आंखों को यूवी किरणों के दुष्प्रभाव से बचाते हैं सनग्लास, ऐसे करें चयन |

आंखों को यूवी किरणों के दुष्प्रभाव से बचाते हैं सनग्लास, ऐसे करें चयन

आंखों को यूवी किरणों के दुष्प्रभाव से बचाते हैं सनग्लास, ऐसे करें चयन

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Modified Date: December 20, 2024 / 03:59 PM IST
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Published Date: December 20, 2024 3:59 pm IST

(फ्लोरा हुई, मेलबर्न विश्वविद्यालय)

मेलबर्न, 20 दिसंबर (द कन्वरसेशन) पराबैंगनी (अल्ट्रावायलट या यूवी) विकिरणें मानव शरीर के लिए बेहद हानिकारक मानी जाती हैं। हालांकि, हम अपनी त्वचा को तो यूवी विकिरणों के दुष्प्रभाव से बचाने पर ध्यान देते हैं, लेकिन आंखों की रक्षा करना अक्सर भूल जाते हैं।

पिछली गर्मियों में, यूवी विकिरणों का स्तर चरम पर होने के दौरान खुले आसमान के नीचे समय बिताने वाले महज 60 फीसदी ऑस्ट्रेलियाई लोगों ने सनग्लास का इस्तेमाल किया। सनग्लास सिर्फ फैशन का जरिया भर नहीं हैं। ये आंखों को यूवी विकिरणों के दुष्प्रभाव से बचाने में भी मददगार हैं। आइए जानें कि हम अपनी आंखों के लिए उपयुक्त सनग्लास कैसे चुन सकते हैं।

यूवी विकिरण क्या है?

-यूवी विकिरण सूर्य जैसे स्रोतों से उत्पन्न एक प्रकार की ऊर्जा है। ये विकिरण तीन तरह की होती हैं : यूवीए, यूवीबी और यूवीसी। यूवीए और यूवीबी हमारी त्वचा और आंखों को सूरज से होने वाले नुकसान के लिए जिम्मेदार मानी जाती हैं।

यूवी विकिरणें प्रत्यक्ष, बिखरी हुई या परावर्तित हो सकती हैं। लेकिन सूर्य से उत्पन्न अन्य प्रकार की ऊर्जा (दृश्यमान प्रकाश और अवरक्त (इंफ्रारेड) विकिरण) के विपरीत हम यूवी विकिरण को न तो देख सकते हैं, न ही महसूस कर सकते हैं। यही कारण है कि साफ आसमान या गर्म तापमान को यूवी विकिरणों के उच्च स्तर के संकेत के रूप में नहीं देखा जाता।

यूवी विकिरणों का स्तर बताने के लिए यूवी इंडेक्स का इस्तेमाल किया जाता है। आधिकारिक दिशा-निर्देशों में यूवी इंडेक्स 3 या उससे ऊपर होने पर त्वचा और आंखों को यूवी विकिरणों के दुष्प्रभाव से बचाने के उपाय करने की सलाह दी जाती है।

यूवी प्रकाश कैसे आंखों को प्रभावित करता है?

-यूवी विकिरणों के उच्च स्तर के संपर्क में रहने पर आंखों और उसकी आसपास की त्वचा पर लघु और दीर्घकालिक, दोनों प्रभाव पड़ सकते हैं।

छोटी अवधि के प्रभाव में प्रकाश के प्रति संवेदनशील होना या ‘फोटोकेराटाइटिस’ की चपेट में आना शामिल है, जिसे ‘स्नो ब्लाइंडनेस’ भी कहते हैं।

‘फोटोकेराटाइटिस’ कॉर्निया (पुतली की रक्षा करने वाला आंखों का सफेद सख्त हिस्सा, जो प्रकाश को अंदर आने देता है) के लिए ‘सनबर्न’ की तरह है। इसमें आंखों में सूजन, दर्द, लालिमा और प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता की शिकायत सताती है। ‘फोटोकेराटाइटिस’ आमतौर पर रोशनी से बचाव करने और दवाएं डालने पर ठीक हो जाता है।

वहीं, लंबी अवधि के प्रभाव बेहद गंभीर साबित हो सकते हैं। इनमें आंखों पर मांस का टुकड़ा ‘टेरिजियम’ उभर सकता है, जिसे ‘सर्फर आई’ भी कहा जाता है। अगर यह टुकड़ा कॉर्निया के ऊपर बढ़ने लगे, तो रोशनी बाधित हो सकती है। ‘टेरिजियम’ को हटाने के लिए सर्जरी की जरूरत पड़ती है।

लंबे समय तक यूवी विकिरणों के उच्च स्तर के संपर्क में रहने पर मोतियाबिंद का खतरा बढ़ने के साथ-साथ आंख और पलकों के ऊपर की त्वचा पर कैंसर होने का भी जोखिम रहता है।

त्वचा पर क्या असर पड़ता है?

-यूवी विकिरण त्वचा की रौनक छिनने और वक्त से पहले झुर्रियां पड़ने का कारण बन सकती हैं। ये विकिरणें त्वचा में मौजूद इलास्टिन और कोलैजन जैसे प्रोटीन को तोड़ती हैं, जिससे उसका लचीलापन कम होता है।

उपयुक्त सनग्लास कैसे चुनें?

-ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में सभी सनग्लास पर उनके सुरक्षा का स्तर बयां करने वाली श्रेणी दर्ज करना अनिवार्य है। दोनों देशों में पांच श्रेणी के लेंस उपलब्ध हैं। शून्य और पहली श्रेणी के सनग्लास सिर्फ फैशन के लिहाज से होते हैं। वहीं, दूसरी श्रेणी के सनग्लास सूर्य की चमक से मध्यम स्तर की सुरक्षा और यूवी विकिरणों से अच्छी सुरक्षा उपलब्ध कराते हैं। इसी तरह, तीसरी श्रेणी के सनग्लास सूर्य की चमक से उच्च स्तर की सुरक्षा और यूवी विकिरणों से अच्छी सुरक्षा देते हैं। चौथी श्रेणी के सनग्लास का लेंस बहुत गहरे रंग का होता है और केवल अत्यधिक चकाचौंध वाली जगहों पर इसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए। गाड़ी चलाते समय में इन्हें लगाने से बचना चाहिए।

(द कन्वरसेशन) पारुल दिलीप

दिलीप

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)