नींद की कमी के क्या हैं खतरे |

नींद की कमी के क्या हैं खतरे

नींद की कमी के क्या हैं खतरे

Edited By :  
Modified Date: September 11, 2024 / 05:58 PM IST
,
Published Date: September 11, 2024 5:58 pm IST

(एडम टेलर, लैंकेस्टर यूनिवर्सिटी)

लैंकेस्टर, 11 सितंबर (द कन्वरसेशन) रात में नींद पूरी न होने के बाद की थकान और बेचैनी से तो हम सभी वाकिफ होंगे। सोशल मीडिया पर कुछ उपयोगकर्ता ‘नो-स्लीप चैलेंज’ में हिस्सा लेकर कई दिन-रात जगकर गुजारने का रिकॉर्ड बनाने की होड़ में जुटे हैं।

नॉर्म (19) नाम के एक यू-ट्यूबर ने बिना सोए सबसे ज्यादा समय बिताने का विश्व रिकॉर्ड कायम करने की अपनी कोशिश साइट पर लाइव प्रसारित की थी। 250 घंटे का समय बीतने के बाद दर्शक नॉर्म की सेहत को लेकर चिंता जताने लगे, लेकिन वह नहीं रुका और 264 घंटे एवं 24 मिनट की अवधि ‘बिना सोए’ गुजार दी। इसके बाद यू-ट्यूब और किक जैसी सोशल मीडिया साइट ने उसे प्रतिबंधित कर दिया।

नॉर्म ने सबसे ज्यादा समय तक जगे रहने का गिनीज विश्व रिकॉर्ड तोड़ने का दावा किया, जो सही नहीं था। गिनीज बुक में यह विश्व रिकॉर्ड रॉबर्ट मैकडोनाल्ड के नाम दर्ज है, जिसने 1986 में 453 घंटे यानी लगभग 19 दिन बिना सोए बिताए थे।

गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने 1997 में सुरक्षा कारणों से सबसे लंबा समय बिना सोए गुजारने के रिकॉर्ड की निगरानी करना बंद दिया। यह एक सही कदम था। लंबे समय तक बिना नींद लिए रहना बेहद खतरनाक साबित हो सकता है।

वयस्कों को रोज रात को सात घंटे से अधिक समय की नींद लेने की कोशिश करनी चाहिए। पर्याप्त नींद लेने में लगातार असमर्थ रहने पर अवसाद, डायबिटीज, मोटापा, दिल का दौरा, उच्च रक्तचाप और स्ट्रोक जैसी जानलेवा स्थितियों का शिकार होने का जोखिम बढ़ जाता है।

नींद हमारी दिनचर्या का अहम हिस्सा है। यह हमारी शरीर की कई प्रणालियों को आराम करने और मरम्मत करने एवं नुकसान से उबरने में सक्षम बनाती है।

नींद के पहले तीन चरणों के दौरान पैरासिम्पेथेटिक तंत्रिका तंत्र सक्रिय होता है, जो पाचन क्रिया और आराम की अवस्था में जाने की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। इससे हृदयगति और रक्तचाप कम हो जाता है।

अंतिम चरण यानी रैपिड आई मूवमेंट (आरईएम) चरण में हृदय की गतिविधियां बढ़ जाती हैं और आंखें हरकत करती हैं। यह चरण रचनात्मकता, सीखने की क्षमता और यादें संजोने जैसे संज्ञानात्मक कार्यों के लिए महत्वपूर्ण है। सोने से पहले शराब या कैफीन युक्त चीजों का सेवन नींद के चक्र को बाधित कर सकता है।

नींद की कमी की समस्या तीव्र या दीर्घकालिक हो सकती है। तीव्र समस्या का मतलब एक या दो दिन नींद न आने से हो सकता है।

यह भले ही एक छोटी अवधि लगता हो, लेकिन 24 घंटे बिना सोए गुजार देने के एकाग्रता में कमी के अलावा कई और खतरनाक परिणाम हो सकते हैं। इससे आंखें सूजने, डार्क सर्कल (आंखों के किनारे काले धब्बे) पड़ने, चिड़चिड़ापन, याददाश्त में कमी, भ्रम की स्थिति, त्वरित फैसले लेने एवं सूचनाओं का विश्लेषण करने में असमर्थता और खाने की तलब बढ़ने जैसे लक्षण उभर सकते हैं।

दूसरा दिन भी बिना सोए गुजार देने पर लक्षण और तीव्र हो सकते हैं तथा व्यक्ति के व्यवहार में भी बदलाव दिखाई देने लगता है। शरीर को नींद की तलब और प्रबल होने लगती है, जिसके चलते व्यक्ति ‘माइक्रोस्लीप’ लेने लगता है यानी उसे अनचाही झपकी लगने लगती है, जो लगभग 30 सेकंड की हो सकती है।

नींद की कमी से खाने की चाह भी बढ़ जाती है और विभिन्न प्रणालियों के अति सक्रिय होने तथा प्रतिरोधक तंत्र के कमजोर पड़ने की शिकायत सामने आती है, जिससे हम बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील बन जाते हैं।

तीसरा दिन जगकर गुजराने पर नींद की तलब और तीव्र हो जाती है, जिससे व्यक्ति के और लंबी अवधि की ‘माइक्रोस्लीप’ लेने, वास्तविक दुनिया से कटा हुआ महसूस करने और भ्रम की स्थिति में रहने की आशंका बढ़ जाती है।

वहीं, चौथा दिन बिना सोए बिताने पर लक्षण चरम पर पहुंच जाते हैं और ‘स्लीप डेप्रिवेशन साइकोसिस’ का रूप अख्तियार कर लेते हैं, जहां व्यक्ति वास्तविकता की व्याख्या करने में असमर्थ हो जाता है और हर हाल में सिर्फ सोने की चाह रखने लगता है।

नींद की कमी से होने वाली समस्याओं से उबरने की प्रक्रिया हर व्यक्ति में अलग होती है। कुछ लोग महज एक रात को गहरी नींद लेकर ही सारे लक्षणों से निजात पा सकते हैं। वहीं, कई लोगों को इन लक्षणों से पार पाने में कई दिन या हफ्ते का समय लग सकता है।

हालांकि, अध्ययन दिखाते हैं कि नींद की भरपाई अक्सर चयापचय क्रिया में आए बदलावों को नहीं पलटती, जो वजन बढ़ने और ‘इंसुलिन सेंसिटिविटी’ (इंसुलिन के प्रति कोशिकाओं की प्रतिक्रिया) में कमी का कारण बनते हैं। उन मामलों में भी, जिनमें व्यक्ति अपेक्षाकृत छोटी अवधि बिना सोए गुजारता है।

अलग-अलग पाली में काम करने वाले पेशेवरों को अक्सर नींद की कमी का सामना करना पड़ सकता है। रात की पाली में काम करने वाले दिन की पाली में काम करने वालों के मुकाबले आमतौर पर रोजाना औसतन एक से चार घंटे कम सोते हैं। इससे उनकी असामयिक मौत का जोखिम बढ़ सकता है।

वैसे, कई अध्ययनों में पहले ही खुलासा हो चुका है कि बहुत कम नींद असामयिक मौत के बढ़ते जोखिम से जुड़ी हुई है। इसी तरह, बहुत अधिक नींद का भी असामयिक मौत के बढ़ते जोखिम से संबंध पाया गया है।

ऐसे में बेहतर है कि लोग ‘नो-स्लीप चैलेंज’ जैसे सोशल मीडिया चैलेंज में शामिल होने से बचें और रोज रात को सात से नौ घंटे की मीठी नींद लेने की कोशिश करें। आपका शरीर इसके लिए आपका आभारी रहेगा।

(द कन्वरसेशन) पारुल माधव

माधव

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)