समस्याओं का समाधान युद्ध के मैदान से नहीं निकल सकता : प्रधानमंत्री मोदी ने की शांति की अपील |

समस्याओं का समाधान युद्ध के मैदान से नहीं निकल सकता : प्रधानमंत्री मोदी ने की शांति की अपील

समस्याओं का समाधान युद्ध के मैदान से नहीं निकल सकता : प्रधानमंत्री मोदी ने की शांति की अपील

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Modified Date: October 11, 2024 / 08:40 PM IST
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Published Date: October 11, 2024 8:40 pm IST

(तस्वीरों के साथ)

विएंतियान (लाओस), 11 अक्टूबर (भाषा) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विश्व के विभिन्न भागों में जारी संघर्षों का सबसे अधिक नकारात्मक प्रभाव ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों पर पड़ने का उल्लेख करते हुए यूरेशिया और पश्चिम एशिया में यथाशीघ्र शांति एवं स्थिरता की बहाली का शुक्रवार को आह्वान किया।

मोदी ने 19वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईएएस) को संबोधित करते हुए कहा कि समस्याओं का समाधान युद्ध के मैदान से नहीं निकल सकता।

उन्होंने साथ ही कहा कि स्वतंत्र, मुक्त, समावेशी, समृद्ध और नियम-आधारित हिंद-प्रशांत पूरे क्षेत्र में शांति तथा प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है।

मोदी ने मेजबान देश लाओ पीडीआर और आगामी अध्यक्ष मलेशिया के बाद शिखर सम्मेलन को संबोधित किया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि रणनीतिक वार्ता के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र का प्रमुख मंच पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति का एक प्रमुख स्तंभ है।

उन्होंने क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता के बीच कहा कि दक्षिण चीन सागर में शांति, सुरक्षा और स्थिरता पूरे हिंद-प्रशांत क्षेत्र के हित में है।

मोदी ने कहा कहा, ‘‘हमारा मानना ​​है कि समुद्री गतिविधियां संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (यूएनसीएलओएस) के तहत संचालित की जानी चाहिए। नौवहन और वायु क्षेत्र की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना आवश्यक है। एक मजबूत और प्रभावी आचार संहिता बनाई जानी चाहिए और इससे क्षेत्रीय देशों की विदेश नीति पर कोई अंकुश नहीं लगना चाहिए।’’

उन्होंने किसी देश का नाम लिए बिना कहा, ‘‘हमारा दृष्टिकोण विकासवाद का होना चाहिए, न कि विस्तारवाद का।’’

उन्होंने कहा कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में चल रहे संघर्षों के कारण सबसे अधिक नकारात्मक रूप से प्रभावित देश ‘ग्लोबल साउथ’ के हैं। उन्होंने कहा कि यूरेशिया और पश्चिम एशिया जैसे क्षेत्रों में जल्द से जल्द शांति और स्थिरता बहाल करने की सामूहिक इच्छा है।

मोदी ने यह टिप्पणी लंबे समय से जारी रूस-यूक्रेन संघर्ष और पश्चिम एशिया में इजराइल-हमास युद्ध की पृष्ठभूमि में की।

‘ग्लोबल साउथ’ शब्द आम तौर पर लातिन अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ओशिनिया के क्षेत्रों के आर्थिक रूप से कम विकसित देशों के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं बुद्ध की धरती से आता हूं और मैंने बार-बार कहा है कि यह युद्ध का युग नहीं है। समस्याओं का समाधान युद्ध के मैदान से नहीं निकल सकता।’’

प्रधानमंत्री ने कहा कि क्षेत्रीय अखंडता और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सम्मान करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि मानवीय दृष्टिकोण से, “हमें संवाद और कूटनीति पर अधिक जोर देना चाहिए।”

उन्होंने कहा कि विश्वबंधु की जिम्मेदारी निभाते हुए भारत इस दिशा में हरसंभव योगदान देता रहेगा।

उनकी यह टिप्पणी यूरेशिया में यूक्रेन और रूस के बीच संघर्ष तथा पश्चिम एशिया में इजराइल-हमास युद्ध के बीच आई है।

मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि आतंकवाद वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए भी एक गंभीर चुनौती है। उन्होंने कहा कि इसका मुकाबला करने के लिए मानवता में विश्वास रखने वाली ताकतों को एक साथ आना होगा और मिलकर काम करना होगा।

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘हमें साइबर, समुद्री और अंतरिक्ष के क्षेत्रों में आपसी सहयोग को मजबूत करना होगा।’’

अपने संबोधन की शुरुआत में उन्होंने ‘तूफान यागी’ से प्रभावित लोगों के प्रति अपनी गहरी संवेदना भी व्यक्त की। ‘यागी’ एक विनाशकारी उष्णकटिबंधीय चक्रवात था, जिसने इस वर्ष सितंबर में दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिण चीन को प्रभावित किया था।

मोदी ने कहा, ‘‘इस कठिन समय में हमने ऑपरेशन सद्भाव के जरिये मानवीय सहायता प्रदान की है।’’

उन्होंने यह भी कहा कि भारत ने हमेशा आसियान (दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संघ) की एकता और प्रमुखता का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि आसियान भारत के हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण और ‘क्वाड’ सहयोग के केन्द्र में भी है।

उन्होंने कहा, ‘‘भारत की ‘हिंद-प्रशांत महासागर पहल’ और ‘हिंद-प्रशांत पर आसियान के दृष्टिकोण’ के बीच गहरी समानताएं हैं।’’

मोदी ने कहा, ‘‘हम म्यांमा की स्थिति के प्रति आसियान के दृष्टिकोण का समर्थन करते हैं। हम पांच सूत्री सहमति का भी समर्थन करते हैं। साथ ही, हमारा मानना ​​है कि वहां मानवीय सहायता को बनाए रखना महत्वपूर्ण है।’’

उन्होंने वहां लोकतंत्र की बहाली के लिए उचित कदम उठाने का आह्वान किया। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘‘हमारा मानना ​​है कि इसके लिए म्यांमा को शामिल किया जाना चाहिए, अलग-थलग नहीं किया जाना चाहिए।’’

उन्होंने कहा कि पड़ोसी देश के रूप में भारत अपनी जिम्मेदारी निभाता रहेगा।

मोदी ने कहा कि नालंदा के पुनरुद्धार की प्रतिबद्धता पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में व्यक्त की गई थी।

उन्होंने कहा, ‘‘नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर का जून में उद्घाटन करके हमने अपनी प्रतिबद्धता को पूरा किया है। मैं यहां उपस्थित सभी देशों को नालंदा में आयोजित होने वाले ‘उच्च शिक्षण संस्थानों के प्रमुखों के सम्मेलन’ में शामिल होने के लिए आमंत्रित करता हूं।’’

मोदी ने कहा, ‘‘मैं आज के शिखर सम्मेलन का शानदार आयोजन करने के लिए प्रधानमंत्री सोनेक्‍साय सिपानदोन को हार्दिक बधाई देता हूं। इस सम्मेलन का अगला अध्यक्ष बनने जा रहे मलेशिया को मैं अपनी शुभकामनाएं देता हूं और उन्हें सफल अध्यक्षता के लिए भारत के पूर्ण समर्थन का आश्वासन देता हूं।”

बाद में, ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में मोदी ने कहा, “विएंतियान, लाओ पीडीआर में आयोजित 19वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में भाग लिया। भारत आसियान के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों को बहुत महत्व देता है। हम आने वाले समय में इस संबंध को और भी अधिक गति देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”

उन्होंने कहा, “हमारी ‘एक्ट ईस्ट नीति’ ने काफी लाभ पहुंचाया है और एक बेहतर धरती के निर्माण में योगदान दिया है। साथ ही, हम एक ऐसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र की दिशा में काम करना चाहते हैं जो नियम-आधारित, स्वतंत्र, समावेशी और खुला हो।”

ईएएस में 18 सदस्य देश-10 आसियान देश (ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमा, फिलिपीन, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम) के अलावा ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया, रूस और अमेरिका शामिल हैं।

विदेश मंत्रालय में सचिव (पूर्वी) जयदीप मजूमदार ने बाद में यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि नेताओं ने उन क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मामलों पर विचारों का आदान-प्रदान किया जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र और उससे भी परे शांति, स्थिरता और समृद्धि को प्रभावित करते हैं।

मजूमदार ने कहा, ‘‘अपने आगमन के बाद से मोदी ने आसियान-भारत शिखर सम्मेलन, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन और विभिन्न द्विपक्षीय वार्ताओं सहित विभिन्न मंचों पर गहन संवाद किए।’’

विदेश मंत्रालय के अधिकारी ने बताया कि आसियान नेताओं ने भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति के परिणामस्वरूप विविध क्षेत्रों में सहयोग और डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना में भारत की अग्रणी भूमिका और इससे आसियान देशों के काफी लाभान्वित होने के तथ्य के मद्देनजर ‘‘हमारे सहयोग का बहुत सकारात्मक आकलन किया।’’

भाषा सिम्मी वैभव

वैभव

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)