एआई को मानवीय बनाना हमें अमानवीय बना सकता है |

एआई को मानवीय बनाना हमें अमानवीय बना सकता है

एआई को मानवीय बनाना हमें अमानवीय बना सकता है

:   Modified Date:  October 21, 2024 / 03:18 PM IST, Published Date : October 21, 2024/3:18 pm IST

(राफेल एफ सिरिएलो, यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी तथा एंजलिना यिंग चेन, यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी)

सिडनी, 21 अक्टूबर (द कन्वरसेशन) आयरिश लेखक जॉन कोनोली ने एक बार कहा था, ‘‘मानवता की प्रकृति, उसका सार, दूसरे के दर्द को अपना दर्द समझना और उस दर्द को दूर करने के लिए काम करना है।’’

हमारे इतिहास को देखें तो माना जाता रहा है कि सहानुभूति और संवेदना एक विशिष्ट मानवीय गुण है, एक विशेष क्षमता है जो हमें मशीनों और अन्य जानवरों से अलग करती है। लेकिन अब इस विश्वास को चुनौती दी जा रही है।

जैसे-जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) हमारे जीवन का बड़ा हिस्सा बनती जा रही है, हमारे सबसे निजी क्षेत्रों में भी यह प्रवेश कर रही है। इसके साथ ही हम एक दार्शनिक प्रश्न का सामना कर रहे हैं: क्या एआई को मानवीय गुणों का श्रेय देना हमारी अपनी मानवीयता को कम कर सकता है? हमारा शोध बताता है कि ऐसा हो सकता है।

डिजिटल साथी:

पिछले कुछ वर्षों में ‘रेप्लिका’ जैसे एआई ऐप ने लाखों उपयोगकर्ताओं को आकर्षित किया है। ‘रेप्लिका’ उपयोगकर्ताओं को निजी बातचीत में शामिल होने के लिए ‘कस्टम डिजिटल पार्टनर’ बनाने का अवसर देता है। ‘रेप्लिका प्रो’ नामक ऐप के लिए भुगतान करने वाले लोग तो एआई को “रोमांटिक पार्टनर” में भी बदल सकते हैं।

शारीरिक स्तर पर एआई के विस्तार को देखें तो ‘जॉय लव डॉल्स’ जैसी कंपनियां तो स्तन के आकार, जातीयता, चालढाल और कराहने तथा छेड़खानी जैसी एआई जनित प्रतिक्रियाओं सहित ऐसी कुछ विशेषताओं वाले ‘इंटरैक्टिव सेक्स रोबोट’ बेच रही हैं।

पूरी संभावना है कि आज के ऐसे डिजिटल रुझान कल के वैश्विक मानदंड बन जाएंगे। लगभग चार में से एक वयस्क अकेलेपन का अनुभव कर रहा है, इसलिए ऐसे एआई साथियों की मांग बढ़ेगी।

एआई को मानवीय बनाने के खतरे:

मनुष्य लंबे समय से गैर-मानवीय चीजों को मानवीय गुण प्रदान करते आए हैं। इस प्रवृत्ति को ‘मानवीकरण’ के रूप में जाना जाता है।

इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि हम चैटजीपीटी जैसे एआई उपकरणों के साथ ऐसा कर रहे हैं, जो ‘सोचने’ और ‘महसूस करने’ वाले प्रतीत होते हैं।

कानूनी मुद्दों से बचने के लिए, कंपनी बताती है कि ‘रेप्लिका’ संवेदनशील नहीं है और केवल लाखों उपयोगकर्ताओं की बातचीत के माध्यम से सीखता है।

वहीं, कुछ एआई कंपनियां खुले तौर पर दावा करती हैं कि उनके एआई सहायकों में सहानुभूति है और वे मानवीय जरूरतों का पूर्वानुमान भी लगा सकते हैं। हालांकि, ऐसे दावे भ्रामक हैं। यदि उपयोगकर्ता मानते हैं कि उनका एआई साथी वास्तव में उन्हें समझता है, तो वे भावनात्मक रूप से गहराई से जुड़ सकते हैं। यह गंभीर नैतिक चिंताओं को जन्म देता है।

एक उपयोगकर्ता यदि अपने एआई साथी को चेतना प्रदान करता है तो वह उसे हटाने या छोड़ने में संकोच करेगा।

दरअसल तब क्या होता है कि जब उक्त एआई साथी अप्रत्याशित रूप से गायब हो जाता है, मसलन यदि उपयोगकर्ता इसका खर्च नहीं उठा सकता, या इसे चलाने वाली कंपनी बंद हो जाती है?

एआई साथी भले ही वास्तविक नहीं हो, लेकिन इससे जुड़ी भावनाएं वास्तविक होती हैं।

सहानुभूति – एक प्रोग्राम करने योग्य आउटपुट से अधिक :

सहानुभूति को ‘प्रोग्राम करने योग्य आउटपुट तक’ सीमित करके, क्या हम इसके वास्तविक सार को कम करने का जोखिम उठाते हैं? इसका उत्तर देने के लिए, आइए पहले सोचें कि सहानुभूति वास्तव में है क्या।

सहानुभूति में अन्य लोगों को समझदारी और चिंता के साथ जवाब देना शामिल है। यह तब होता है जब आप अपने दोस्त के दुख को साझा करते हैं, जब वे आपको अपने दर्द के बारे में बताते हैं, या जब आप किसी ऐसे व्यक्ति से खुशी महसूस करते हैं जिसकी आप परवाह करते हैं। यह एक गहरा अनुभव है।

मनुष्यों और एआई के बीच एक बुनियादी अंतर यह है कि मनुष्य वास्तव में भावनाओं को महसूस करते हैं, जबकि एआई केवल उनका अनुकरण कर सकता है। यह चेतना की कठिन समस्या को छूता है, जो सवाल करता है कि मस्तिष्क में भौतिक प्रक्रियाओं से व्यक्तिपरक मानव अनुभव कैसे उत्पन्न होते हैं।

अमानवीयकरण परिकल्पना:

हमारी ‘अमानवीयकरण परिकल्पना’ उन नैतिक चिंताओं को उजागर करती है जो मनुष्यों को कुछ बुनियादी कार्यों तक सीमित करने की कोशिश के साथ आती हैं जिन्हें मशीन द्वारा दोहराया जा सकता है। जितना अधिक हम एआई को मानवीय बनाते हैं, उतना ही हम खुद को अमानवीय बनाने का जोखिम उठाते हैं।

उदाहरण के लिए, भावनात्मक श्रम के लिए एआई पर निर्भर रहना हमें वास्तविक रिश्तों की कमियों के प्रति कम सहिष्णु बना सकता है। यह हमारे सामाजिक संबंधों को कमजोर कर सकता है और यहां तक ​​कि भावनात्मक रूप से कमजोर भी कर सकता है।

भावी पीढ़ियां कम सहानुभूतिपूर्ण हो सकती हैं, आवश्यक मानवीय गुणों पर अपनी पकड़ खो सकती हैं क्योंकि भावनात्मक कौशल को लगातार स्वचालित किया जा रहा है।

जैसे-जैसे एआई सहयोगी आम होते जा रहे हैं, लोग वास्तविक मानवीय रिश्तों की जगह उनका उपयोग कर सकते हैं। इससे अकेलेपन और अलगाव की भावना बढ़ने की संभावना है। ये वही विषय हैं जिनके लिए ये प्रणालियां मदद करने का दावा करती हैं।

एआई कंपनियों द्वारा भावनात्मक डेटा का संग्रह और विश्लेषण भी महत्वपूर्ण जोखिम पैदा करता है, क्योंकि इन आंकड़ों का उपयोग गलत दिशा में किया जा सकता है। यह हमारी गोपनीयता और स्वायत्तता को और कम कर देगा, निगरानी पूंजीवाद को अगले स्तर पर ले जाएगा।

प्रदाताओं को जवाबदेह ठहराना:

विनियामकों को एआई प्रदाताओं को जवाबदेह ठहराने के लिए और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। एआई कंपनियों को इस बारे में ईमानदार होना चाहिए कि उनकी यह प्रणाली क्या कर सकती है और क्या नहीं।

“वास्तविक सहानुभूति” के अतिशयोक्ति वाले दावों को गैरकानूनी बनाया जाना चाहिए। ऐसे दावे करने वाली कंपनियों पर जुर्माना लगाया जाना चाहिए और बार-बार उल्लंघन करने वाली कंपनियों को बंद कर दिया जाना चाहिए।

डेटा गोपनीयता नीतियां भी स्पष्ट और निष्पक्ष होनी चाहिए। इनमें ऐसी छिपी हुई शर्तें नहीं होनी चाहिए जिनकी आड़ में कंपनियां को उपयोगकर्ता-जनित सामग्री का शोषण करने की अनुमति मिल जाती हो।

हमें उन अद्वितीय गुणों को संरक्षित करना चाहिए जो मानव अनुभव को परिभाषित करते हैं। जबकि एआई जीवन के कुछ पहलुओं को विस्तार दे सकता है, वहीं यह वास्तविक मानवीय संबंधों की जगह नहीं ले सकता और ना ही इसे ऐसा करना चाहिए।

(द कन्वरसेशन) वैभव मनीषा

मनीषा

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)