नए जलवायु वित्त लक्ष्य जलवायु न्याय के सिद्धांत पर तय होने चाहिए: भारत ने सीओपी29 में कहा |

नए जलवायु वित्त लक्ष्य जलवायु न्याय के सिद्धांत पर तय होने चाहिए: भारत ने सीओपी29 में कहा

नए जलवायु वित्त लक्ष्य जलवायु न्याय के सिद्धांत पर तय होने चाहिए: भारत ने सीओपी29 में कहा

:   Modified Date:  November 19, 2024 / 08:12 PM IST, Published Date : November 19, 2024/8:12 pm IST

(गौरव सैनी)

बाकू (अजरबैजान), 19 नवंबर (भाषा) भारत ने मंगलवार को कहा कि ‘ग्लोबल साउथ’ में जलवायु कार्रवाई का समर्थन करने के लिए नए जलवायु वित्त लक्ष्य को जलवायु न्याय के सिद्धांत के आधार पर तय किया जाना चाहिए।

भारत ने यह भी कहा कि अमीर देशों को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए और विकासशील देशों को पर्याप्त ‘कार्बन स्पेस’ (कार्बन उत्सर्जन की गुंजाइश) प्रदान करना चाहिए।

बाकू में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में राष्ट्रीय वक्तव्य देते हुए केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने कहा कि कुछ विकसित देशों के प्रतिबंधात्मक एकपक्षीय व्यापार उपाय विकासशील देशों में जलवायु कार्रवाई में बाधा डाल रहे हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘हम यहां एनसीक्यूजी (नए जलवायु वित्त लक्ष्य) पर जो भी निर्णय लेते हैं, वे जलवायु न्याय के सिद्धांत पर आधारित होने चाहिए। निर्णय महत्वाकांक्षी और स्पष्ट होने चाहिए, जिनमें विकासशील देशों की उभरती जरूरतों और प्राथमिकताओं तथा सतत विकास और गरीबी उन्मूलन के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को ध्यान में रखा जाना चाहिए।’’

मंत्री ने कहा कि ‘ग्लोबल साउथ’ में जलवायु महत्वाकांक्षा को बढ़ाने के लिए हरित प्रौद्योगिकियों की मुफ्त उपलब्धता और वित्त जरूरी है।

‘ग्लोबल साउथ’ से तात्पर्य उन देशों से है जिन्हें अक्सर विकासशील, कम विकसित अथवा अविकसित के रूप में जाना जाता है और ये मुख्य रूप से अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में स्थित हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘इसके विपरीत, कुछ विकसित देशों ने एकतरफा उपायों का सहारा लिया है, जिससे ‘ग्लोबल साउथ’ के लिए जलवायु कार्रवाई अधिक कठिन हो गई है। हम जिस उभरती स्थिति में हैं, उसमें ‘ग्लोबल साउथ’ में प्रौद्योगिकी, वित्त और क्षमता के प्रवाह के लिए सभी बाधाओं को तोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।’’

सिंह ने कहा कि दुनिया तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए कार्बन बजट का उल्लंघन कर सकती है और इसलिए, विकसित देशों को न केवल अपने ‘नेट जीरो’ लक्ष्यों को आगे बढ़ाकर बल्कि ‘‘हमारे जैसे विकासशील देशों के विकास के लिए पर्याप्त कार्बन स्पेस प्रदान करके’’ उत्सर्जन कम करने के कार्यों में नेतृत्व प्रदर्शित करना चाहिए।

भाषा वैभव पवनेश

पवनेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)