जब दवाएं नहीं काम करतीं:उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों के अंत से दवा के प्रति प्रतिरोधकता घटेगी |

जब दवाएं नहीं काम करतीं:उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों के अंत से दवा के प्रति प्रतिरोधकता घटेगी

जब दवाएं नहीं काम करतीं:उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों के अंत से दवा के प्रति प्रतिरोधकता घटेगी

:   Modified Date:  October 9, 2024 / 04:13 PM IST, Published Date : October 9, 2024/4:13 pm IST

(फ्रांसिस्का मुतापी, एडिनबर्ग विश्वविद्यालय)

एडिनबर्ग (ब्रिटेन), नौ अक्टूबर (द कन्वरसेशन) हमारे समय में स्वास्थ्य की प्रमुख चुनौती संक्रमण के इलाज के दौरान दवाओं का काम न करना है। ऐसा तब होता है जब संक्रमण पैदा करने वाले कारक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी हो जाते हैं जिसमें बैक्टीरिया, वायरस या कवक शामिल है।

‘एंटीमाइक्रोबियल’ में कई औषधियों को शामिल किया जाता है जो सूक्ष्मजीवों जैसे कि बैक्टीरिया, कवक, वायरस या परजीवियों को खत्म करने का काम करती है। उदाहरण के लिए ‘एंटीबायोटिक्स’ एक प्रकार का ‘एंटीमाइक्रोबियल’ है जो बैक्टीरिया को खत्म करने का काम करता है।

इसलिए जब हमारे शरीर में ‘एंटीमाइक्रोबियल’ के प्रति प्रतिरोध उत्पन्न हो जाता है तो ऐसे में कई प्रकार के संक्रमणों का इलाज करना या उन्हें रोकना कठिन हो जाता है।

‘एंटीबायोटिक्स’ का सेवन करने से पैदा हुई प्रतिरोधक क्षमता के कारण टीबी के उपचार के लिए ली जाने वाले दवाइयों का भी असर नहीं होता है। इसका अन्य इलाजों पर भी असर पड़ता है जैसे सर्जरी या कैंसर का उपचार।

‘एंटीमाइक्रोबियल’ के कारण पैदा हुई प्रतिरोधक क्षमता का मुख्य कारण इसका मनुष्यों, पशुओं और पौधों में अत्यधिक प्रयोग और दुरुपयोग किया जाना है।

एंटीमाइक्रोबियल के कारण पैदा हुई प्रतिरोधक क्षमता के कारण अफ्रीका में अन्यत्र की तुलना में अधिक मौतें और बीमारियां होती हैं। साल 2019 में वैश्विक स्तर पर एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध से हुई संबंधित मौतों में से 21 प्रतिशत मौतें अफ्रीका में हुईं। उस वर्ष अफ्रीका में साढ़े 10 लाख से अधिक मौतें एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध से जुड़ी थीं। यह स्वास्थ्य के लिए एक खतरे की तरह है।

चिंताजनक बात यह है कि एंटीमाइक्रोबियल लेने से उत्पन्न हुई प्रतिरोधक क्षमता के चलते इससे जुड़ी मौतों में वैश्विक स्तर पर वृद्धि होने का अनुमान है और अफ्रीका में यह नजर भी आ रहा है। उदाहरण के लिए, नये आंकड़ों से पता चला है कि सेफलोस्पोरिन (उनके इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एंटीबायोटिक) के प्रति प्रतिरोधी ई कोली संक्रमण बढ़ा है। इसमें बदलाव लाने के लिए उन बीमारियों के लिए कुछ समाधान ढूंढ़ने की जरुरत है जिसके लिए ‘एंटीमाइक्रोबियल’ लेने की जरुरत पड़ती है।

अफ्रीका में फैली कुछ संक्रामक बीमारियां वे हैं, जिन पर ध्यान नहीं दिया गया जिसमें उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (एनटीडी) शामिल हैं। उन्हें रोकने और यहां तक ​​कि उन्हें खत्म करने के लिए पहले से ही प्रभावी उपकरण मौजूद हैं। लेकिन हर साल, लाखों लोग संक्रमित होते हैं और एंटीमाइक्रोबियल का उपयोग करके उनका इलाज किया जाता है जिससे इनके प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है।

उष्णकटिबंधीय रोगों को नियंत्रित करने के लिए निवारक चिकित्सा, जल एवं स्वच्छता तथा रोग फैलाने वाले कारकों पर नियंत्रण किया जाना चाहिए। यहां तक ​​​​कि जिन देशों में उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग आम नहीं हैं, उन्हें वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा के हिस्से के रूप में ऐसी कोशिशें करनी चाहिए।

उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों पर नियंत्रण

ऐसी संक्रामक बीमारियां जिन पर ध्यान नहीं दिया जाता वे स्वास्थ्य के लिए लंबे समय तक परेशानी बन सकती हैं और ये आर्थिक चुनौतियों का भी कारण बन सकती हैं। उष्णकटिबंधीय रोग कीड़े, बैक्टीरिया, कवक और वायरस सहित विभिन्न रोगजनकों के कारण होते हैं। इनमें से छह बीमारियों का इलाज एंटीबायोटिक दवाओं से किया जाता है जिसमें बुरुली अल्सर, लीशमैनियासिस, लेप्रोसी, ऑन्कोसेरसियासिस, ट्रेकोमा और यॉज है।

विश्व स्तर पर, हर साल उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों से पीड़ित लाखों लोगों का उपचार एंटीमाइक्रोबियल से किया जाता है।

उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों को नियंत्रित करने के लिए सबसे प्रभावी निवारक कीमोथेरेपी है जिसमें कई दवाओं को देने की जरुरत पड़ती है। हालांकि, यह लागत और एंटीमाइक्रोबियल के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने के जोखिम के लिहाज से यह टिकाऊ नहीं है।

हालांकि, संक्रमण और बीमारी को कम करने के लिए निवारक कीमोथेरेपी एक आवश्यक और प्रभावी उपकरण है। 2012 से 60 करोड़ से अधिक लोगों को इस तरह से उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग संक्रमण से ठीक किया गया है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2022 की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर लगभग 1.7 अरब लोगों को निवारक कीमोथेरेपी की आवश्यकता है। इनमें से लगभग 60 करोड़ लोग अफ्रीका में हैं।

एंटीमाइक्रोबियल के प्रति प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ोतरी के लिए एक अन्य जोखिम यह भी है कि उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों के इलाज के लिए उपयोग किए जाने वाले एंटीबायोटिक्स का उपयोग अन्य संक्रमणों के इलाज के लिए भी किया जाता है।

उदाहरण के लिए, एजिथ्रोमाइसिन एंटीबायोटिक (ट्रेकोमा और यॉज के इलाज के लिए) का उपयोग ब्रोंकाइटिस, निमोनिया और यौन संचारित रोगों सहित अन्य जीवाणु संक्रमण के इलाज के लिए किया जाता है।

एंटीबायोटिक दवाओं से इलाज किए जाने वाले छह उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों में से पांच में दवाओं का असर न होना पहले ही देखा गया है। यह प्रवृत्ति और बढ़ेगी। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों को समाप्त किया जाए ताकि एंटीबायोटिक और एंटीमाइक्रोबियल का कम इस्तेमाल हो। इससे लोगों को अन्य ख़तरनाक संक्रमणों से भी बचाया जा सकता है।

उपलब्ध उपकरण

अच्छी खबर यह है कि उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों को खत्म करने के लिए उपकरण पहले से ही मौजूद हैं। पिछले दशक में 51 देशों ने कम से कम एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग को समाप्त कर दिया है।

जानवरों या कीटों (वेक्टर) द्वारा फैलने वाली बीमारियों को रोकने के लिए कीटों को नियंत्रित किया गया है। उदाहरण के लिए, ऑन्कोसेरसियासिस परजीवी फैलाने वाली मक्खियों या शिस्टोसोमियासिस के लिए घोंघा को मारना है।

इसी तरह, बीमारियों को कम करने के लिए साफ जल और स्वच्छता सुविधाएं उपलब्ध कराना भी महत्वपूर्ण है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2030 तक 100 देशों से कम से कम एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग को समाप्त करने का लक्ष्य रखा है। यह उन देशों के लिए एक बड़ी स्वास्थ्य और आर्थिक जीत होगी जहां ये बीमारियां ज्यादा हैं।

इससे एंटीमाइक्रोबियल के उपयोग में भी कमी आएगी।

(द कन्वरसेशन)

प्रीति संतोष

संतोष

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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