अजब-गजब प्रथा! यहां बेटियां नहीं बेटों की होती है विदाई, महिलाओं को मिलती है एक से ज्‍यादा शादी की छूट

Ladko ki bidai यहां बेटियां नहीं, बेटे होते हैं पराया धन, शादी के बाद बेटे की होती है विदाई, बेटी को मिलती है पूरी संपत्ति

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  • Publish Date - January 20, 2023 / 05:40 PM IST,
    Updated On - January 20, 2023 / 05:46 PM IST

Ladko ki bidai: लड़कियों को शुरू से ही पराया धन कहा जाता है। आज तक आपने शादियों में लड़कियों की विदाई देखी होगी। शादी कर लड़कियों को पराए घर जाना ही पड़ता है। लेकिन आज हम आपको ऐसी जगहों के बारे में बताएंगे जहां लड़कियों को वो सारे अधिकार दिए जाते है जो पूरी दुनिया में एक लड़के को मिलते है। भारत के मेघालय, असम व बांग्‍लादेश के कुछ इलाकों में रहने वाली खासी जनजाति में इसके उलट बेटियों को ज्‍यादा तरजीह दी जाती है। इस जनजाति में बेटियों के जन्‍म पर जश्‍न मनाया जाता है, जबकि बेटे को होने पर कुछ खास आयोजन नहीं होता है।

बेटे होते है पराया धन

Ladko ki bidai:खासी जनजाति में बेटों को पराया धन माना जाता है। वहीं, बेटियों और माताओं को भगवान के बराबर मानकर परिवार में सबसे ऊंचा दर्जा दिया जाता है। यह जनजाति पूरी तरह से बेटियों के प्रति समर्पित है। यह जनजाति उन तमाम समुदायों और क्षेत्रों के लिए मिसाल है, जो बेटियों के जन्‍म पर दुखी हो जाते हैं। आज भी बड़ी आबादी ऐसी है, जो बेटियों को बोझ मानती है। हालांकि, अब धीरे-धीरे ही सही लोगों की धारणा में बदलाव हो रहा है। खासी जनजाति में लड़कियों को लेकर कई ऐसी परंपराएं और प्रथाएं हैं, बाकी भारत के उलट हैं।

सबसे छोटी बेटी को मिलता है ज्यादा हक

Ladko ki bidai:खासी जनजाति में शादी के बाद लड़के लड़कियों के साथ ससुराल जाते हैं। दूसरे शब्‍दों में कहें तो लड़कियां जीवनभर अपने माता-पिता के साथ रहती है, जबकि लड़के अपना घर छोड़कर ससुराल में घर जमाई बन जाते हैं। इसे खासी जनजाति में अपमान की बात नहीं माना जाता है। इसके अलावा खासी जनजाति में बाप-दादा की जायदाद लड़कों के बजाय लड़कियों को मिलती है। एक से ज्‍यादा बेटियां होने पर सबसे छोटी बेटी को जायदाद का सबसे ज्‍यादा हिस्‍सा मिलता है। खासी समुदाय में सबसे छोटी बेटी को विरासत का सबसे ज्यादा हिस्सा मिलने के कारण उसे ही माता-पिता, अविवाहित भाई-बहनों और संपत्ति की देखभाल करनी पड़ती है।

महिलाओं कर सकती है 1 से ज्यादा शादियां

Ladko ki bidai:खासी जनजाति में महिलाओं को कई शादियां करने की छूट मिली हुई है। यहां के पुरुषों ने कई बार इस प्रथा को बदलने की मांग की है। उनका कहना है कि वे महिलाओं को नीचा नहीं दिखाना चाहते और ना ही उनके अधिकार कम करना चाहते हैं, बल्कि वे अपने लिए बराबरी का अधिकार चाहते हैं। खासी जनजाति में परिवार के सभी छोटे-बड़े फैसलों में महिलाओं की ही चलती है। यहां महिलाएं ही बाजार और दुकान चलाती हैं। बच्चों का उपनाम भी मां के नाम पर रखा जाता है। इस समुदाय में छोटी बेटी का घर हर रिश्तेदार के लिए हमेशा खुला रहता है। मेघालय की गारो, खासी, जयंतिया जनजातियों में मातृसत्तात्मक व्‍यवस्‍था होती है। इसलिए इन सभी जनजातियों में एक जैसी व्‍यवस्‍था होती है।

तलाक के पिता का नहीं रहता अधिकार

Ladko ki bidai: खासी समुदाय में विवाह के लिए कोई खास रस्म नहीं होती है। लड़की और माता पिता की सहमति होने पर लड़का ससुराल में आना-जाना तथा रुकना शुरू कर देता है। इसके बाद संतान होते ही लड़का स्थायी तौर पर अपनी ससुराल में रहना शुरू कर देता है। कुछ खासी लोग शादी करने के बाद विदा होकर लड़की के घर रहना शुरू कर देते हैं। शादी से पहले बेटे की कमाई पर माता-पिता का और शादी के बाद ससुराल पक्ष का अधिकार रहता है। शादी तोड़ना भी यहां काफी आसान होता है। तलाक के बाद संतान पर पिता का कोई अधिकार नहीं रहता है।

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