(विधुरा एस. तेनेकून, इंडियाना विश्वविद्यालय)
इंडियाना (अमेरिका), 24 सितंबर (द कन्वरसेशन)श्रीलंकाई मतदाताओं ने 22 सितंबर 2024 को दक्षिण एशियाई देश के राष्ट्रपति के रूप में गरीबी के खिलाफ अभियान चलाने वाले एक वामपंथी को चुनकर नेतृत्व में एक नयी दिशा के लिए मतदान किया।
अनुरा कुमारा दिसानायके का उत्थान अतीत और 2022 में देश को आर्थिक पतन के कगार पर ले जाने के लिए दोषी ठहराए गए स्थापित दलों और नेताओं को हाशिये पर धकेले जाने का प्रतीक है।
दिसानायके ने इस जीत को श्रीलंका के लिए एक ‘नई शुरुआत’ बताया। लेकिन उन्हें अपने पूर्ववर्तियों द्वारा छोड़ी गई आर्थिक विरासत और पीड़ादायक मितव्ययिता मांगों के साथ आए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ऋण के प्रभाव का समाधान करने की आवश्यकता होगी।
इंडियाना विश्वविद्यालय में श्रीलंका की अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञ विधुरा एस. तेनेकून की ओर रुख किया गया ताकि वह समझा सकें कि नए राष्ट्रपति के सामने कौन सी चुनौतियां हैं और दिसानायके इनसे कैसे निपटने का इरादा रखते हैं।
श्रीलंका के नए राष्ट्रपति के बारे में हम क्या जानते हैं?
अनुरा कुमारा दिसानायके नेशनल पीपुल्स पावर गठबंधन (एनपीपी) और जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) दोनों का नेतृत्व करते हैं। मार्क्सवादी विचारधारा के आधार पर जेवीपी की स्थापना 1960 के दशक में समाजवादी क्रांति के माध्यम से सत्ता हासिल करने के उद्देश्य से की गई थी। लेकिन 1971 और 1987-89 में दो असफल सशस्त्र विद्रोहों जिनमें हजारों लोगों की जान गई थी, के बाद पार्टी लोकतांत्रिक राजनीति की ओर मुखातिब हुई और तीन दशकों से अधिक समय से इसी पर कायम है।
इस चुनाव से पहले तक जेवीपी श्रीलंका के राजनीतिक परिदृश्य में तीसरी पार्टी बनी रही, जबकि सत्ता दो पारंपरिक राजनीतिक दलों यूनाइटेड नेशनल पार्टी और श्रीलंका फ्रीडम पार्टी या उनसे निकले दलों के नेतृत्व वाले गठबंधनों के बीच में ही रही।
दिसानायके के नेतृत्व में 2019 में एनपीपी का गठन कई अन्य संगठनों के साथ एक समाजवादी गठबंधन के रूप में किया गया जबकि जेवीपी मार्क्सवादी सिद्धांतों का पालन करती रही। एनपीपी ने एक मध्य -वाम, सामाजिक लोकतांत्रिक मंच का रुख अपनाया ताकि व्यापक समर्थन हासिल किया जा सके।
इन तमाम पहलों के बावजूद दिसानायके को 2019 के राष्ट्रपति चुनाव में महज तीन प्रतिशत मत मिले।
लेकिन 2022 के आर्थिक संकट के दौरान राजनीतिक परिदृश्य नाटकीय रूप से बदल गया। सात दशकों से अधिक समय तक देश पर शासन करने वाली दो पारंपरिक पार्टियों से निराश कई श्रीलंकाई मतदाताओं ने एक विश्वसनीय विकल्प के रूप में एनपीपी की ओर रुख किया।
पार्टी का भ्रष्टाचार विरोधी रुख, विशेष रूप से, दृढ़ता से प्रतिध्वनित हुआ क्योंकि कई लोगों ने आर्थिक संकट के लिए राजनीतिक भ्रष्टाचार को जिम्मेदार ठहराया। इसने दिसानायके को 42 प्रतिशत मत हासिल करने में मदद की।
एक महत्वपूर्ण उपलब्धि होने के साथ-साथ, यह श्रीलंका के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि भी है क्योंकि दिसानायके बहुमत के समर्थन के बिना चुने जाने वाले पहले राष्ट्रपति हैं; शेष 58 प्रतिशत वोट दो पारंपरिक दलों के उम्मीदवारों के बीच विभाजित हुए हैं।
उनकी तात्कालिक चुनौती आगामी चुनावों में संसदीय बहुमत हासिल करना होगा, जो उनके प्रशासन के लिए प्रभावी ढंग से शासन करने के लिए महत्वपूर्ण है।
दिसानायके को किस प्रकार की अर्थव्यवस्था विरासत में मिली है?
करीब ढाई साल पहले श्रीलंका ने अपने इतिहास में सबसे खराब आर्थिक संकट का अनुभव किया। विदेशी मुद्रा भंडार लगभग समाप्त होने के साथ, देश को अपने आयात बिल का भुगतान करने में संघर्ष करना पड़ा, जिससे आवश्यक वस्तुओं की भारी कमी हो गई। लोग रसोई गैस और ईंधन के लिए लंबी कतारों में इंतजार कर रहे थे, जबकि नियमित बिजली कटौती दैनिक जीवन का हिस्सा बन गयी थी।
श्रीलंकाई रुपये का रिकॉर्ड स्तर पर अवमूल्यन हुआ जिससे मुद्रास्फीति 70 प्रतिशत तक पहुंच गई। अर्थव्यवस्था सिकुड़ रही थी, और देश पहली बार अपनी अंतरराष्ट्रीय देनदारी देने से चूका।
इससे एक बड़े विरोध आंदोलन की शुरुआत हुई जिसने अंततः राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया। जुलाई 2022 में, संसद ने राजपक्षे के शेष कार्यकाल को पूरा करने के लिए रानिल विक्रमसिंघे को राष्ट्रपति नियुक्त किया।
इसके बाद के दो वर्षों में विक्रमसिंघे के नेतृत्व में श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में अप्रत्याशित रूप से तेजी से सुधार हुआ। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ)के साथ एक समझौता होने पर स्थानीय मुद्रा स्थिर हो गई, केंद्रीय बैंक ने विदेशी मुद्रा भंडार का पुनर्निर्माण किया और महंगाई दर गिरकर एक अंक में आ गई। 2024 की पहली छमाही तक अर्थव्यवस्था पांच प्रतिशत की दर से बढ़ी है।
सरकार ने सफलतापूर्वक अपने घरेलू ऋण का पुनर्गठन किया, इसके बाद अपने द्विपक्षीय ऋण का भी पुनर्गठन किया जो सरकार द्वारा सरकारों से लिया गया ऋण था। इनमें से ज्यादातर चीन से लिया गया ऋण था लेकिन अमेरिका, भारत और पश्चिमी देशों से भी कर्ज लिया गया।
चुनाव से कुछ ही दिन पहले, शेष संप्रभु ऋण के पुनर्गठन के लिए अंतरराष्ट्रीय बांडधारकों के साथ एक समझौता किया गया।
इन उपलब्धियों के बावजूद, विक्रमसिंघे राष्ट्रपति पद की दौड़ में दिसानायके और विपक्षी नेता साजिथ प्रेमदासा दोनों से पिछड़ गए। विक्रमसिंघे की अलोकप्रियता काफी हद तक आईएमएफ समर्थित स्थिरीकरण कार्यक्रम के तहत लागू किए गए कठोर मितव्ययिता उपायों से उपजी है।
दिसानायके को अब एक ऐसी अर्थव्यवस्था विरासत में मिली है, जो अधिक स्थिर होते हुए भी उस पर खतरा बना हुआ है। उनके पास अपने पूर्ववर्ती द्वारा निर्धारित सावधानीपूर्वक नियोजित आर्थिक रास्ते से हटने की सीमित गुंजाइश होगी, भले ही मतदाता उनसे लोकप्रिय मांगों को पूरा करने की उम्मीद करते हों।
दिसानायके ने श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को सुधारने की क्या योजना बनाई है?
एक मार्क्सवादी पार्टी के नेता के रूप में दिसानायके संभवतः अपने व्यक्तिगत विचारों के बजाय एनपीपी और जेवीपी के पोलित ब्यूरो और केंद्रीय समितियों द्वारा किए गए सामूहिक निर्णयों को प्रतिबिंबित करने वाली नीतियों का अनुसरण करेंगे। वह ‘आर्थिक लोकतंत्र’ के महत्व पर बल देते हुए एक ऐसी आर्थिक प्रणाली की वकालत करते हैं जहां गतिविधियों को केंद्र सरकार की योजना के माध्यम से समन्वित किया जाता है।
उनकी पार्टी का मानना है कि समृद्धि को सिर्फ आर्थिक विकास से नहीं बल्कि जीवन की समग्र गुणवत्ता से मापा जाना चाहिए। उनका तर्क है कि लोगों को बुनियादी जरूरतों से कहीं अधिक सुरक्षित आवास, भोजन, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और प्रौद्योगिकी तक पहुंच की आवश्यकता है।
श्रीलंका कहां है ?
दिसानायके की दीर्घकालिक दृष्टि भारतीय उपमहाद्वीप के दक्षिणी हिस्से में स्थित 2.2 करोड़ आबादी वाले श्रीलंका को उत्पादन आधारित अर्थव्यवस्था में तब्दील करने की है और सेवा उद्योगों पर ध्यान देने के बजाय विनिर्माण, कृषि और सूचना प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने पर है। प्रमुख नीतियों में से एक आयात पर निर्भरता कम करने के लिए सभी व्यवहार्य खाद्य उत्पादों के स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देना है। इन गतिविधियों का समर्थन करने के लिए, एनपीपी ने एक विकास बैंक स्थापित करने की योजना बनाई है। इसके अलावा एनपीपी ने श्रीलंका की परंपरा के अनुरूप मुफ्त, सार्वभौमिक पहुंच प्रदान करने के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल पर सरकारी खर्च बढ़ाने का प्रस्ताव किया है।
इससे आईएमएफ ऋण का क्या होगा?
दिसानायके की पार्टी ऐतिहासिक रूप से आईएमएफ और उसकी नीतिगत सिफारिशों की आलोचना करती रही है। श्रीलंका के आर्थिक संकट की गंभीरता को देखते हुए, दिसानायके ने फिलहाल आईएमएफ कार्यक्रम में बने रहने की आवश्यकता को स्वीकार किया है। लेकिन उन्होंने कार्यक्रम को अधिक ‘जनहितैषी’ बनाने के लिए आईएमएफ से दोबारा बातचीत करने का संकल्प लिया है।
दिसानायके के प्रस्ताव में व्यक्तिगत आयकर की छूट सीमा को मौजूदा समय से दोगुना करना और आवश्यक वस्तुओं से कर हटाना है।
दिसानायके की पार्टी की योजना खर्चों को कम करने के लिए सरकारी कार्यबल को कम करने के मौजूदा प्रयास के विपरीत सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरियों की संख्या बढ़ाने की है।
दिसानायके ने चुनाव प्रचार के दौरान समर्थन हासिल करने के उद्देश्य से लोकलुभावन नीतियों की घोषणा की जिन्हें पूरा करने पर निश्चित रूप से खर्चों में वृद्धि होगी और राजकोष पर दबाव बढ़ेगा।
हालांकि, आईएमएफ कार्यक्रम के तहत श्रीलंका को ऋण स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सकल घरेलू उत्पाद का कम से कम 2.3 प्रतिशत प्राथमिक बजट अधिशेष बनाए रखने की आवश्यकता है।
दिसानायके ने वादा किया है कि वह इस लक्ष्य से हटकर देश की आर्थिक स्थिरता को खतरे में नहीं डालेंगे। उनकी रणनीति कर संग्रह की दक्षता में सुधार करना है। उनका मानना है कि इससे उनकी नीतियों को लागू करने के लिए पर्याप्त राजस्व होगा।
इसके अलावा, उनकी पार्टी ने विक्रमसिंघे सरकार द्वारा अंतरराष्ट्रीय ऋणदाताओं के साथ किए गए समझौतों की आलोचना की है और इसे देश के लिए प्रतिकूल बताया है।
दिसानायके ने वादा किया है कि वह बेहतर शर्तों की मांग करेंगे। हालांकि, ये समझौते पहले ही किए जा चुके हैं, इसलिए यह स्पष्ट नहीं है कि नयी सरकार दोबारा बातचीत करने की कोशिश करेगी या नहीं।
(द कन्वरसेशन)
धीरज नरेश
नरेश
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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