ट्रंप खुद को एक कुशल ‘सौदागर’ मानते हैं, लेकिन पश्चिम एशिया में उनकी राह आसान नहीं |

ट्रंप खुद को एक कुशल ‘सौदागर’ मानते हैं, लेकिन पश्चिम एशिया में उनकी राह आसान नहीं

ट्रंप खुद को एक कुशल ‘सौदागर’ मानते हैं, लेकिन पश्चिम एशिया में उनकी राह आसान नहीं

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Modified Date: November 19, 2024 / 06:01 PM IST
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Published Date: November 19, 2024 6:01 pm IST

(अमीन सैकल, पश्चिमी एशिया एवं मध्य एशियाई अध्ययन के एमेरिटस प्रोफेसर, ऑस्ट्रेलिया राष्ट्रीय विश्वविद्यालय)

मेलबर्न, 19 नवंबर (द कन्वरसेशन) डोनाल्ड ट्रंप ऐसे समय में पुन: अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए हैं जब पश्चिम एशिया में बड़े पैमाने पर अस्थिरता फैली हुई है।

नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने सभी युद्धों को समाप्त करने का वादा किया है। उन्होंने पदभार ग्रहण करने के 24 घंटे के भीतर यूक्रेन युद्ध को हल करने और इजराइल को गाजा और लेबनान के अपने अभियानों को जल्दी से जल्दी पूरा करने में मदद करने का वादा किया है।

फिर भी पश्चिम एशिया एक जटिल मोर्चा है। ट्रंप को इजराइल के प्रति अपने प्रबल समर्थन और क्षेत्र में अपनी अन्य महत्वाकांक्षाओं के बीच संतुलन बनाने में बहुत कठिनाई होगी, खासकर ईरान और उसके प्रतिद्वंद्वी सऊदी अरब के बीच बदलते हालात को देखते हुए।

आइए जानते हैं कि राष्ट्रपति पद संभालने के बाद आने वाले महीनों में ट्रंप से क्या उम्मीद करनी चाहिए :

इजराइल और हमास के बीच वार्ता विफल : अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान कतर की यह घोषणा भी चर्चा में रही कि उसने इजराइल और हमास के बीच युद्ध विराम मध्यस्थ के रूप में अपनी भूमिका समाप्त कर दी है।

तेल समृद्ध इस छोटे से खाड़ी देश ने पिछले एक साल में युद्ध को समाप्त करने के लिए एक समझौते पर पहुंचने की कोशिश में कड़ी मेहनत की है। इस प्रक्रिया में, इसने अमेरिका और हमास के साथ अपने घनिष्ठ संबंधों का अच्छा उपयोग किया। एक तरफ जहां अमेरिका का कतर में पश्चिम एशिया का सबसे बड़ा सैन्य अड्डा है, वहीं हमास का राजनीतिक कार्यालय दोहा में स्थित है।

हालांकि, कतर के प्रयासों से पिछले वर्ष एक संक्षिप्त युद्धविराम के अलावा और कुछ हासिल नहीं हुआ, जिसके परिणामस्वरूप 240 फलस्तीनी कैदियों के बदले 100 से अधिक इजराइली बंधकों को रिहा किया गया।

इसके पीछे कई कारण थे : एक बात यह रही कि दोनों पक्ष कुछ मुख्य मुद्दों पर आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने हमास को पूरी तरह से खत्म करने का संकल्प लिया है, उन्होंने अस्थायी युद्धविराम की संभावना को खारिज कर दिया है। वहीं, हमास युद्ध को पूरी तरह से खत्म करने और गाजा से इजराइली सेना की पूरी तरह वापसी की मांग कर रहा है।

इस बीच, वाशिंगटन वार्ता में कोई सार्थक भूमिका निभाने में विफल रहा है। युद्ध विराम की अपनी इच्छा पर बार-बार जोर देते हुए, पूर्ववर्ती बाइडन प्रशासन ने किसी भी बिंदु पर कूटनीतिक बयानबाजी से परे इजराइल पर ठोस दबाव नहीं डाला।

अमेरिका ने इजराइल को दी जाने वाली सैन्य सहायता में कटौती करने से भी इनकार कर दिया है। इसके बजाय, इसने अगस्त में इजराइल को 20 अरब अमेरिकी डॉलर के हथियार बेचने को मंजूरी दे दी। इसका मतलब है कि नेतन्याहू के पास अपने अभियान से पीछे हटने का कोई ठोस कारण नहीं है।

लेबनान में युद्ध विराम की संभावना बढ़ी : गाजा में युद्ध विराम की संभावनाएं फीकी पड़ने के साथ ही लेबनान में युद्ध विराम की उम्मीदें बढ़ गई हैं। वाशिंगटन कथित तौर पर इजराइल और हिजबुल्ला को वहां लड़ाई खत्म करने के लिए आम सहमति बनाने को लेकर गहन कूटनीतिक प्रयास कर रहा है।

इजराइल चाहता है कि हिजबुल्ला को हथियारों की आपूर्ति रोक दी जाए और उसे कम से कम दक्षिणी लेबनान में लिटानी नदी से पीछे काफी दूर तक धकेल दिया जाए और दोनों के बीच एक ‘सुरक्षा क्षेत्र’ स्थापित किया जाए। इजराइल चाहता है कि यदि आवश्यक हो तो हिजबुल्ला पर हमला करने का अधिकार बरकरार रखा जाए, जिसे लेबनानी अधिकारी अस्वीकार कर सकते हैं।

अब ट्रंप के आने से क्या बदलेगा : ट्रंप की चुनावी जीत ने नेतन्याहू की सरकार को इस हद तक राहत पहुंचाई है कि उनके वित्त मंत्री बेजालेल स्मोत्रिच ने संबंधित अधिकारियों से यहूदी बस्तियों के वेस्ट बैंक में औपचारिक विलय के लिए तैयारी करने को कहा है।

ट्रंप लंबे समय से इजराइल के प्रबल समर्थक रहे हैं। अपने पहले राष्ट्रपति कार्यकाल में उन्होंने यरुशलम को इजराइल की राजधानी के रूप में मान्यता दी और अमेरिकी दूतावास को वहां स्थानांतरित करने का आदेश दिया। उन्होंने गोलन हाइट्स पर इजराइल की संप्रभुता को भी मान्यता दी, जिसे इजराइल ने 1967 में सीरिया से हासिल किया था।

(द कन्वरसेशन) शफीक नरेश

नरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)