बांग्लादेश में हालिया प्रदर्शनों के बाद प्रसिद्ध स्मारकों के प्रति लोगों की रुचि फिर बढ़ी |

बांग्लादेश में हालिया प्रदर्शनों के बाद प्रसिद्ध स्मारकों के प्रति लोगों की रुचि फिर बढ़ी

बांग्लादेश में हालिया प्रदर्शनों के बाद प्रसिद्ध स्मारकों के प्रति लोगों की रुचि फिर बढ़ी

:   Modified Date:  August 28, 2024 / 06:05 PM IST, Published Date : August 28, 2024/6:05 pm IST

(कुणाल दत्त)

ढाका, 28 अगस्त (भाषा) बांग्लादेश में हाल में हुए सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बाद ढाका के कुछ प्रसिद्ध स्मारकों के प्रति लोगों की रुचि एक बार फिर बढ़ गयी है। इन स्मारकों में शहीद मीनार और राजू स्मारक भी शामिल हैं।

राजू स्मारक छात्र संघ के एक शहीद नेता की याद में बनाया गया है।

ढाका विश्वविद्यालय क्षेत्र में स्थित ये स्मारक हालिया आंदोलन के प्रमुख केंद्र थे जो जुलाई में शुरू हुआ और जिन्होंने धीरे-धीरे पूरे देश को अपनी चपेट में ले लिया। उस आंदोलन के कारण शेख हसीना नीत सरकार का पतन हो गया और वह पांच अगस्त को देश छोड़कर भारत चली गईं।

ढाका शहर के लिए सार्वजनिक आंदोलन कोई नहीं बात नहीं है, क्योंकि पिछले 70 साल में बांग्लादेश के इतिहास में कई ऐतिहासिक मौके आए हैं जिनसे देश की नियति प्रभावित हुई है।

ढाका विश्वविद्यालय क्षेत्र में स्थित शहीद मीनार, जहां इन दिनों अपेक्षाकृत शांति है, बांग्लादेश के लोगों के लिए तीर्थस्थल के समान है। इस शहीद मीनार की कई प्रतिकृतियां बांग्लादेश के अन्य शहरों में भी मौजूद हैं।

इसका मौजूदा स्वरूप 50 साल से अधिक पुराना है और 1971 के मुक्ति संग्राम के बाद इसे फिर से बनाया गया था। मुक्ति संग्राम के कारण बांग्लादेश के रूप में एक नए राष्ट्र का जन्म हुआ था।

शहीद मीनार की स्थापना मूल रूप से 1952 में बांग्ला भाषा आंदोलन के दौरान मारे गए लोगों के सम्मान में की गयी थी, जब इस क्षेत्र को पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था और इसकी राजधानी ढाका थी।

कई पीढ़ियां उन बहादुर विश्वविद्यालय छात्रों की कहानी सुनकर बड़ी हुई हैं, जो 21 फरवरी, 1952 को बांग्ला को राजकीय भाषा का दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष करते हुए पुलिस कार्रवाई में मारे गए थे।

उसके 70 साल बाद भी, ‘एकुशे फरवरी’ (21 फरवरी) की किंवदंती बांग्लादेश के लोगों के दिलों और दिमाग में जीवित है। बाद में इसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मान्यता दी गई।

इस ऐतिहासिक संघर्ष की गूंज 2024 में ढाका में महसूस की जा सकती है, जब आरक्षण विरोधी हिंसक प्रदर्शनों में कई लोगों की जान चली गई और अंतत: सरकार का पतन हो गया।

आंदोलन के दौरान शहीद मीनार पर भारी भीड़ होती थी और प्रदर्शनकारियों को इस स्थल की विरासत और इसके प्रतीकवाद दोनों से ताकत मिली और नेताओं ने बांग्ला भाषा में जोशीले भाषण दिए।

हालिया प्रदर्शनों की याद में ढाका की दीवारों पर कलाकृतियां बनाई गई हैं, जिनमें विश्वविद्यालय क्षेत्र भी शामिल है। इनमें से कई भित्तिचित्र शहीद मीनार को दर्शाते हैं। दीवारों पर ‘यह नया बांग्लादेश है’ और ‘जुलाई हम कभी नहीं भूलेंगे, हम कभी माफ नहीं करेंगे’ जैसे नारे लिखे हैं।

शहीद मीनार के पास रहने वाले मोहम्मद शाहिद के अनुसार यह स्मारक स्थल हालिया विरोध प्रदर्शनों के प्रमुख केंद्रों में से एक था।

उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘जब पुलिस की गोलीबारी हुई, तो मैं अपने घर से उसकी आवाज सुन सकता था, कर्फ्यू के बावजूद सड़कों पर हजारों लोगों को देख सकता था। गोलियों की आवाज अब भी मेरे कानों में गूंजती है।’

राजू स्मारक (आतंकवाद विरोधी राजू स्मारक मूर्ति) को 1997 में शहीद मोइन हुसैन राजू की याद में बनाया गया था, जो बांग्लादेश छात्र संघ के एक प्रमुख नेता थे, जिन्होंने 13 मार्च, 1992 को ढाका विश्वविद्यालय परिसर में ‘गणतांत्रिक छात्र ओइक्या’ के आतंकवाद विरोधी जुलूस का नेतृत्व किया था।

भाषा अविनाश वैभव

वैभव

 

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