Sheikh Hasina leaves Dhaka Palace | sheikh hasina resignation

Shieikh Hasina Biography: शेख हसीना के मां-पिता और तीन भाइयों का कर दिया गया था क़त्ल.. इंदिरा गांधी ने भी दिया था शरण, हुआ था ग्रेनेड से अटैक..

हसीना साल 1981 में बांग्लादेश लौटीं। जब वह एयरपोर्ट पहुंचीं तो उन्हें रिसीव करने के लिए लाखों लोग आए। बांग्लादेश लौटने के बाद शेख हसीना ने अपनी पिता की पार्टी को आगे बढ़ाने का फैसला लिया और साल 1986 में पहली बार आम चुनाव में उतरीं।

Edited By :   Modified Date:  August 5, 2024 / 04:21 PM IST, Published Date : August 5, 2024/4:21 pm IST

Sheikh Hasina leaves Dhaka Palace: ढाका: बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने सोमवार देश में चल रहे हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बीच अपनी पद से इस्तीफा दे दिया। इतना ही नहीं वह राजधानी ढाका छोड़ किसी सुरक्षित जगह पर के लिए निकल गई हैं। सूत्रों के अनुसार ऐसा माना जा रहा है कि पीएम शेख हसीना देश छोड़कर किसी सुरक्षित ठिकाने पर चली गई हैं। वहीं प्रदर्शनकारी शेख हसीना के घर में घुस गए हैं और तोड़फोड़ कर रहे हैं। बांग्लादेश आर्मी चीफ ने हसीना से कहा था कि उनको सम्मानजनक तरीके से इस्तीफा देकर सत्ता से हट जाना चाहिए। इस बीच बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के बेटे ने सुरक्षा बलों से किसी भी अनिर्वाचित सरकार को सत्ता में आने से रोकने का आग्रह किया है।

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Who is Sheikh Hasina?

कौन हैं शेख हसीना?

शेख हसीना का जन्म 28 सितंबर 1947 को हुआ था। हसीना बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की सबसे बड़ी बेटी हैं। हसीना की शुरुआती जीवन पूर्वी बंगाल के तुंगीपाड़ा में व्यतीत हुआ है। उनकी स्कूली शिक्षा-दीक्षा भी यही हुई है। शेख हसीना ने इसके बाद का समय सेगुनबागीचा में बिताया। कुछ वक़्त बाद शेख हसीना परिवार के साथ बांग्लादेश की राजधानी ढाका चली गई।

Sheikh Hasina leaves Dhaka Palace: शेख हसीना की शुरुआत में राजनीति में दिलचस्पी नहीं थी। साल 1966 में जब वह ईडन महिला कॉलेज में पढ़ रही थीं, तब उनकी राजनीति में दिलचस्पी जगी। स्टूडेंट यूनियन का चुनाव लड़कर वाइस प्रेसिडेंट बनीं। इसके बाद उन्होंने अपने पिता मुजीबुर रहमान की पार्टी आवामी लीग के स्टूडेंट विंग का काम संभालने का फैसला किया। शेख हसीना यूनिवर्सिटी ऑफ ढाका में भी स्टूडेंट पॉलिटिक्स में सक्रिय रहीं।

शेख हसीना की निजी जिंदगी 1975 में तब पलट गई जब बांग्लादेश की सेना ने उनके परिवार के साथ विद्रोह कर दिया और फि झड़प में सेना ने शेख हसीना की मां, उनके पिता शेख मुजीबुर रहमान और तीन भाइयों को मौत के घाट उतार दिया। हालांकि हसीना और और उसकी बहन को कुछ नहीं हुआ। इस दौरान वे यूरोप में थे। मां बाप और तीन भाईयों की हत्या के बाद शेख हसीना कुछ समय तक जर्मनी में रहीं। इसके बाद इंदिरा गांधी सरकार ने उन्हें भारत में शरण दी। वह अपनी बहन के साथ दिल्ली आ गईं और करीब 6 साल यहां रहीं।

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Sheikh Hasina leaves Dhaka Palace: हसीना साल 1981 में बांग्लादेश लौटीं। जब वह एयरपोर्ट पहुंचीं तो उन्हें रिसीव करने के लिए लाखों लोग आए। बांग्लादेश लौटने के बाद शेख हसीना ने अपनी पिता की पार्टी को आगे बढ़ाने का फैसला लिया और साल 1986 में पहली बार आम चुनाव में उतरीं। हालांकि उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन विपक्ष की नेता चुन ली गईं। सन 1991 में एक तरीके से पहली बार बांग्लादेश में स्वतंत्र तौर पर चुनाव हुए। इस चुनाव में शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग को बहुम बहुमत नहीं मिला। उनकी विपक्षी खालिदा जिया की पार्टी सत्ता में आई।

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