(शेन रोजर्स और शैनन मुइर, एडिथ कोवान यूनिवर्सिटी तथा कोल्टन स्क्रीवनर, एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी)
जूंडालूप (ऑस्ट्रेलिया)/फीनिक्स (अमेरिका), 30 अक्टूबर (द कन्वरसेशन) अजीबोगरीब कल्पनाएं, अत्यधिक हिंसा, भयभीत कर देने वाली उछलकूद तथा खतरनाक पात्र दर्शकों को डर का अनुभव कराते हैं। हम आम तौर पर अपने रोजमर्रा के जीवन में इन नकारात्मक भावनाओं से बचे रहना चाहते हैं, लेकिन फिर ऐसा क्या है कि कुछ लोग डरावनी (हॉरर) फिल्में देखना चाहते हैं और उन्हें ऐसी फिल्मों को देखकर मजा आता है।
डर से रोमांच पैदा हो सकता है:
डर और उत्तेजना की भावनाएं के बीच बहुत अधिक ‘ओवरलैप’ होता है, यानी दोनों एक साथ होती हैं। दोनों में, शरीर में तनाव से संबंधित हार्मोन निकलते हैं जो धड़कन और सांस लेने की दर में वृद्धि, पसीना और मांसपेशियों में तनाव जैसे शारीरिक लक्षण पैदा कर सकते हैं। लोग अधिक सतर्क भी महसूस करते हैं।
अनुसंधानों में लगातार यह बात सामने आई है कि भय और उत्तेजना जैसी गहन भावनात्मक अनुभवों की लालसा रखने वाले लोगों को डरावनी फिल्में देखने में मजा आता है।
लेकिन जो लोग अधिक डर जाते हैं, उनके लिए कूदने-फांदने से लगने वाला डर और हिंसक दृश्य बहुत तीव्र हो सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप लोग कहीं और दूर देखने लगते हैं या कानों पर हाथ रख लेते हैं। ऐसा तब अधिक होता है जब लोग फिल्म में अत्यधिक डूबे होते हैं।
हालांकि, अगर वे तीव्र भावनाओं का आनंद लेते हैं, तो उन्हें डरावनी फिल्म के दृश्य अब भी रोमांचकारी हो सकते हैं।
राहत की भावना:
किसी डरावनी फिल्म में भयानक दृश्य के गुजरने के बाद लोगों को राहत महसूस होती है। हॉरर फिल्में देखना भावनात्मक उतार-चढ़ाव वाला हो सकता है जहां डर का तूफान पैदा होता है तो राहत का क्षण भी आता है।
ये फिल्में डरावनी चीजों के प्रति हमारी जिज्ञासा को शांत करती हैं:
कई डरावनी फिल्मों में अलौकिक शक्तियों को दिखाया जाता है और जॉम्बी तथा वैंपायर जैसे पात्र होते हैं।
हिंसा, मृत्यु, विनाश और वीभत्स तत्व जिज्ञासु लोगों को उन चीजों का पता लगाने के लिए एक सुरक्षित स्थान प्रदान कर सकते हैं जो वास्तविक दुनिया में सुरक्षित (या सामाजिक रूप से उपयुक्त) नहीं हैं।
हम हमारी सीमाएं तय कर सकते हैं:
डरावनी फिल्में हमारे गहरे डर को प्रतिबिंबित कर सकती हैं और भय तथा घृणा की हमारी व्यक्तिगत सीमाओं के बारे में आत्मनिरीक्षण कर सकती हैं।
इसलिए कुछ लोग अपनी सीमाओं को बेहतर ढंग से समझने के लिए उन्हें देखने का आनंद ले सकते हैं।
डरावनी फिल्में देखना व्यक्तिगत सीमाओं को विस्तार देने का एक तरीका भी हो सकता है, जिससे वास्तविक जीवन में चीजें कम डरावनी या घृणित हो सकती हैं।
हममें से एक (कोल्टन) के द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह बात सामने आई कि हॉरर फिल्मों के प्रशंसकों को ऐसी फिल्मों का शौक नहीं रखने वाले लोगों की तुलना में कोविड महामारी के शुरुआती महीनों में कम मनोवैज्ञानिक तनाव हुआ।
ये फिल्में सामाजिक हो सकती हैं:
कुछ लोगों का कहना है कि हॉरर फिल्में दूसरे लोगों के साथ देखना सामाजिक पहलू से जुड़ा हो सकता है। दूसरों के साथ फिल्म देखते हुए लोगों में सुरक्षा का भाव हो सकता है।
ये फिल्में दूसरों के दुख में हमें सुख का एहसास कराती हैं:
डरावनी फिल्मों को देखते हुए लोग उनके पात्रों के साथ होने वाली कुछ अनहोनी घटनाओं पर खुशी का भाव महसूस कर सकते हैं। ऐसा तब अधिक होता है जब हमें लगता है कि अनहोनी जिसके साथ हो रही है, वह उसके लायक ही है।
इस सब से क्या मतलब निकाला जा सकता है?
डरावनी फिल्में हमें काल्पनिक सुरक्षा के माध्यम से अपने गहरे डर का सामना करने देती हैं।
लोग कई अलग-अलग कारणों से उनका आनंद लेते हैं।
हालांकि, यह निश्चित है कि डरावनी फिल्मों की लोकप्रियता बढ़ रही है, जिनमें से चुनने के लिए बहुत कुछ है।
(द कन्वरसेशन) वैभव माधव
माधव
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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