न्यूयॉर्क: तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तयीप एर्दोगन संयुक्त राष्ट्र में बेशक खुले तौर पर भारत के खिलाफ और पाकिस्तान के समर्थन में नजर आए, मगर भारत चुपचाप उसके तीन धुर विरोधी पड़ोसी देश व दमदार प्रतिद्वंद्वी साइप्रस, आर्मेनिया और ग्रीस के साथ अपने संबंधों को मजबूत कर रहा है। इस तरह पाकिस्तान का समर्थन करने वाले तुर्की को भारत ने कूटनीतिक तरीके करारा जवाब दिया है।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के भाषण के बाद साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस अनास्तासीद से मुलाकात की। इस देश ने स्वतंत्रता, संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और साइप्रस गणराज्य की एकता के लिए भारत का लगातार समर्थन किया है। भारत का यह कदम महत्वपूर्ण है, क्योंकि 1974 में तुर्की के आक्रमण में पूर्वी भूमध्यसागरीय द्वीप विभाजित हो गया था, जिसमें अंकारा ने इसके उत्तरी भाग पर कब्जा कर रखा है। तुर्की ने टर्किश रिपब्लिक ऑफ नॉर्दर्न साइप्रस (टीआरएनसी) की स्थापना की है, जिससे इन दोनों पक्षों के बीच एक लंबे सैन्य गतिरोध की शुरुआत हुई।
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टीआरएनसी को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता नहीं मिली हुई है और इसके तुर्की के साथ महज राजनयिक संबंध हैं। एर्दोगन ने उत्तरी साइप्रस में तैनात 30 हजार से अधिक सैनिकों को वापस लेने से इनकार कर दिया है। मोदी ने शुक्रवार को ग्रीक के प्रधानमंत्री किरियाकोस मित्सोटाकिस से भी मुलाकात की। बैठक के बाद, मोदी ने ट्वीट किया, ‘ग्रीस के प्रधानमंत्री के साथ बातचीत करने का अवसर मिला। भारत-ग्रीस संबंध समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं। हम व्यापार के साथ-साथ अपने नागरिकों के लाभ के लिए आपस में लोगों के संबंधों को भी बढ़ाने के लिए काम करेंगे।’
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इस दौरान दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों की स्थिति की समीक्षा की। इसके अलावा राजनीतिक, आर्थिक और लोगों के आपसी संबंधों को बेहतर करने के लिए चर्चा की गई। तुर्की और ग्रीस के बीच लंबे समय से तनावपूर्ण संबंध रहे हैं। यह देश 1996 में इमिया के ग्रीक टापू पर सैन्य संघर्ष के करीब पहुंच गए थे, मगर अमेरिका ने इस तनाव को टाल दिया था। वैसे, ग्रीस तुर्की की अपेक्षा आकार में छोटा है, लेकिन यह रक्षा क्षेत्र में अपने बजट की एक बड़ी राशि खर्च करता है। इसका रक्षा बजट दुनिया में सातवें स्थान पर, यानी प्रति व्यक्ति 1,230 डॉलर है। इसके लड़ाकू विमानों के पायलट नियमित रूप से तुर्की जेट विमानों के साथ संघर्ष की स्थिति में होते हैं।
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इसके अलावा, मोदी ने अपने आर्मेनिया के समकक्ष निकोल पशिनयान से भी मुलाकात की। इस देश की सीमा तुर्की के साथ लगती है और दोनों देशों के बीच भी अच्छे संबंध नहीं रहे हैं। आर्मेनिया के लोग 1915 में तुर्की साम्राज्य द्वारा अपने लाखों नागरिकों के संहार को माफ नहीं कर पाए हैं। तुर्की सरकार ने हालांकि इस बात से इनकार किया है कि कभी कोई नरसंहार हुआ था।
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मोदी ने गुरुवार को ट्वीट किया, “प्रधानमंत्री निकोल पशिनयान से व्यापक विचार-विमर्श हुआ। हमने प्रौद्योगिकी, फार्मा और कृषि आधारित उद्योगों से जुड़े पहलुओं पर भारत-आर्मेनिया सहयोग का विस्तार करने के बारे में बात की। प्रधानमंत्री निकोल ने आर्मेनिया में भारतीय फिल्मों, संगीत और योग की लोकप्रियता का भी उल्लेख किया।’ तुर्की के साथ तीनों देशों की गहरी दुश्मनी के मद्देनजर इन नेताओं के साथ मोदी की बैठकों का काफी महत्व माना जा रहा है। यह अंकारा का इस्लामाबाद का साथ देते हुए भारत के खिलाफ होने की परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए एक स्पष्ट व महत्वपूर्ण कदम है।
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