(कैरिन रेनक्रोना, लुंड विश्वविद्यालय)
लुंड (स्वीडन), 19 दिसंबर (द कन्वरसेशन) मेहनत की कमाई किसी को देना हमेशा से थोड़ा कष्टदायी होता है। और ऐतिहासिक रूप से, अध्ययनों में पता चला है कि ग्राहकों को जब नकदी में भुगतान करना होता है तो वे कम पैसा खर्च करते हैं।
इस सदी की शुरुआत में यह पता लगाने के लिए अध्ययन किया गया था कि ज्यादातर उपभोक्ता नकदी से भुगतान करते हैं या फिर प्री-पेड कार्ड का उपयोग करके। अध्ययन में पता चला कि लोग नकदी कम खर्च करते हैं। इस अध्ययन के दौरान किराने की एक दुकान में उपभोक्ता रसीदों की पड़ताल करके इसकी पुष्टि की गई थी।
साक्ष्य यह भी बताते हैं कि ग्राहक पारंपरिक रूप से नकदी की जगह डेबिट कार्ड का इस्तेमाल करके ज्यादा भुगतान करते रहे हैं।
भुगतान का तरीका आपके मनोविज्ञान से जुड़ा होता है। यह भी पता चला है कि नकद पैसे देने से भुगतान का कष्ट उपभोग के आनंद को फीका कर देता है।
वास्तव में, यह पता चला है कि नकदी का उपयोग मन को दुखी कर देता है।
यह भी पता चला है कि मोबाइल भुगतान (उदाहरण के लिए, फोन या स्मार्टवॉच से) भी क्रेडिट या डेबिट कार्ड के उपयोग की तरह ही खर्च को प्रभावित करता है। यानी, नकदी की तुलना में मोबाइल से भुगतान करते समय अधिक पैसा खर्च होता है।
हालांकि बाद के अध्ययनों में पता चला है कि ग्राहक गैर-नकदी भुगतान प्रणालियों के ज्यादा आदी हो गए हैं। इसका एक और कारण खर्च और खाते की शेष राशि के बारे में सूचनाएं हो सकती हैं जो भुगतान के बाद उपभोक्ता की घड़ी या फोन पर फ्लैश होती हैं।
स्वीडन में मेरा अपना अध्ययन इस निष्कर्ष का समर्थन करता है कि डिजिटल तरीकों की तुलना में नकदी से भुगतान का चलन पिछले कुछ वर्षों में कम हो गया है। कई देशों में नकदी का उपयोग कम हो रहा है, और स्वीडन एक विशेष रूप से नकदी रहित देश है, जहां अब बहुत कम दुकानदार नोट और सिक्के स्वीकार करते हैं।
मेरे अध्ययन के दौरान 20 से 26 वर्ष की आयु के युवा उपभोक्ता अपने भुगतान का रिकॉर्ड रखते थे। कई लोगों ने खुलासा किया कि जब उन्होंने नकद भुगतान किया, तो उन्हें यह नहीं लगा कि इससे उनकी समग्र धनराशि पर कोई प्रभाव पड़ेगा क्योंकि यह उनके लेनदेन इतिहास या खाता गतिविधि पर दिखाई नहीं देता है। साथ ही, उनके फोन पर कोई अलर्ट भी फ्लैश नहीं हुआ।
अध्ययन में भाग लेने वालों में से कुछ ने इस तरह की बातें कही: “मैं नकदी का उपयोग शायद ही कभी करता हूं, ऐसा तभी होता है जब मुझे उपहार में नकदी मिलती है। फिर मैं जल्द से जल्द इसे खर्च करने की कोशिश करता हूं।”
‘मेरे बटुए में नकदी है, लेकिन मैं इसका उपयोग करने के बारे में कभी नहीं सोचता।’
‘मैं नकदी का हिसाब रखने के मामले में अनाड़ी हूं, यह मेरे लिए फालतू पैसों की तरह होती है क्योंकि यह मेरे बैंक खाते में दिखाई नहीं देती।’
इस तरह की टिप्पणियों से पता चलता है कि युवाओं में नकदी के बजाय दूसरे माध्यमों से भुगतान का चलन बढ़ रहा है।
फिलहाल, क्रिसमस पर उपहार के तौर पर लिफाफे में नकदी देने की परंपरा अब भी जारी है। लेकिन शायद एक डिजिटल तरीके से पैसे देना अधिक उपयुक्त हो सकता है। हो सकता है कि ऐसा करने से किसी चीज की अधिक सावधानी से योजनाबद्ध खरीदारी की जा सके और भुगतान का रिकॉर्ड भी रहे।
(द कन्वरसेशन) जोहेब नरेश
नरेश
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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