।
ऐसा माना जाता है साल 1962 में जब भारत और चीन के बीच जंग छिड़ी थी तो मध्यप्रदेश राज्य के दतिया जिले के पुजारी व राष्ट्रगुरु स्वामी जी महाराज ने एक अनुष्ठान कर माता से भारत देश की रक्षा के लिए आव्हान कर मां धूमावती यज्ञ का आयोजन कर अर्जी लगाई थी। पुजारी के अनुष्ठान से प्रसन्न होकर माता प्रकट हुईं और पुजारी की अर्जी के अनुरूप सीमा पर जाकर चीनी घुसपैठियों को खदेड़ दिया था। इसके बाद से ऐसा माना जाता है कि जो कोई भी माता के पास अपनी समस्या लेकर पहुंचते हैं उनकी समस्या का समाधान महज 3 दिन में पूरी हो जाती है।
मां धूमावती के दरबार को लेकर श्रद्धालु प्रतिभा पाठक ने बताया कि वे मां धूमावती के मूर्ति स्थापना से ही मंदिर से जुड़ी हुई है। उन्होंने बताया कि मैं डॉक्टर्स फैमिली से बिलॉन्ग करती हूं, इसलिए घर मे पूजा का ज्यादा कल्चर नहीं है। लेकिन मैंने जब से यहां आना शुरू किया, मानो मेरी समस्या और आर्थिक परेशानी दोनों ही कम होने लगी। तब से मेरी आस्था और विश्वास इस मंदिर की देवी मां धूमावती के लिए बढ़ गई। मां धूमावती मनोंकामना और महामोक्ष कि देवी है। अब तक कोई भी श्रद्धालु इनके दरबार से खाली झोली नहीं लौटा है। मैं हर शनिवार को घर से प्याज भजिया और मिर्ची भजिया बनाकर भोग लाती हूं, मैं अन्य दिन मंदिर आऊं या ना आऊं लेकिन शनिवार को विशेष रूप से मां धूमावती के दर्शन और आशीर्वाद लेने आती हूं।
श्रद्धालु प्रतिभा पाठक ने आगे बताया कि मां धूमावती के नाम की एक कथा है कि एक समय जब भगवान शिव तपस्या में लीन थे, उस दौरान मां पार्वती को जोरों से भूख लगी। तब उन्होंने भगवान शिव से आग्रह किया कि मुझे भूख लगी है, इस पर भगवान शिव ने एक से दो बार मां पार्वती को रुकने के लिए कह दिया। लेकिन भूख इतनी तेज थी कि मां पार्वती क्रोधित हो गई और उन्होंने अपना मुंह खोल कर और सबको निगलना शुरू कर दिया। इसे देखकर भगवान शिव हैरान हुए और मां पार्वती के ठीक सामने खड़े हो गए, उन्हें ये लगा कि शायद मां पार्वती के सामने खड़े होने से उनका क्रोध शांत हो जाएगा। लेकिन मां पार्वती इतनी क्रोधित थी कि उन्होंने भगवान शिव को ही निगल लिया। वहीं थोड़ी देर बाद जब मां पार्वती का क्रोध शांत हुआ, तब उन्हें इस बात का पश्चाताप होने लगा कि उससे बड़ी भूल हो गई है। बेचैन होकर इधर-उधर भगवान शिव को ढूंढने लगी थी। सभी भगवान शिव ने मां पार्वती के भीतर से आवाज दिया कि पार्वती मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहुंगा और जब तक तुम रहोगी तब तक मैं रहूंगा। इस पर मां पार्वती विधवा व वृद्ध रूप धारण कर ली और भगवान शिव मां पार्वती के मुख से धूएं के रूप में बाहर निकले। तब भगवान शिव ने कहा कि पार्वती तुम धूमे में भी बहुत सुंदर लग रही हो। तबसे मां पार्वती का नाम धूमावती के रूप में प्रचलित हुआ।
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