अनुरा दिसानायके के उदय से जेवीपी को शीर्ष पद मिला |

अनुरा दिसानायके के उदय से जेवीपी को शीर्ष पद मिला

अनुरा दिसानायके के उदय से जेवीपी को शीर्ष पद मिला

:   Modified Date:  September 22, 2024 / 09:25 PM IST, Published Date : September 22, 2024/9:25 pm IST

कोलंबो, 22 सितंबर (भाषा) श्रीलंका में मार्क्सवादी नेता अनुरा कुमारा दिसानायके साधारण पृष्ठभूमि से सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे हैं और उन्होंने युवा मतदाताओं और उन लोगों के सामने खुद को परिवर्तनकारी नेता के तौर पर पेश किया जो पारंपरिक राजनीतिक नेताओं की “भ्रष्ट राजनीति’’ से थक चुके हैं।

एकेडी के नाम से मशहूर 56 वर्षीय दिसानायके को रविवार को राष्ट्रपति चुनाव का विजेता घोषित किया गया।

साल 2022 के प्रदर्शनों की वजह से गोटबाया राजपक्षे के सत्ता से बाहर होने के बाद शनिवार को पहली बार चुनाव हुआ। देश में आर्थिक संकट आने के बाद 2022 में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए थे जिसके बाद राजपक्षे को इस्तीफा देना पड़ा था।

शीर्ष पद पर उनका पहुंचना 50 साल पुरानी पार्टी जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) के लिए एक उल्लेखनीय बदलाव है, जो लंबे समय से हाशिये पर थी। वह श्रीलंका के मार्क्सवादी पार्टी के पहले नेता हैं जो राष्ट्र के प्रमुख बने हैं।

जेवीपी के व्यापक मोर्चे, नेशनल पीपुल्स पावर (एनपीपी) के नेता, दिसानायके के भ्रष्टाचार विरोधी संदेश और राजनीतिक संस्कृति में बदलाव के उनके वादे ने युवा मतदाताओं को काफी प्रभावित किया, जो आर्थिक संकट के बाद से व्यवस्था में बदलाव की मांग कर रहे हैं।

साल 2022 से एनपीपी की लोकप्रियता में तेज़ी से उछाल आया। 2019 के पिछले राष्ट्रपति चुनाव में उसे सिर्फ करीब तीन प्रतिशत वोट मिले थे।

उन्होंने अगस्त में ‘डेली मेल’ ऑनलाइन को दिए एक साक्षात्कार में कहा था, “हमारे देश में भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई सिर्फ भ्रष्टाचार मुक्त ताकत ही कर सकती है। भ्रष्टाचारियों को सजा देने का नारा 1994 से ही चंद्रिका (कुमारतुंगा), महिंदा (राजपक्षे), मैत्रीपाला (सिरिसेना) और गोटाबाया (राजपक्षे) के दौर में मंचों से गूंजता रहा है। भ्रष्टाचारी कभी भ्रष्टाचारियों को सजा नहीं देंगे। भ्रष्टाचारी हमेशा भ्रष्टाचारियों को बचाते हैं। भ्रष्टाचार को खत्म करना एनपीपी की प्राथमिकता है।”

मार्च में एक अन्य कार्यक्रम के दौरान दिसानायके ने कहा था कि राजनीतिक संघर्ष केवल सरकार बदलने के लिए नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन लाने का प्रयास है।

दिसानायके उत्तर मध्य प्रांत के ग्रामीण थम्बुटेगामा से हैं। उन्होंने कोलंबो उपनगरीय केलानिया विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक किया है।

वह 1987 में ऐसे वक्त में एनपीपी की मातृ पार्टी जेवीपी में शामिल हुए थे जब उसका भारत विरोधी विद्रोह चरम पर था।

जेवीपी ने 1987 के भारत-श्रीलंका समझौते का समर्थन करने वाले सभी लोकतांत्रिक दलों के कई कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी थी।

राजीव गांधी-जे आर जयवर्धने समझौता देश में राजनीतिक स्वायत्तता की तमिल मांग को हल करने के लिए प्रत्यक्ष भारतीय हस्तक्षेप था। जेवीपी ने भारतीय हस्तक्षेप को श्रीलंका की संप्रभुता के साथ धोखा करार दिया था।

हालांकि, इस वर्ष फरवरी में दिसानायके की भारत यात्रा को एनपीपी नेतृत्व के भारत के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव के रूप में देखा जा रहा है, जो विदेशी निवेश हितों के साथ तालमेल व्यक्त करने का संकेत देता है।

नब्बे के दशक के अंत में जेवीपी के लोकतांत्रिक राजनीति में आने के बाद दिसानायके को जेवीपी की केंद्रीय समिति में जगह मिली। 2000 के संसदीय चुनाव में वह जेवीपी से संसद पहुंचे। 2001 से वह विपक्ष की मजबूत आवाज़ रहे हैं।

वर्ष 2004 के चुनाव में दिसानायके श्रीलंका फ्रीडम पार्टी के साथ गठबंधन करके उत्तर-पश्चिमी जिले कुरुनेगला से दोबारा संसद पहुंचे। उन्हें कृषि मंत्री नियुक्त किया गया।

साल 2004 में आई सुनामी के बाद राहत सहायता को उत्तर श्रीलंका में साझा करने के लिए एलएलटीई के साथ एक संयुक्त तंत्र पर जेवीपी सरकार से बाहर हो गई थी। दिसानायके 2008 में जेवीपी के संसदीय समूह के नेता बने।

वह 2010 के संसदीय चुनाव में कोलंबो जिले से पुनः संसद के लिए चुने गये और 2014 में अपनी पार्टी के प्रमुख बने। 2015 में कोलंबो से दोबारा जीतने के बाद वह विपक्ष के मुख्य सचेतक बन गए, यह पद उन्होंने 2019 तक संभाला।

भाषा नोमान प्रशांत

प्रशांत

 

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