(चार्ल्स फेगिन, ला ट्रोब विश्वविद्यालय)
मेलबर्न, नौ जनवरी (द कन्वरसेशन) ऑस्ट्रेलिया के रेगिस्तानों में रेत के टीलों में रहने वाला छोटा स्तनपायी जीव ‘मार्सुपियल मोल’ बिल खोदने में माहिर माना जाता है।
देश में ‘मार्सुपियल मोल’ की दो नस्लें पाई जाती हैं। पहली-‘नोटोरीक्टिस टाइफ्लॉप्स’ या ‘दक्षिणी मार्सुपियल मोल’, जो मध्य और दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया के रेगिस्तानों में रहती है। स्थानीय स्वदेशी समुदाय ‘अनंगु’ के लोग इसे ‘इत्जारितजारी’ कहते हैं। दूसरी-‘नोटोरीक्टिस कॉरीनस’ या ‘उत्तरी मार्सुपियल मोल’, जो उत्तर-पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के रेगिस्तानों में पाई जाती है। स्थानीय स्वदेशी समुदाय ‘मारतु’ के लोग इसे ‘काकरातुल’ कहते हैं।
हाल-फिलहाल तक इन चालाक जीवों पर अध्ययन करना लगभग असंभव साबित होता था। लेकिन ‘साइंस एडवांसेज’ पत्रिका में प्रकाशित हमारे हालिया अध्ययन में रेगिस्तान में बिल खोदने की ‘मार्सुपियल मोल’ की अविश्वसनीय ‘ताकत’ के पीछे के रहस्य से कुछ हद तक पर्दा उठाने की कोशिश की गई है।
कभी-कभार ही आते हैं नजर
-‘मार्सुपियल मोल’ पेंसिल जितने लंबे होते हैं और उनका वजन 40 से 70 ग्राम के बीच होता है। ट्यूब के आकार का उनका शरीर पीले बालों से ढका होता है और खुदाई में इस्तेमाल किए जाने वाले हाथ-पैर शायद ही कभी किनारों से बाहर निकलते हैं।
उत्तरी गोलार्ध में पाए जाने वाले अपनी तरह के जीवों की तरह स्थायी सुरंगें बनाने के बजाय ‘मार्सुपियल मोल’ ऑस्ट्रेलिया के रेगिस्तानों की ढीली रेत में ‘खिसकते’ रहते हैं।
रेगिस्तानों की विशालता और रेत के टीलों के नीचे रहने की प्रवृत्ति के कारण ‘मार्सुपियल मोल’ साल में कभी-कभार ही देखे जाते हैं।
नयी प्रौद्योगिकियां, नयी अंतर्दृष्टि
-नयी डीएनए प्रौद्योगिकियां ‘मार्सुपियल मोल’ जैसे रहस्मयी जीवों के जीवन में झांकने का मौका दे सकती हैं, जिन पर उनके प्राकृतिक आवास में प्रभावी ढंग से अध्ययन करना बेहद मुश्किल है।
इसे ध्यान में रखते हुए हमारी टीम ने दक्षिण ऑस्ट्रेलियाई संग्रहालय के ऑस्ट्रेलियाई जैविक ऊतक संग्रह विभाग से ‘दक्षिणी मार्सुपियल मोल’ के एक दशक से अधिक समय पहले जुटाए गए ऊतक के नमूने हासिल किए। हमने इन नमूनों से ‘मार्सुपियल मोल’ का संपूर्ण जीनोम अनुक्रम तैयार करने के लिए आवश्यक डीएनए के टुकड़े निकाले।
चूंकि, डीएनए में किसी जीव की विशिष्टताएं निर्धारित करने वाले कोड के साथ उसके विकास क्रम पर प्रकाश डालने वाला रिकॉर्ड भी दर्ज होता है, इसलिए अध्ययन में हम इस रहस्यमयी जीव के कई अनछुओं पहलुओं से पर्दा उठाने में कामयाब रहे।
अद्वितीय अनुकूलन क्षमता
-‘मार्सुपियल मोल’ अपनी अद्वितीय अनुकूलन क्षमता के कारण बेहद कठोर वातावरण में जीवित रह पाते हैं। उदाहरण के लिए, उनकी आंखें बेहद छोटी और त्वचा के नीचे स्थित होती हैं, जिसके चलते वे देखने में अक्षम होते हैं।
‘मार्सुपियल मोल’ की आंखों के जीन की तुलना संबंधित नस्ल के जीवों के आंखों के जीन से करने पर हमने पाया कि उन्होंने (मार्सुपियल मोल) सबसे पहले आंख के लेंस के लिए अहम जीन खो दिए। ऐसा संभवतः इसलिए हुआ, क्योंकि भूमिगत आवास में स्पष्ट छवि बहुत महत्वपूर्ण नहीं होती। इसके बाद उनमें रंगों की पहचान में मददगार रेटिना की कोन कोशिकाओं के जीन और कम रोशनी वाली जगहों पर देखने में सहायक रॉड कोशिकाओं के जीन विलुप्त हो गए।
सतह पर रहने वाले जीवों में इस तरह के आनुवांशिक बदलाव घातक हो सकते हैं। लेकिन ‘मार्सुपियल मोल’ में ये परिवर्तन क्रमिक आधार पर हुए, जिससे वे बिना किसी नुकसान के आसानी से इनके हिसाब से ढलते चले गए।
अन्य विशिष्टाओं से भी पर्दा उठा
-संपूर्ण जीनोम अनुक्रम तैयार करने के दौरान हमने पाया कि ‘मार्सुपियल मोल’ में यौवन के दौरान वीर्यकोष के बाहर निकलने के लिए जिम्मेदार जीन भी विलुप्त हो गए। इससे यह समझने में मदद मिल सकती है कि नर ‘मार्सुपियल मोल’ में वीर्यकोश उनके पेट की दीवार से क्यों जुड़ा हुआ होता है।
हमने यह भी पाया कि ‘मार्सुपियल मोल’ में हीमोग्लोबिन के उत्पादन के लिए जिम्मेदार जीन की दो प्रतियां होती हैं। हीमोग्लोबिन वह अणु होता है, जो लाल रक्त कोशिकाओं में ऑक्सीजन ले जाता है। दो प्रतियों की मौजूदगी महत्वपूर्ण है, क्योंकि रेत में ऑक्सीजन का स्तर और हवा का प्रवाह कम होता है। ऐसे में हीमोग्लोबिन की कमी से ‘मार्सुपियल मोल’ का दम घुट सकता है और महत्वपूर्ण अंगों को पर्याप्त ऑक्सीजन न मिलने से वे दम तोड़ सकते हैं।
(द कन्वरसेशन) पारुल पवनेश
पवनेश
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