भारत, आसियान सहयोग समसामयिक मुद्दों से निपटने में महत्वपूर्ण हो सकता है: विदेश मंत्री जयशंकर |

भारत, आसियान सहयोग समसामयिक मुद्दों से निपटने में महत्वपूर्ण हो सकता है: विदेश मंत्री जयशंकर

भारत, आसियान सहयोग समसामयिक मुद्दों से निपटने में महत्वपूर्ण हो सकता है: विदेश मंत्री जयशंकर

:   Modified Date:  November 8, 2024 / 12:55 PM IST, Published Date : November 8, 2024/12:55 pm IST

(गुरदीप सिंह)

सिंगापुर, आठ नवंबर (भाषा) विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि भारत और आसियान (दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का संगठन) के सदस्य जनसंख्या के लिहाज से बड़े देश हैं और उनका सहयोग समसामयिक मुद्दों के समाधान, खाद्य एवं स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा म्यांमा जैसे साझा क्षेत्र में राजनीतिक चुनौतियों से निपटने में महत्वपूर्ण हो सकता है।

जयशंकर ने ये टिप्पणी आसियान-‘इंडिया नेटवर्क ऑफ थिंक टैंक्स’ के आठवें गोलमेज सम्मेलन को संबोधित करने के दौरान की। इस गोलमेज सम्मेलन का विषय था, ‘परिवर्तनशील विश्व में मार्गदर्शन: आसियान-भारत सहयोग के लिए एजेंडा’।

एक दिवसीय यात्रा पर यहां आए जयशंकर ने कहा, ‘‘भारत और आसियान के सदस्य जनसंख्या के लिहाज से प्रमुख देश हैं, जिनकी उभरती मांगें न केवल एक-दूसरे को सहायता प्रदान कर सकती हैं बल्कि अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में बड़ी उत्पादक शक्तियां बन सकती हैं।’’

उन्होंने कहा कि आसियान और भारत की आबादी विश्व की एक-चौथाई आबादी से अधिक है।

दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) के सदस्यों में ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमा, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘हमारी उपभोक्ता मांग और जीवनशैली से जुड़ी पसंद खुद ही अर्थव्यवस्था को गति देने वाली है। वे सेवाओं के पैमाने और ‘कनेक्टिविटी’ को भी आकार देंगे क्योंकि हम व्यापार, पर्यटन, एक दूसरे देश में सुगम आवाजाही और शिक्षा को बढ़ावा देते हैं। हमारे प्रयासों की व्यापकता तात्कालिक क्षेत्र से कहीं आगे तक फैली हुई है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘समकालीन चुनौतियों का समाधान करने में भी सहयोग महत्वपूर्ण हो सकता है। जलवायु परिवर्तन की चरम स्थितियों वाले युग में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना एक बड़ी चिंता का विषय है। इसी तरह, वैश्विक महामारियों के अनुभव के साथ स्वास्थ्य सुरक्षा की तैयारी भी कम महत्वपूर्ण नहीं है।’’

जयशंकर ने कहा कि म्यांमा जैसे साझा क्षेत्र में राजनीतिक चुनौतियां हैं और रहेंगी, जिनका भारत और आसियान को मिलकर समाधान करना होगा।

उन्होंने कहा, ‘‘आज म्यांमा की स्थिति इसका एक प्रमुख उदाहरण है। जो समीपवर्ती लोग हैं उनकी रुचि और मैं कह सकता हूँ कि उनका दृष्टिकोण हमेशा कठिन होता है…।’’

उन्होंने जोर देकर कहा, ‘हमारे पास दूरी या समय की सुविधा नहीं है। यह एचएडीआर (मानवीय सहायता और आपदा राहत) स्थितियों के साथ-साथ समुद्री सुरक्षा और संरक्षा के मामले में भी तेजी से बढ़ रहा है।’

जयशंकर ने स्वयं-सहायता की एक मजबूत संस्कृति का आह्वान किया, जो सिर्फ ‘‘मिलकर समय पर योजना बनाने’’ से ही आएगी।

उन्होंने कहा कि भारत और आसियान के बीच संबंध गहरे सांस्कृतिक और सभ्यतागत जुड़ाव पर आधारित हैं और इसका फलना फूलना अपने आप में महत्वपूर्ण है।

मंत्री ने हाल के समय में धरोहरों के जीर्णोद्धार और कला के रूपों के संरक्षण में भारत के योगदान को रेखांकित किया।

उन्होंने कहा कि भारत-आसियान साझेदारी अब अपने चौथे दशक में है और इसमें अपार संभावनाएं हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘द्विपक्षीय और त्रिपक्षीय संबंधों ने हमारी निकटता में योगदान दिया है।’’

मंत्री ने मेकांग गंगा सहयोग और इंडोनेशिया-मलेशिया-थाईलैंड त्रिपक्षीय विकास का उदाहरण दिया और कहा कि इन पहलों का असर महसूस हो रहा है।

जैसे-जैसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र विकसित हो रहा है, भारत आसियान की केन्द्रीयता और एकजुटता के प्रति अपना समर्थन व्यक्त कर रहा है।

उन्होंने कहा, ‘‘भारत दृष्टिकोण और सार दोनों के संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय कानून, नियम और मानदंडों के प्रति सम्मान के बारे में समान रूप से स्पष्ट रहा है क्योंकि पिछले चार दशकों में (एक दूसरे के प्रति) झुकाव केवल बढ़ा है। यह एक ऐसा आधार है जिस पर हम उच्च महत्वाकांक्षाओं की आकांक्षा कर सकते हैं।’’

भाषा सुरभि नरेश

नरेश

 

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