कैसे प्रकाश ने हमारी त्वचा के रंग, आंखों और घुंघराले बालों को आकार देने में मदद की |

कैसे प्रकाश ने हमारी त्वचा के रंग, आंखों और घुंघराले बालों को आकार देने में मदद की

कैसे प्रकाश ने हमारी त्वचा के रंग, आंखों और घुंघराले बालों को आकार देने में मदद की

:   Modified Date:  October 21, 2024 / 01:49 PM IST, Published Date : October 21, 2024/1:49 pm IST

(माइक ली, फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी)

एडीलेड, 21 अक्टूबर (द कन्वरसेशन) हमारे अधिकांश विकासवादी इतिहास में मानव गतिविधियां दिन के उजाले से जुड़ी रही हैं। प्रौद्योगिकी ने हमें इन सोने-जागने के प्राचीन चक्रों से मुक्त कर दिया है, लेकिन इस बात के प्रमाण हैं कि सूरज की रोशनी अपने निशान छोड़ती जा रही है।

न केवल हम अब भी दिन में जागते हैं और रात में सोते हैं, बल्कि हम अपने जीव विज्ञान के कई अन्य पहलुओं के लिए भी रोशनी का आभार जता सकते हैं।

प्रकाश ने शायद हमारे पूर्वजों को दो पैरों पर सीधा चलने के लिए प्रेरित किया होगा। प्रकाश हमारी त्वचा के रंग के विकास, हममें से कुछ के बाल घुंघराले क्यों होते हैं और यहां तक कि हमारी आँखों का आकार भी समझाने में मदद करता है।

जैसा कि हम इस श्रृंखला के भविष्य के लेखों में देखेंगे कि प्रकाश हमारे मूड, हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली, हमारी आंत कैसे काम करती है और बहुत कुछ को आकार देने में मदद करता है। प्रकाश हमें बीमार कर सकता है, हमें बता सकता है कि हम बीमार क्यों हैं, फिर हमारा इलाज करने में मदद कर सकता है।

पहले आधुनिक मनुष्य गर्म अफ्रीकी जलवायु में विकसित हुए। और तेज धूप के संपर्क को कम करना इस बात का स्पष्टीकरण है कि मनुष्य ने दो पैरों पर सीधा चलना क्यों शुरू कर दिया। जब हम खड़े होते हैं और सूर्य ठीक सिर पर होता है, तो सूर्य की रोशनी हमारे शरीर पर बहुत कम पड़ती है।

घुंघराले बाल हमें तेज धूप से भी बचाते होंगे। यह खोपड़ी को छिपाने के लिए सीधे बालों की तुलना में तापावरोधन की एक मोटी परत प्रदान करता है।

प्रारंभिक होमो सेपियंस को त्वचा पर काले धब्बों (पिगमेंटेशन) के रूप में सूरज की रोशनी से अतिरिक्त सुरक्षा प्राप्त थी। सूरज की रोशनी विटामिन बी9 को तोड़ती है, उम्र बढ़ने की गति बढ़ाती है और डीएनए को नुकसान पहुंचाती है। हमारी तेज धूप वाली पुरानी जलवायु में काली त्वचा हमें इससे बचाती है। लेकिन यह काली त्वचा अब भी विटामिन डी के महत्वपूर्ण उत्पादन को बढ़ाने के लिए पराबैंगनी प्रकाश सोखती है।

हालांकि, जब लोगों ने कम रोशनी वाले समशीतोषण क्षेत्रों में बसना शुरू किया तो अलग-अलग आबादी में अलग-अलग जीन के माध्यम से उनकी त्वचा का रंग हल्का होता गया। यह तेजी से हुआ, शायद पिछले 40,000 वर्षों के भीतर।

ध्रुवों के पास कम पराबैंगनी विकिरण के कारण सूरज की रोशनी को हमारे विटामिन बी9 को तोड़ने से बचाने के लिए कम धब्बों की आवश्यकता थी। लेकिन एक बड़ी खामी भी थी कि कम धब्बों का मतलब है कि सूरज की रोशनी से होने वाले नुकसान के खिलाफ कम सुरक्षा।

यह विकासवादी पृष्ठभूमि ऑस्ट्रेलिया में त्वचा कैंसर की दर दुनिया में सबसे अधिक होने के लिए जिम्मेदार है।

सूर्य के प्रकाश ने मनुष्य की आंखों के आकार में भिन्नता में भी योगदान दिया है। उच्च अक्षांश वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आंखों की पुतली में सुरक्षात्मक रंग कम होता है।

ये विशेषताएं यूरोपीय मूल के ऑस्ट्रेलियाई लोगों को विशेष रूप से हमारी तेज रोशनी के प्रति संवेदनशील बनाती हैं। इसलिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि ऑस्ट्रेलिया में नेत्र कैंसर की दर असामान्य रूप से अधिक है।

हमारे जागने-सोने का चक्र हमारे मस्तिष्क और हार्मोन द्वारा संचालित होता है और यह प्रकाश द्वारा पैदा विकास का एक और उदाहरण है।

मनुष्य दिन के उजाले के अनुकूल हो गया है। तेज रोशनी में मनुष्य अच्छी तरह से देख सकते हैं लेकिन हम कम रोशनी में कम देख पाते हैं।

हमारी निकटतम प्रजाति (चिम्पांजी, गोरिल्ला और ऑरंगुटान) भी दिन के उजाले में सक्रिय रहते हैं और रात को सोते हैं, जिससे इस विचार को बल मिलता है कि शुरुआती मनुष्यों का दैनिक व्यवहार भी इसी तरह का था।

पिछले लगभग 200 वर्षों में, कृत्रिम प्रकाश व्यवस्था ने (आंशिक रूप से) हमें हमारे इन सोने-जागने के प्राचीन चक्रों से अलग करने में मदद की है। लेकिन हाल के दशकों में इसका हर्जाना हमारी दृष्टि ने चुकाया है।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि आने वाली सहस्राब्दियों तक प्रकाश हमारे जीव विज्ञान को आकार देता रहेगा, लेकिन उन दीर्घकालिक प्रभावों की भविष्यवाणी करना मुश्किल हो सकता है।

द कन्वरसेशन गोला नरेश

नरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)