(एम. जुल्करनैन)
लाहौर, चार नवंबर (भाषा) पाकिस्तान की सांस्कृतिक राजधानी लाहौर में वायु गुणवत्ता की खतरनाक स्थिति के बीच सोमवार को पंजाब सूबे के मंत्रियों ने भारत की ओर से आने वाली हवाओं को जिम्मेदार ठहराते हुए भारत के अधिकारियों से मामले को गंभीरता से लेने का आग्रह किया।
भारत की सीमा से लगे शहर लाहौर में पिछले महीने से ही वायु की गुणवत्ता खराब होने लगी है, और विषैले धुएं से मुख्य रूप से बच्चों तथा बुजुर्गों समेत हजारों लोग बीमार होने लगे हैं।
पंजाब पर्यावरण संरक्षण विभाग ने बताया कि हवा में पीएम 2.5 या सूक्ष्म कणों की सांद्रता 450 के करीब पहुंच गई है, जिसे खतरनाक माना जाता है।
प्रदूषण के चिंताजनक हालात का जिक्र करते हुए पंजाब सूबे की सूचना मंत्री अजमा बुखारी ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘हवा भारत से पाकिस्तान की ओर बह रही है, फिर भी भारत इस समस्या को उतनी गंभीरता से नहीं ले रहा है जितना उसे लेना चाहिए।’’
उन्होंने भारत के पंजाब राज्य से इस मामले को गंभीरता से लेने का आग्रह किया।
इससे पहले, पंजाब की वरिष्ठ मंत्री मरियम औरंगजेब ने कहा कि प्रांत पाकिस्तान विदेश कार्यालय से भारत के साथ सीमा पार प्रदूषण के मुद्दे को उठाने का अनुरोध करेगा।
उन्होंने कहा, ‘‘अमृतसर और चंडीगढ़ से आने वाली हवाओं की वजह से गत दो दिन से लाहौर में वायु गुणवत्ता सूचकांक 1,000 से अधिक दर्ज किया जा रहा है।’’
पंजाब की मुख्यमंत्री मरियम नवाज ने भी भारत के साथ जलवायु कूटनीति का आह्वान किया और कहा कि वह प्रदूषण के मुद्दे पर संयुक्त रूप से विचार करने के लिए जल्द ही भारत के पंजाब राज्य के मुख्यमंत्री को पत्र लिखेंगी।
इस बीच, वायु गुणवत्ता की बिगड़ती स्थिति के कारण लाहौर के अधिकारियों ने सोमवार को प्राथमिक स्कूलों को एक सप्ताह के लिए बंद करने की घोषणा की। सप्ताहांत में वायु गुणवत्ता सूचकांक उच्च स्तर पर दर्ज किया गया।
एक अधिकारी ने बताया कि यह कदम 1.4 करोड़ की आबादी वाले शहर में बच्चों को श्वसन संबंधी और अन्य बीमारियों से बचाने के बड़े प्रयास के तहत उठाया गया है। सरकार ने कहा कि लाहौर में हर किसी के लिए मास्क पहनना अनिवार्य है।
लाहौर में सप्ताहांत में वायु गुणवत्ता सूचकांक 1,000 के ऊपर पहुंच गया जो पाकिस्तान में सर्वाधिक है।
लाहौर को कभी बागों के शहर के रूप में जाना जाता था, जो 16वीं से 19वीं शताब्दी तक लगभग हर जगह देखने को मिलते थे। लेकिन तेजी से बढ़ते शहरीकरण और बढ़ती जनसंख्या वृद्धि की वजह से हरियाली के लिए बहुत कम जगह रह गई है।
भाषा
शफीक धीरज
धीरज
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