(विंसेंट गोची, प्रोफेसरियल फेलो, भूगोल, पृथ्वी एवं पर्यावरण विज्ञान स्कूल, बर्मिंघम विश्वविद्यालय)
बर्मिंघम, 27 जुलाई (द कन्वरसेशन) दुनिया के जंगलों में पेड़ों की छाल ग्रीनहाउस गैस मीथेन को अवशोषित करती है, मेरे सहयोगियों और मैंने पहली बार वैश्विक स्तर पर इसका प्रदर्शन किया है। यह एक ऐसी खोज है जिसके जलवायु परिवर्तन से निपटने में महत्वपूर्ण निहितार्थ हो सकते हैं।
जब पेड़ प्रकाश संश्लेषण करते हैं, तो उनकी पत्तियां कार्बन डाइऑक्साइड को सोख लेती हैं और इसे अपने तने और शाखाओं में बायोमास के रूप में संग्रहीत कर लेती हैं, जिससे कार्बन का दीर्घकालिक भंडार उपलब्ध होता है। लेकिन, अब हमारे बड़े पैमाने के अध्ययन से यह साबित होता है कि पेड़ों द्वारा ग्रीनहाउस गैसों को अवशोषित करने का एक और तरीका भी है इसलिए वन जलवायु परिवर्तन से लड़ाई में हमारी सोच से अधिक कारगर साबित हो सकते हैं।
पूर्व औद्योगिक काल से अब तक देखी गई जलवायु परिवर्तन में मीथेन का लगभग एक तिहाई योगदान रहा। पिछले दो दशकों से वायुमंडल में मीथेन की सांद्रता तेजी से बढ़ रही है।
पृथ्वी की जलवायु के लिए यह एक वास्तविक समस्या है क्योंकि मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड की समान मात्रा की तुलना में वायुमंडल में कहीं अधिक गर्मी पैदा करती है। हालांकि जहां कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल में सैकड़ों वर्षों तक रह सकती है, वहीं मीथेन के वायुमंडल में रहने की समयसीमा 10 वर्ष है।
इस छोटे वायुमंडलीय जीवनकाल का मतलब है कि मीथेन के स्रोतों में कोई भी बदलाव या वातावरण से मीथेन को हटाने वाली प्रक्रिया का प्रभाव तेजी से हो सकता है। यदि इसे हटाने की गति तेज की जाती है, तो यह जलवायु परिवर्तन की समस्या को कम करने में काफी हद तक मददगार हो सकती है।
यही कारण है कि शोधकर्ता यह समझने में बहुत रुचि रखते हैं कि मीथेन वायुमंडल में कैसे पहुंचती है और विभिन्न प्रक्रियाएं इसे कैसे हटाती हैं। यही कारण है कि पारिस्थितिकीविदों और जलवायु वैज्ञानिकों की मेरी टीम पेड़ की छाल और वायुमंडल के बीच मीथेन के आदान-प्रदान का अध्ययन कर रही है। पेड़ की छाल एक ऐसी सतह है, जिसे पहले जलवायु में इसके योगदान के लिए अनदेखा किया गया था।
आर्द्रभूमि को मीथेन का प्राथमिक प्राकृतिक स्रोत माना जाता है – दलदल और बाढ़ के मैदान में पेड़ अपने तने के निचले हिस्से से मीथेन उत्सर्जित कर सकते हैं। लेकिन अब तक, बाढ़ रहित मुक्त जल निकासी वाली मिट्टी पर उगने वाले वृक्षों में मीथेन अवशोषित होने को लेकर पर्याप्त अध्ययन नहीं किया गया है, जिनमें विश्व के अधिकांश वन शामिल हैं।
हमने जलवायु के अनुरूप अमेजन और पनामा से लेकर स्वीडन और ब्रिटेन में ऑक्सफोर्ड के निकट के जंगलों में स्थित सैकड़ों वृक्षों के तनों पर मीथेन के आदान-प्रदान को मापा। हमने एक साधारण प्लास्टिक चैंबर का उपयोग किया जिसे पेड़ के तने के चारों ओर लपेटा गया और फिर उसे लेजर आधारित मीथेन विश्लेषक से जोड़ा गया।
सबसे पहले, हमने पेड़ों से मीथेन उत्सर्जन की जांच की, जिससे सामने आया कि कुछ पेड़ों के तने के आधार से थोड़ी मात्रा में मीथेन उत्सर्जित होती है। लेकिन, आश्चर्य तब हुआ जब हमने पेड़ों के तने के ऊपरी हिस्से पर जाकर देखा कि पेड़ वायुमंडल से मीथेन अवशोषित कर रहे थे और हम जैसे-जैसे ऊपर गए, मीथेन अवशोषित होने की यह प्रक्रिया और अधिक तीव्र होती गई।
इसके बाद, हमने जांच की कि क्या यह वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। ऐसा करने के लिए हमें वृक्ष की छाल के वैश्विक क्षेत्रफल की गणना करने की आवश्यकता थी। स्थलीय लेजर स्कैनिंग नामक तकनीक का उपयोग करके, हमने पेड़ की लकड़ी की सतह से लेकर सबसे बारीक टहनी तक का मानचित्रण किया।
हमने पाया कि यदि विश्व के सभी वृक्षों की छाल को समतल कर दिया जाए तो वह पृथ्वी की पूरी भूमि को ढक लेगी। संभावित रूप से, यह पेड़ की छाल और वायुमंडल के बीच गैस विनिमय के लिए एक विशाल क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है लेकिन यह तंत्र अभी भी कम ही समझा गया है।
यह नया साक्ष्य हमारी जलवायु प्रणाली के लिए पेड़ों और वनों के महत्व को पुष्ट करता है, साथ ही यह भी दर्शाता है कि इन मूल्यवान पारिस्थितिकी प्रणालियों के बारे में अभी भी बहुत कुछ सीखना बाकी है।
(द कन्वरसेशन) शफीक पवनेश
पवनेश
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