(ऐरी हॉफमैन/कैटलिन पेरी, मेलबर्न विश्वविद्यालय)
मेलबर्न, तीन जनवरी (द कन्वरसेशन) सामान्य ‘फ्रूट फ्लाई’ (ड्रोसोफिला मेलानोगास्टर) दुनिया भर के घरों में पके हुए फलों पर मंडराने आती हैं और उन पर अंडे जमा कर देती है, जिस पर अकसर लोगों की नजर भी नहीं जाती। इस तरह हम सभी संभवत: कई बार ‘फ्रूट फ्लाई’ नामक कीट के विभिन्न शारीरिक अंगों को फलों के साथ खा चुके होंगे, लेकिन इसका कोई ज्ञात दुष्प्रभाव नहीं देखा गया है।
लेकिन ‘फ्रूट फ्लाई’ दूसरे कीटों की तुलना में कहीं अधिक महत्वपूर्ण होती हैं।
वास्तव में, ड्रोसोफिला मेलानोगास्टर एक सदी से भी अधिक समय से विज्ञान के लिए सबसे महत्वपूर्ण जीवों में से एक रही है। यदि ये कीट न होतीं, तो कुछ सबसे महत्वपूर्ण वैज्ञानिक खोज कभी नहीं हो पातीं।
-फ्रूट फ्लाई की उत्पत्ति-
इस प्रजाति की उत्पत्ति दक्षिण-मध्य अफ्रीका के जंगलों में हुई है, जहां यह मारुला फल पर बहुत अधिक निर्भर थी। यह फल इस क्षेत्र में मानव आहार का भी हिस्सा था – और आज भी है, जिसके कारण फ्रूट फ्लाई ने मानव समुदायों और बस्तियों से संबंध बनाया।
समय के साथ, यह संबंध फ्रूट फ्लाई के पहले पूरे अफ्रीका में, फिर एशिया, यूरोप और – पिछली कुछ शताब्दियों में – उत्तरी और मध्य अमेरिका व ऑस्ट्रेलिया में फैलने का कारण बन गया।
ड्रोसोफिला मेलानोगास्टर और उसके जैसी बड़ी व अधिक रंगीन ‘असली’ फ्रूट फ्लाई में फर्क होता है, जिनमें से कई ऑस्ट्रेलिया में पाई जाती हैं। इन्हें ‘टेफ्रिटिड फ्लाई’ भी कहा जाता है, ये फलों पर सड़ने से पहले ही हमला कर देती हैं। इन्हें विक्टोरिया और दक्षिण ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों से दूर रखने की कोशिश में लाखों डॉलर खर्च किए गए, लेकिन कोई खास सफलता नहीं मिली।
कुछ स्थानों पर ‘ड्रोसोफिला फ्लाई’ बड़ी संख्या में पाई जाती हैं, इन स्थानों पर शराब बनाने में इस्तेमाल होने वाले फलों, आलू बुखारे जैसे ‘स्टोन फ्रूट’ के बगीचों और केले के बागानों में सड़ते फलों के ढेर लग जाते हैं।
-स्वाभाविक रूप से विज्ञान के अनुकूल होती हैं फ्रूट फ्लाई-
एक ओर अधिकांश कीटों पर बहुत कम वैज्ञानिक ध्यान दिया जाता है, लेकिन ‘फ्रूट फ्लाई’ इनमें से एक अपवाद है।
‘फ्रूट फ्लाई’ में कुछ ऐसे गुण होते हैं, जो इन्हें इतना लोकप्रिय अनुसंधान जीव बनाते हैं।
वे छोटी होती हैं, उन्हें खाना खिलाना आसान होता है, उनका जीवन चक्र बहुत तेज होता है और वे सैकड़ों बच्चे दे सकती हैं।
हालांकि, शोधकर्ता आज ड्रोसोफिला मेलानोगास्टर पर किए गए जिन निष्कर्षों पर पहुंचे हैं, उसमें दशकों के आनुवंशिक विकास का काफी योगदान है।
इनसे हमें अपनी इच्छानुसार लगभग कोई भी आनुवंशिक स्वरूप बनाने में मदद मिलती है। हम अन्य जीवों के जीन लेकर फ्रूट फ्लाई में उनके प्रभाव का अध्ययन भी कर सकते हैं।
संयुक्त रूप से, ये कारक यह समझाने में मदद करते हैं कि फ्रूट फ्लाई ने विशेष रूप से अनुसंधान के क्षेत्रों में प्रमुख भूमिका क्यों निभाई है।
आनुवंशिक अनुसंधान और शिक्षण में फ्रूट फ्लाई के उपयोग का एक लंबा इतिहास रहा है। ‘फ्रूट फ्लाई’ जैविक खोज के मामले में भी काफी महत्वपूर्ण होती है। इसके जीनोम को 1990 के दशक में अनुक्रमित किया गया था। यह आंशिक रूप से मानव जीनोम के संयोजन के लिए एक परीक्षण के रूप में किया गया था। हालांकि इससे जीवों के जीनों का भी तुलनात्मक विश्लेषण किया गया था।
कई ‘विनेगर फ्लाई’ के जीन और विशिष्ट मानव जीन में सीधा संबंध देखा गया है, जिनमें मानव रोगों से जुड़े लगभग 65% जीन शामिल हैं। इससे विनेगर फ्लाई में भ्रूण के विकास और रोग की प्रगति से लेकर सीखने और उम्र बढ़ने तक की प्रक्रियाओं पर शोध करने में मदद मिली।
अंत में, फ्रूट फ्लाई कई उपयोगी प्रायोगिक प्रणाली प्रदान करती हैं, विशेष रूप से खतरे में पड़ी प्रजातियों के संरक्षण के संदर्भ में।
फ्रूट फ्लाई पर किए गए शोधों ने खतरे में पड़ी प्रजातियों के विकसित होने और बीमारी तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का मुकाबला करने की क्षमता को संरक्षित करने के लिए उनमें आनुवंशिक भिन्नता बनाए रखने के महत्व को स्थापित किया है। फ्रूट फ्लाई पर फिलहाल यह देखने के लिए नजर रखी जा रही है कि क्या ये प्रजातियां हमारे द्वारा अनुभव की जा रही गर्म और शुष्क परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढाल रही हैं।
(द कन्वरसेशन) जोहेब मनीषा नरेश
नरेश
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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