क्रिस्टल में छिपा है ज्वालामुखियों का गोपनीय इतिहास, भविष्य के विस्फोटों के भी देते सुराग |

क्रिस्टल में छिपा है ज्वालामुखियों का गोपनीय इतिहास, भविष्य के विस्फोटों के भी देते सुराग

क्रिस्टल में छिपा है ज्वालामुखियों का गोपनीय इतिहास, भविष्य के विस्फोटों के भी देते सुराग

:   Modified Date:  September 11, 2024 / 05:43 PM IST, Published Date : September 11, 2024/5:43 pm IST

(टेरेसा उबाइड, क्वींसलैंड विश्वविद्यालय)

ब्रिस्बेन, 11 सितंबर (द कन्वरसेशन) कल्पना कीजिए कि आपके पास एक क्रिस्टल की गेंद है जो यह बताती है कि ज्वालामुखी अगली बार कब फटेगा। दुनिया भर में सक्रिय ज्वालामुखियों के आस-पास रहने वाले करोड़ों लोगों के लिए यह एक बेहद उपयोगी उपकरण होगा।

जैसी कि जानकारी मिली है कि कुछ क्रिस्टल वास्तव में ज्वालामुखी विस्फोटों की भविष्यवाणी करने में हमारी मदद कर सकते हैं। ये क्रिस्टल पृथ्वी के अंदर पिघली हुई चट्टान से सतह की ओर आने के दौरान बनते हैं।

वैज्ञानिक प्रक्रिया में तेजी से होते विकास से हम इन क्रिस्टल से ज्वालामुखियों का गुप्त इतिहास पता कर सकते हैं – जैसे कि पिछले विस्फोटों का कारण, स्थान और समय।

यह ऐतिहासिक जानकारी हमें यह समझने में मदद कर सकती है कि क्या भूकंप जैसे घटनाक्रम ज्वालामुखी में सतह की ओर मैग्मा की गति को ट्रैक करने का संकेत दे सकते हैं। इसलिए, जैसा कि मैंने ‘नेचर जियोसाइंस’ पत्रिका में एक नए स्तंभ में बताया है, हम क्रिस्टल की गेंद (कम से कम ज्वालामुखियों के लिए) बनाने के करीब पहुंच रहे हैं।

ज्वालामुखी से संबंधित क्रिस्टल की गेंद

मैग्मा अति गर्म पिघली चट्टान है जो ज्वालामुखी विस्फोटों का कारण बनती है। यह पृथ्वी के ‘मेंटल’ में सतह से कई किलोमीटर नीचे उत्पन्न होती है।

सतह तक आने की यात्रा में मैग्मा रास्ते में विभिन्न स्थानों पर रुक सकता है, तथा एक जटिल मार्ग से होते हुए अंततः ज्वालामुखी के मुख की ओर बढ़ सकता है। जैसे-जैसे मैग्मा ऊपर उठता है, वह ठंडा भी होता है, जिससे छोटे-छोटे क्रिस्टल बनते हैं, जिन्हें विस्फोट के दौरान सतह पर लाया जा सकता है।

जब मैग्मा सतह पर पहुंचता है, तो यह बह सकता है, लावा उत्पन्न कर सकता है या विस्फोट कर सकता है, जिससे ‘पाइरोक्लास्ट’ नामक खंडित कण उत्पन्न होते हैं। एक बार जब लावा और पाइरोक्लास्ट ठंडे हो जाते हैं, तो वे ज्वालामुखीय चट्टानें बनाते हैं जिनमें गहराई से आए क्रिस्टल होते हैं।

हमारी बहुमूल्य क्रिस्टल की गेंदें सतह तक की गर्म और जटिल यात्रा और विस्फोट से बच गई हैं, और ज्वालामुखी के अंदर उन्होंने जो कुछ भी ‘‘देखा’’ उनकी स्मृति अंकित हो गयी है।

क्रिस्टल उन्हें बनाने वाले खनिज के कारण अलग-अलग दिखते हैं। उदाहरण के लिए, हरा ओलिवाइन हवाई द्वीप के पास के ज्वालामुखी से निकले लावा में बहुत आम है, और सफेद प्लेगियोक्लेज क्वींसलैंड और न्यू साउथ वेल्स की सीमा पर ट्वीड ज्वालामुखी के लावा में मिलता है जो चॉकलेट जितना बड़ा हो सकता है।

ज्वालामुखियों को समझने में सहायक एक बहुत ही महत्वपूर्ण खनिज ‘क्लिनोपायरॉक्सीन’ कहलाता है। यह चमकदार काले क्रिस्टल बनाता है, जिनमें विशेष रूप से बहुमूल्य जानकारी होती है।

‘क्लिनोपायरॉक्सीन’ में दर्ज जानकारी कैसी दिखती है?

क्लिनोपायरॉक्सीन क्रिस्टल अक्सर छोटे रेत के दाने के आकार के होते हैं। लेकिन सूक्ष्मदर्शी के नीचे, वे अपने विकास से जुड़ी बातें शानदार तरीके से बता सकते हैं कि विस्फोट से पहले ज्वालामुखी के अंदर क्या होता है।

क्रिस्टल संकेंद्रित क्षेत्रों में क्रमिक रूप से बढ़ते हैं, बिल्कुल पेड़ के छल्लों की तरह। और जिस तरह पेड़ के छल्लों में जलवायु परिवर्तन का रिकॉर्ड होता है, उसी तरह क्लिनोपायरॉक्सीन क्षेत्रों का रसायन विज्ञान ज्वालामुखी के अंदर मैग्मा के वातावरण में बदलाव के साथ बदल जाता है।

क्रिस्टल के किनारे पर अंतिम विकास क्षेत्र विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हमें बताता है कि क्या विस्फोट गहराई से उठने वाले नए मैग्मा द्वारा धकेले जाने से हुआ था। हम यह भी अनुमान लगा सकते हैं कि मैग्मा को सतह तक पहुंचने में कितना समय लगता है, उदाहरण के लिए ज्वालामुखी के अंदर रहने के दौरान क्रिस्टल में रासायनिक परिवर्तनों के धुंधलेपन को मापकर ऐसा किया जा सकता है।

यह जानकारी भविष्य में ज्वालामुखी की निगरानी के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि भूकंप या ज्वालामुखी से निकलने वाली गैसों के रसायन विज्ञान में परिवर्तन के आधार पर बताया जा सकता है कि ज्वालामुखी के नीचे नया मैग्मा कब उभर रहा है। अगर हमें पता हो कि विस्फोट से पहले नया मैग्मा आ रहा है, तो हमें पहले से ही चेतावनी मिल जाएगी।

क्लिनोपायरॉक्सीन क्रिस्टल अलग-अलग दिशाओं में अलग-अलग संरचनाओं के साथ भी बढ़ सकते हैं, जो हमें और भी सुराग देते हैं। इसे सेक्टर जोनिंग कहा जाता है और यह क्रिस्टल के अंदर एक घंटे के आकार जैसा दिखता है।

यह उपयोगी है क्योंकि यह हमें बताता है कि क्रिस्टल अपेक्षाकृत तेज़ी से बढ़ा, जो बताता है कि मैग्मा विस्फोट से पहले अन्य मैग्मा के साथ मिश्रण, संवहन, ऊपर उठना या गैसों को छोड़ने जैसी जटिल घटनाओं से गुजरा। सक्रिय ज्वालामुखियों की निगरानी करते समय, हम सतह से इन प्रक्रियाओं के अप्रत्यक्ष संकेतों को देख सकते हैं ताकि यह पता लगाया जा सके कि विस्फोट हो सकता है या नहीं।

ज्वालामुखी के अंदर विस्फोट के उत्प्रेरक कहां होते हैं, इसका पता लगाना भी महत्वपूर्ण है। इससे हमें पता चल सकता है कि भूकंप की गहराई या विकृति विशेष रूप से आगामी विस्फोट का संकेत है या नहीं।

ज्वालामुखी का इतिहास जानने के लिए हम क्रिस्टल रसायन विज्ञान का उपयोग कैसे कर सकते हैं?

क्लिनोपायरॉक्सीन की रासायनिक संरचना भी इसमें मदद करती है, क्योंकि यह हमें क्रिस्टल बनने के समय दबाव की स्थिति के बारे में बताता है, जिसके आधार पर सतह के नीचे मैग्मा भंडारण की गहराई को मापा जा सकता है।

इन छोटे क्रिस्टल में रासायनिक भिन्नताओं को मापने के लिए कुछ जटिल प्रयोगशाला कार्य किए जाते हैं। हम ज्वालामुखीय क्रिस्टल पर दागे जाने वाले बाल जितने पतले लेजर या मेलबर्न में मौजूद विशाल कण एक्सीलेटर से निकलने वाले सिंक्रोट्रॉन प्रकाश जैसे उपकरणों का उपयोग करते हैं, जिन्हें बैक्टीरिया जितनी छोटी किरण में केंद्रित किया जा सकता है।

यह सूक्ष्म-स्तरीय विश्लेषण हमें ज्वालामुखी से निकले क्रिस्टल की मदद से मैग्मा के रहस्यों का पता लगाने में मदद करता है, ताकि ज्वालामुखी की आंतरिक संरचना का पुनर्निर्माण किया जा सके।

(द कन्वरसेशन)

धीरज वैभव

वैभव

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)