Bundelkhand Drinking Water Crisis: चित्रकूट। पूरे देश में आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है, लेकिन बुंदेलखंड में आजादी के 75 वर्ष बीत जाने के बाद भी लोग बूंद-बूंद पानी के लिए मोहताज हैं, यहां एक गांव में लड़कों के लिए पानी की समस्या अभिशाप तक बन गई है, पानी की परेशानी ऐसी भयावह है कि गांव में कोई अपनी बेटी का ब्याह तक करना नहीं चाहता।>>*IBC24 News Channel के WhatsApp ग्रुप से जुड़ने के लिए Click करें*<<
दरअसल, बुंदेलखंड में पानी की समस्या काफी पुरानी है, कई सरकारों ने इसके लिए करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाए, लेकिन पानी की समस्या जस की तस बनी हुई है, सूरज की तपन बढ़ते ही नदी, नाले पोखर और तालाब सूखने लगते हैं और पानी का जलस्तर भी नीचे गिरने लगता है, जिसकी वजह से आम जन मानस के साथ साथ बेजुबान भी बूंद-बूंद पानी के लिए तरसने लगते हैं।
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हम बात कर रहे हैं बुंदेलखंड के चित्रकूट जिले की, जहां मानिकपुर तहसील के तहत आने वाले दर्जनों गांव में हमेशा पानी की समस्या बनी रहती है, लेकिन गर्मी की शुरुआत होते ही ग्रामीण बूंद-बूंद पानी के लिए तरसने लगते हैं, करोड़ों रुपये खर्च कर देने के बाद भी पाठा में यह समस्या पहले की तरह ही मुंह बाये खड़ी है। जैसे-जैसे गर्मी की तपन बढ़ती है यहां ज़्यादातर गांव के जलश्रोत सूख जाते हैं और महिलायें मीलों पैदल चलकर मुश्किलों से भरी गगरी सिर पर रखकर लाती है। महिलाएं पानी को अपने पति से भी ज़्यादा मूल्यवान समझती हैं। पेयजल का यह संकट एक बार फिर भयावह रूप धारण कर चुका है।
अप्रैल खत्म होते ही मई-जून महीने की जैसे शुरुवात होती है वैसे वैसे सभी जल स्रोत सूख जाते है और इस सूरज की इस तपन को सहकर पाठा की महिलायें मीलों पैदल चलकर अपने सर में भारी वजन वाले बर्तन रख कर पानी लाती है, शायद इसीलिये पाठा में कहावत है ‘एक टक सूप – सवा टक मटकी, आग लगे रुखमा ददरी, भौरा तेरा पानी ग़ज़ब करी जाए, गगरी न फूटै, चाहै खसम मर जाय। यह पानी यहां के निवासियों के लिये अमृत के समान होता है। महिलाएं तो पानी को पति से भी ज़्यादा मूल्यवान समझती है।
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चित्रकूट जिले की तहसील मानिकपुर अन्तर्गत में आने वाले जमुनिहाई, गोपीपुर, खिचड़ी, बेलहा, एलाहा, उचाडीह गांव,अमचूर नेरुआ, बहिलपुरवा, जैसे दर्जनों गांवों के हजारों ग्रामीणों को पेयजल संकट की त्रासदी ज़्यादा नजदीक से दिखाई पड़ती है। शायद इसलिए कोई अपनी बेटियों की शादी इस गांव में नहीं करना चाहता है। यही कारण है कि गांव में दर्जनों लड़के शादी की आस में कुंवारे बैठे है कि कब पानी की समस्या खत्म हो और उनकी शादी हो जाये।
यहां के ज़्यादातर जलश्रोत सूख जाने की वजह से गर्मियों में पहाड़ों और जंगलों के किनारे बने चोहड़ों से किसी तरह अशुद्ध जल लाकर पीने की विवशता यहां के ग्रामीणों की नियति बन चुकी है, रात होते ही ग्रामीणों को सुबह पानी भरने जाने की चिंता सताने लगती है और देर रात उठकर अपनी बैलगाड़ी सजाकर उसमें पानी भरने वाले बर्तन को लेकर निकल पड़ते हैं। पानी की तलाश में और मीलों दूर जाकर इस दूषित पोखर के पानी से अपने पूरे परिवार की प्यास बुझाते हैं। आजादी के कई दशकों बाद भी पाठा में बसने वाले कोल आदिवासी आज भी मूलभूत सुविधाओ से वंचित हैं।
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ग्रामीणों की माने तो उन्हें पानी के लिए गर्मी के महीने में काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है, जान जोखिम में डालनी पड़ती है, जंगलों से होकर पानी लेने जाना पड़ता है, उनकी पूरी उम्र बीती जा रही है लेकिन पानी की समस्या खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। यही वजह है कि उनके गोपी पुर गांव में कोई बेटी की शादी नहीं करना चाहता है और जिनकी शादी हो भी गयी है तो वह लोग इस गांव में शादी करवाकर बेहद पछता रही है। इसीलिए इस गांव में एक सैकड़ा से अधिक कुंवारे लड़के बैठे है जिनकी शादी नहीं हो रही है।
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