(मोनिका फेही, एमिली एन्स, पैट्रिक कुक, मैक्वेरी विश्वविद्यालय; मौरिजियो रोसेट्टो, क्वींसलैंड विश्वविद्यालय; ओलिवर कोस्टेलो, स्वदेशी मामलों के जानकार)
क्वींसलैंड, 18 सितंबर (द कन्वरसेशन) सहस्राब्दियों से, मूल निवास या स्वदेश के बारे में ज्ञान रखने वाले लोगों ने उसे अगली पीढ़ी तक पहुंचाया है। बहुत सी कहानियां और जानकारियां लोगों और देश के बीच संबंधों का वर्णन करती हैं, जिसमें रिश्तेदारों के रूप में अन्य प्रजातियों की देखभाल करने से जुड़ी संरक्षक जिम्मेदारियां भी शामिल हैं।
प्रत्येक प्रजाति अपने डीएनए में बदलाव और स्थान परिवर्तन का इतिहास रखती है। एक प्रजाति का एक व्यक्ति दूसरे से कितना संबंधित है, इसका आकलन करके, विकासवादी पारिस्थितिकीविद् यह अनुमान लगा सकते हैं कि एक प्रजाति ने अतीत में कैसे प्रवास किया।
जब हम दोनों तरह के ज्ञान – विद्या और आनुवंशिकी – को जोड़ते हैं तो हम नई खोज कर सकते हैं। हमारे हालिया शोध में आनुवंशिकी तकनीकों और प्रथम राष्ट्र के बारे में जानकारी रखने वालों के साथ साक्षात्कार का उपयोग किया गया है ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या प्रथम राष्ट्र के लोगों ने सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण दो खाद्य स्रोतों – बन्या पाइन(एक प्रकार का चीड़ का पेड़) और ब्लैक बीन के पेड़ों को स्थानांतरित किया था।
बन्या पाइन
बन्या पाइन (अराकेरिया बिडविली) एक प्राचीन देशी शंकुधारी वृक्ष है जिसका पूर्वी ऑस्ट्रेलिया के कई भाषा समूहों के लिए सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व है।
हजारों वर्षों से, मूल निवासी समूह पश्चिमी डाउन्स में ‘वाक्का वाक्का कंट्री’ और सनशाइन कोस्ट के भीतरी क्षेत्र में ‘काबी काबी कंट्री’ जैसे स्थानों पर सभाओं व सम्मेलन में मेवे बांटने के लिए एकत्रित होते रहे थे। आखिरी बार ऐसा प्रमुख सम्मेलन 1902 में हुआ था, लेकिन हाल के वर्षों में वे पुनः शुरू हो गए हैं।
बन्या पाइन के पेड़ क्वींसलैंड के दक्षिण-पूर्व में उगते हैं। वे 1,400 किलोमीटर उत्तर में, केर्न्स के पास आर्द्र उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में भी पाए जाते हैं।
हाल में हुए एक अध्ययन में, सह-लेखक पैट्रिक कुक ने दक्षिण-पूर्व क्वींसलैंड और आर्द्र उष्णकटिबंधीय दोनों स्थानों पर प्रथम स्वदेशी समूहों का साक्षात्कार लिया, ताकि बन्या पाइन के उपयोग पर स्वदेशी जैव-सांस्कृतिक संबंधी ज्ञान को दर्ज किया जा सके।
एक अन्य अध्ययन में, पारंपरिक ज्ञान रखने वाले लोगों और इस अध्ययन के मुख्य लेखक ने उत्तरी और दक्षिणी स्थानों में इस शंकुधारी वृक्ष की ऐतिहासिक गतिविधि का पता लगाने के लिए बन्या पाइन के पत्तों से डीएनए नमूने एकत्र किए। आनुवंशिक परिणामों की व्याख्या जैव-सांस्कृतिक ज्ञान और अभिलेखीय साक्ष्य के संदर्भ में की गई।
हमने क्या पाया?
आर्द्र उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में, हमें बन्या पाइन के लिए पारंपरिक नाम या जैव-सांस्कृतिक ज्ञान नहीं मिला। डीएनए नमूनों में लोगों या जानवरों द्वारा इसके स्थानांतरण का भी कोई सबूत नहीं मिला। इससे पता चलता है कि यह इस क्षेत्र में मूल निवासी समूहों के लिए एक महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत नहीं था। मानव द्वारा इसके प्रसार के अभाव में, बन्या पाइन के अवशेष आनुवंशिक रूप से पृथक हो गए हैं।
इसके विपरीत, दक्षिण-पूर्व क्वींसलैंड के समूहों के पास बन्या पाइन के बारे में समृद्ध जैव-सांस्कृतिक ज्ञान था। डीएनए नमूनों में स्पष्ट रूप से स्थानांतरण के सबूत मिले, जो इस बात से मेल खाते हैं कि लोग पेड़ की इस प्रजाति को सक्रिय रूप से इधर-उधर ले जा रहे थे।
ब्लैक बीन पेड़
बन्या पाइन की तरह, ब्लैक बीन (कास्टानोस्पर्मम ऑस्ट्रेल) के पेड़ हजारों सालों से एक महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत रहे हैं। इसके बड़े बीज जहरीले होते हैं, लेकिन उन्हें खाने योग्य बनाया जा सकता है।
यहां, हमें सबूत मिले हैं कि इस वर्षावन प्रजाति को तेजी से फैलाया गया था।
इस पेड़ के बीज नदियों में बहकर नए स्थानों पर पहुचे हैं। मजे की बात यह है कि पेड़ किसी भी जलमार्ग से बहुत दूर पाया जा सकता है। ऐसे में यह दूसरे स्थानों पर कैसे पहुचे?
हमें सबूत मिले कि बुंदजालुंग समूहों ने हजारों साल पहले ब्लैक बीन को फैलाया था। उनके द्वारा ऐसा तब किया गया, जब उन्होंने उत्तरी न्यू साउथ वेल्स में नाइटकैप, बॉर्डर और मैकफर्सन पर्वतमाला की यात्रा की।
बुंदजालुंग समूहों ने पूर्वी तट से अपने मूल स्थान की यात्रा के दौरान ब्लैक बीन के बीज बिखेरे थे।
(द कन्वरसेशन) शफीक नरेश
नरेश
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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