दो सबसे बड़े अमेरिकी अखबारों का किसी भी उम्मीदवार का समर्थन नहीं करना लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण |

दो सबसे बड़े अमेरिकी अखबारों का किसी भी उम्मीदवार का समर्थन नहीं करना लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण

दो सबसे बड़े अमेरिकी अखबारों का किसी भी उम्मीदवार का समर्थन नहीं करना लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण

:   Modified Date:  October 28, 2024 / 03:02 PM IST, Published Date : October 28, 2024/3:02 pm IST

(डेनिस मुलर, द यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न)

मेलबर्न, 28 अक्टूबर (द कन्वरसेशन) फरवरी 2017 में, जब डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभाला था तो ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ ने अपने 140 साल के इतिहास में पहली बार यह नारा अपनाया था, ‘‘लोकतंत्र अंधकार में मर जाता है।’’

कैसी विडंबना है कि अब यह अखबार आगामी राष्ट्रपति चुनाव के लिए किसी भी उम्मीदवार का समर्थन नहीं करके अमेरिकी लोकतंत्र की लौ को बुझाने में लगा है।

‘द वाशिंगटन पोस्ट’ और अमेरिका के तीन बड़े समाचार पत्रों में से दूसरे सबसे बड़े अखबार ‘द लॉस एंजिलिस टाइम्स’ द्वारा लिया गया ऐसा ही निर्णय, पत्रकारिता को अपमानित कर रहा है, समाचार पत्रों की अपनी विरासत को अपमानित कर रहा है और ऐसे समय में नागरिक जिम्मेदारी का परित्याग दर्शाता है जब अमेरिका गृहयुद्ध के बाद से अपने सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्रपति चुनाव का सामना कर रहा है।

अब प्रश्न यह है कि क्या अमेरिका एक कार्यशील लोकतंत्र बना रहेगा या एक भ्रष्ट धनतंत्र में बदल जाएगा जिसका नेतृत्व एक दोषी अपराधी कर रहा है जिसने पहले ही राष्ट्रपति चुनाव को पलटने के लिए हिंसा भड़काई थी है और उन परंपराओं के प्रति अवमानना ​​दिखाई, जिन पर लोकतंत्र टिका हुआ है।

उन्होंने ऐसा क्यों किया?

पश्चिमी दुनिया के दो बेहतरीन समाचार पत्रों ने इतना लापरवाही भरा गैर-जिम्मेदाराना निर्णय क्यों लिया होगा?

यह डोनाल्ड ट्रम्प और कमला हैरिस के कार्यालय के लिए संबंधित योग्यता के किसी भी तर्कसंगत आकलन के आधार पर नहीं हो सकता है। यह उम्मीदवारों की अपनी रिपोर्टिंग और विश्लेषण के आधार पर भी नहीं हो सकता है, जहां ट्रम्प द्वारा जारी किए गए झूठ और धमकियों को निडरता से रिकॉर्ड किया गया है।

इस संदर्भ में, किसी उम्मीदवार का समर्थन न करने का निर्णय अपने ही संपादकीय कर्मचारियों के साथ विश्वासघात है। ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ के संपादक-एट-लार्ज, रॉबर्ट कैगन ने हैरिस का समर्थन न करने के अखबार के फैसले के विरोध में इस्तीफा दे दिया।

मेरे विचार से, इस सबकी एक मात्र व्यवहार्य व्याख्या यह हो सकती है कि संभवत: यह कायरता और लालच का मिलाजुला रूप है।

दोनों अखबारों के मालिक अरबपति अमेरिकी व्यवसायी हैं। ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ के मालिक जेफ बेजोस हैं जो अमेज़ॉन के भी मालिक हैं, वहीं ‘द लॉस एंजिलिस टाइम्स’ का स्वामित्व जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र के उद्योगपति पैट्रिक सून-श्योंग के पास है।

बेजोस ने 2013 में अपनी निजी निवेश कंपनी नैश होल्डिंग्स के माध्यम से ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ को खरीदा, और सून-श्योंग ने 2018 में अपनी निवेश फर्म नैन्ट कैपिटल के माध्यम से ‘द लॉस एंजिलिस टाइम्स’ को खरीदा।

अगर ट्रम्प राष्ट्रपति बनते हैं और उनके प्रति शत्रुतापूर्ण रवैया रखते हैं तो दोनों के आर्थिक रूप से नुकसान उठाने का व्यक्तिगत जोखिम है।

चुनाव अभियान के दौरान, ट्रम्प ने मीडिया में उन लोगों के खिलाफ प्रतिशोध की कई धमकियां दी हैं जो उनका विरोध करते हैं।

उन्होंने संकेत दिया है कि अगर वह व्हाइट हाउस में वापसी करते हैं, तो वह उनके खिलाफ रुख अपनाने वाले मीडिया संस्थानों से बदला ले सकते हैं, नाराज करने वाले पत्रकारों को जेल में डाल सकते हैं और प्रमुख टेलीविजन नेटवर्क का कवरेज पसंद नहीं आने पर उनके प्रसारण लाइसेंस छीन सकते हैं।

जाहिर है कि इन धमकियों भरे संकेतों के मद्देनजर मीडिया ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने का विरोध करने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा देगा। वह अगर लोकतंत्र और आजादी से अभिव्यक्ति के सम्मान के लिए ऐसा नहीं करेगा तो कम से कम आत्म-संरक्षण के हित में ऐसा कर सकता है।

अमेरिकी प्रेस के इन दो दिग्गज अखबारों को धनी व्यापारियों द्वारा खरीदना इंटरनेट और सोशल मीडिया द्वारा पेशेवर जन मीडिया पर डाले गए वित्तीय दबाव का परिणाम है। बेजोस का ग्राहम परिवार द्वारा खुले हाथों से स्वागत किया गया, जो चार पीढ़ियों से ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ का मालिक था, लेकिन अखबार को इंटरनेट पर विज्ञापन के नुकसान से होने वाले असहनीय वित्तीय घाटे का सामना करना पड़ा।

पहले तो उन्हें सिर्फ ग्राहम ही नहीं बल्कि कार्यकारी संपादक मार्टी बैरन भी एक उद्धारक के रूप में देख रहे थे। उन्होंने अखबार में जमकर धन लगाया, जिससे अखबार अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा और पत्रकारीय क्षमता को फिर से हासिल करने में सक्षम हुआ।

बैरन ने अपनी पुस्तक ‘कॉलीजन ऑफ पॉवर: ट्रम्प, बेजोस एंड द वाशिंगटन पोस्ट’ में अखबार के प्रति बेजोस की वित्तीय प्रतिबद्धता और ट्रम्प की शत्रुता का सामना करने के उनके साहस की भरपूर प्रशंसा की।

ट्रम्प के राष्ट्रपति पद पर रहने के दौरान, अखबार ने उनके झूठ का रिकॉर्ड रखने का दावा करते हुए चार साल में उनके 30,573 बार झूठ बोलने का आरोप लगाया। इस इतिहास के विपरीत, अखबार द्वारा अपनी जिम्मेदारियों से अब पीछे हटना केवल बेजोस के साहस के संदर्भ में ही देखा जा सकता है।

‘लॉस एंजिलिस टाइम्स’ का स्वामित्व ओटिस-चैंडलर परिवारों की चार पीढ़ियों ने संभाला, लेकिन इंटरनेट के प्रभाव ने वहां भी बहुत बुरा असर डाला। साल 2000 से 2018 के बीच इसका स्वामित्व तीन हाथों से गुजरा और अंतत: सून-श्योंग के पास पहुंचा। दोनों अखबार 20वीं सदी के आखिरी तीन दशकों में अपनी पत्रकारिता की उपलब्धियों के शिखर पर पहुंचे, उन्होंने पुलित्जर पुरस्कार जीते। ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ वाटरगेट कांड की कवरेज के लिए विश्व स्तर पर प्रसिद्ध हुआ था।

यह उन दिनों की बात है, जब अमेरिकी लोकतंत्र परंपरा के अनुसार काम कर रहा था और रिचर्ड निक्सन को राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देना पड़ा।

इस कवरेज के लिए जिम्मेदार दो संवाददाता बॉब वुडवर्ड और कार्ल बर्नस्टीन ने उम्मीदवार का समर्थन न करने के फैसले के बारे में एक बयान जारी किया। मार्टी बैरन, जो एक बेहद सख्त संपादक थे, ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया: ‘‘यह कायरता है, जिसका शिकार लोकतंत्र हुआ है।’’

अब अमेरिका के तीन बड़े अखबारों में से, केवल ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ही अगले महीने होने वाले चुनाव के लिए किसी उम्मीदवार का समर्थन करने के लिए तैयार है। उसने हैरिस का समर्थन करते हुए ट्रम्प के बारे में कहा है: ‘‘ अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में सेवा करने के लिए उनसे अधिक अयोग्य उम्मीदवार की कल्पना करना कठिन है।’’

यह क्यों मायने रखता है?

यह इसलिए मायने रखता है क्योंकि लोकतंत्र में मीडिया वह माध्यम है जिसके जरिए मतदाता न केवल तथ्यों के बारे में जानते हैं, बल्कि उन लोगों की राय के बारे में भी जानते हैं, जो चुनाव में खड़े उम्मीदवारों का आकलन करने में सक्षम होते हैं। यह लोकतांत्रिक समाज में मीडिया का मुख्य कार्य है।

अमेरिका अब एक लोकतांत्रिक मॉडल नहीं रहा है। एक ऐसा देश जिसके राष्ट्रपति प्रेस पर हमला करते हों, अपने प्रतिद्वंद्वी को जेल में डालने की धमकी देते हों, और घोषणा करते हों कि वह चुनाव परिणामों को स्वीकार नहीं कर सकते, वह लोकतंत्र का प्रामाणिक रूप से बचाव नहीं कर सकता।

प्रतीकात्मक रूप से, इस समय ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ और ‘द लॉस एंजिलिस टाइम्स’ को बंद कर देना चाहिए था, जो 1914 में ब्रिटेन के विदेश मंत्री सर एडवर्ड ग्रे द्वारा की गई टिप्पणी की याद दिलाता है कि ‘‘पूरे यूरोप में लैंप बुझ रहे हैं। हम अपने जीवनकाल में उन्हें फिर से जलते हुए नहीं देख पाएंगे।’’

(द कन्वरसेशन) वैभव नरेश

नरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)