पैरा एथलीटों के लिए मददगार है प्रौद्योगिकी, लेकिन यह अनुचित लाभ भी पैदा कर सकती है |

पैरा एथलीटों के लिए मददगार है प्रौद्योगिकी, लेकिन यह अनुचित लाभ भी पैदा कर सकती है

पैरा एथलीटों के लिए मददगार है प्रौद्योगिकी, लेकिन यह अनुचित लाभ भी पैदा कर सकती है

:   Modified Date:  August 31, 2024 / 04:24 PM IST, Published Date : August 31, 2024/4:24 pm IST

(जॉन केर्नी, एम्मा बेकमैन और सीन ट्वीडी, क्वींसलैंड विश्वविद्यालय)

क्वींसलैंड, 31 अगस्त (द कन्वरसेशन) पैरालंपिक खेल का इतिहास जीवन में नये सिरे से सुधार लाने की अवधारणा पर आधारित है, जो अब एक प्रमुख वैश्विक आयोजन बन चुका है।

पहला आधिकारिक पैरालंपिक खेल 1960 में रोम में आयोजित किया गया था। हालांकि, मूलत: इसकी शुरुआत 1948 में हुई थी, जब न्यूरोलॉजिस्ट लुडविग गटमैन ने रीढ़ की हड्डी की चोटों से पीड़ित द्वितीय विश्व युद्ध के दिग्गजों के लिए इंग्लैंड में स्टोक मैंडविल खेलों का आयोजन किया था।

उनका मानना ​​था कि खेल जीवन में नये सुधार लाने की दिशा में एक अहम भूमिका निभा सकते हैं तथा मानव प्रदर्शन की सीमाओं को इस तरह बढ़ा सकते हैं, जैसा अन्य तरीकों से नहीं किया जा सकता।

आज के पैरालंपिक खेल इस विरासत को जारी रखते हैं तथा इन उपलब्धियों में प्रौद्योगिकी केंद्रीय भूमिका निभा रही है।

प्रौद्योगिकी ने दिव्यांग एथलीटों को नयी ऊंचाइयों तक पहुंचने में सक्षम बनाया है। हालांकि, इसने नई चुनौतियां भी पेश की हैं, खासकर प्रतिस्पर्धा में निष्पक्षता और समानता सुनिश्चित करने में।

सरल से जटिल तक

शुरुआती दिनों में, पैरालंपिक प्रौद्योगिकी आज के मानकों के हिसाब से बुनियादी थी। एथलीटों ने नियमित व्हीलचेयर पर प्रतिस्पर्धा की और सहायता के लिए साधारण पट्टियों का उपयोग किया।

जैसे-जैसे पैरालंपिक खेलों का विस्तार हुआ, प्रतिस्पर्धात्मक सफलता का महत्व बढ़ता गया। परिणामस्वरूप, एथलीटों ने प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त हासिल करने के लिए विशेष प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया।

उदाहरण के लिए, ‘रनिंग ब्लेड’ कार्बन फाइबर से बने कृत्रिम अंग हैं, जिन्हें गति और उछाल को बढ़ाते हुए प्राकृतिक पैर की गति की नकल करने के लिए डिजाइन किया गया है। इन ब्लेड ने दौड़ स्पर्धाओं में क्रांति ला दी है।

ये कृत्रिम अंग दिव्यांग एथलीटों को सामान्य एथलीट के बराबर और कभी-कभी उनसे भी अधिक गति से प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम बनाते हैं।

बदलता विमर्श

हालांकि, 2010 के दशक के अंत तक, एथलीटों द्वारा उपयोग की जाने वाली सहायक प्रौद्योगिकी के बारे में विमर्श एकीकरण का जश्न मनाने से हटकर अनुचित लाभ पर बहस में बदल गई।

वर्ष 2019 में, दिव्यांग धावक ब्लेक लीपर ने 2020 तोक्यो ओलंपिक में सामान्य एथलीटों के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करने के लिए विश्व एथलेटिक्स में आवेदन किया था।

एथलेटिक्स की अंतरराष्ट्रीय नियामक संस्था को स्वतंत्र वैज्ञानिक सलाह मिली कि लीपर के कृत्रिम अंग उन्हें प्रतिस्पर्धात्मक लाभ प्रदान करते हैं। इस सलाह के बाद लीपर का आवेदन अस्वीकार कर दिया गया।

लीपर ने इस फैसले को खेल पंचाट न्यायालय में चुनौती दी, लेकिन न्यायालय ने उनके खिलाफ फैसला सुनाया।

जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी और विकसित हो रही है, भविष्य में जो आएगा उसकी तुलना में ‘रनिंग ब्लेड’ जल्द ही मामूली लगने लगेंगे।

‘न्यूरोप्रोस्थेटिक्स’ इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण है। ये ऐसे उपकरण हैं जो मानव तंत्रिका तंत्र के साथ जुड़कर मांसपेशियों की ताकत और सहनशक्ति को बढ़ा देते हैं जो रीढ़ की हड्डी की चोट जैसी तंत्रिका संबंधी कमियों के कारण हुई दिक्कतों से निपटने का काम करती है।

इन उपकरणों को बाहरी रूप से या शल्य चिकित्सा द्वारा लगाया जा सकता है। वे बैठने की स्थिरता और ‘रोइंग मशीन’ के प्रदर्शन जैसे कार्यों में सुधार कर सकते हैं।

यह कल्पना करना कठिन नहीं है कि कुछ एथलीट इन उपकरणों का उपयोग करके प्रतियोगियों पर महत्वपूर्ण बढ़त प्राप्त कर सकते हैं।

अंतरराष्ट्रीय पैरालंपिक समिति की एक खेल उपकरण नीति है। इसके सिद्धांतों में से एक यह है कि खेल प्रदर्शन मुख्य रूप से मानव प्रदर्शन से निर्धारित होना चाहिए और प्रौद्योगिकी एवं उपकरणों का प्रभाव गौण होना चाहिए।

हालांकि, इस सिद्धांत को बनाए रखने के लिए लागू करने योग्य नियमों की आवश्यकता होती है। जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी आगे बढ़ेगी, यह और भी चुनौतीपूर्ण होता जाएगा, ठीक वैसे ही जैसे ओलंपिक में होता है।

(द कन्वरसेशन)

शफीक माधव

माधव

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)