पूरी दुनिया में महिलाओं के बुनियादी अधिकार और स्वतंत्रता का किस तरह हनन हो रहा है? |

पूरी दुनिया में महिलाओं के बुनियादी अधिकार और स्वतंत्रता का किस तरह हनन हो रहा है?

पूरी दुनिया में महिलाओं के बुनियादी अधिकार और स्वतंत्रता का किस तरह हनन हो रहा है?

:   Modified Date:  November 22, 2024 / 05:43 PM IST, Published Date : November 22, 2024/5:43 pm IST

(हिंद एल्हिनावी, वरिष्ठ व्याख्याता, स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज, नॉटिंघम ट्रेंट यूनिवर्सिटी)

लंदन, 22 नवंबर (द कन्वरसेशन) इराक से लेकर अफगानिस्तान और अमेरिका तक महिलाओं के बुनियादी अधिकार एवं स्वतंत्रता खत्म हो रही है क्योंकि सरकारों ने मौजूदा कानूनों को वापस लेना शुरू कर दिया है।

अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज तालिबानी शासन ने कुछ महीने पहले अफगान महिलाओं के सार्वजनिक रूप से बोलने पर प्रतिबंध लगा दिया। देश में साल 2021 से सत्ता पर दोबारा काबिज हुए तालिबानी शासन ने वहां की महिलाओं पर यह नया प्रतिबंध लगाया है। इसके तहत, अफगान महिलाएं घर के बाहर गाना, ऊंची आवाज में पढ़ना, कविता पढ़ना और यहां तक की हँस भी नहीं सकती हैं।

सद्गुणों का प्रचार और दुराचार की रोकथाम से संबंधित तालिबान का मंत्रालय इन नियमों को लागू करता है। यह इस्लाम धर्म के कानूनों की सबसे कट्टरपंथी व्याख्याओं में से एक को लागू करता है। अफगानिस्तान में महिलाओं को सार्वजनिक रूप से अन्य महिलाओं के सामने कुरान जोर से पढ़ने पर भी प्रतिबंध है।

अफगानिस्तान में पिछले तीन वर्षों में तालिबान ने वहां रहने वाली महिलाओं से कई बुनियादी अधिकार छीन लिए हैं।

तालिबान ने साल 2021 से लड़कियों के शिक्षा प्राप्त करने पर भी कई प्रतिबंध लगाए हैं, जिसमें पहले उनके सहशिक्षा पर रोक लगाई गई और फिर लड़कियों के माध्यमिक विद्यालय जाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। इसके बाद 2023 में नेत्रहीन लड़कियों के स्कूलों को बंद कर दिया गया और चौथी से छठी कक्षा (नौ से 12 वर्ष की आयु) की लड़कियों के लिए स्कूल जाते समय अपना चेहरा ढंकना अनिवार्य कर दिया गया।

अफगानिस्तान में महिलाएं अब विश्वविद्यालयों में प्रवेश नहीं ले सकतीं, राष्ट्रीय स्तर पर डिग्री प्रमाण-पत्र प्राप्त नहीं कर सकतीं या कंधार क्षेत्र में दाई का काम या नर्सिंग प्रशिक्षण नहीं ले सकतीं। वहां महिलाओं को अब ‘फ्लाइट अटेंडेंट’ बनने या घर से बाहर नौकरी करने की भी अनुमति नहीं है। राजधानी काबुल में महिलाओं द्वारा संचालित बेकरी पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। अब ज़्यादातर महिलाएं न तो पैसे कमा पा रही हैं और न ही घर से बाहर निकल पा रही हैं। इस साल तालिबान ने हेलमंद प्रांत में मीडिया से कहा कि वे महिलाओं की आवाज प्रसारित करने से भी बचें।

महिला, शांति और सुरक्षा सूचकांक में अफगानिस्तान अंतिम स्थान पर है और संयुक्त राष्ट्र तथा अधिकारियों ने इसे ‘‘लैंगिक रंगभेद’’ करार दिया है।

कई राजनयिक इस बात पर चर्चा करते हैं कि महिलाओं के अधिकारों के संबंध में तालिबान के साथ बातचीत करना कितना महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके बावजूद वह इन प्रतिबंधों को रोक नहीं पाते हैं। जब राजनयिक मिलते हैं और बैठकें करते हैं तो वे आतंकवाद, मादक पदार्थ, व्यापारिक सौदों या बंधकों की वापसी जैसे मुद्दों पर चर्चा करते हैं। अफगानिस्तान की महिलाओं के साथ इतने कम समय में जो कुछ भी हुआ है उसके बावजूद आलोचकों का कहना है कि यह मुद्दा शायद ही कभी राजनयिकों की प्राथमिकता सूची में शामिल होता है।

इराक में शादी की उम्र

इराक में सांसद राद अल-मलिकी ने चार अगस्त, 2024 को इराक के 1959 के व्यक्तिगत स्थिति कानून में संशोधन करने का प्रस्ताव पेश किया, जिसमें शादी के लिए आयु 18 वर्ष से घटाकर नौ वर्ष हो सकती है ( या न्यायाधीश और माता-पिता की अनुमति से 15 वर्ष हो सकती है)।सरकार में रूढ़िवादी शिया गुटों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया।

इराक के इस कानून में बदलाव होने से न केवल बाल विवाह को वैधानिक मान्यता मिल सकती है, बल्कि महिलाओं के तलाक, बच्चों की देखभाल और उत्तराधिकार से संबंधित अधिकार भी छिन सकते हैं।

इराक में पहले से ही कम उम्र में विवाह की दर बहुत अधिक है, जहां सात प्रतिशत लड़कियों की शादी 15 वर्ष की आयु तक हो जाती है तथा 28 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 वर्ष की कानूनी आयु से पहले हो जाती है।

इराक में इस कानून के खिलाफ कई महिलाओं का समूह एकजुट हुआ है, लेकिन इसके बावजूद संसद में दूसरी बार यह संशोधन पारित किया गया। अगर इसको लागू कर दिया जाएगा तो इससे आगे और कानूनों में संशोधनों करने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है जो सांप्रदायिक विभाजन को और गहरा कर देगा। यह बच्चों के अधिकारों और लैंगिक समानता की रक्षा को भी प्रभावित कर सकता है।

अमेरिका में गर्भपात का अधिकार

इस बीच, अमेरिका में पिछले कुछ सालों में गर्भपात के अधिकार तक महिलाओं की पहुंच में काफी कमी आई है। एक अंतरराष्ट्रीय थिंकटैंक ने 2021 के अंत में आधिकारिक तौर पर अमेरिका को पिछड़ता हुआ लोकतंत्र करार दिया था।

छह महीने बाद, अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने ‘रो बनाम वेड’ मामले के ऐतिहासिक फैसले को पलट दिया। ‘रो बनाम वेड’ मामले के तहत लगभग 50 वर्षों तक गर्भपात के संवैधानिक अधिकार सुरक्षित रहे थे।

अमेरिकी संसद की रिपब्लिकन सांसद मार्जोरी टेलर ग्रीन ने मई 2022 में सुझाव दिया था कि अगर महिलाएं गर्भवती नहीं होना चाहती हैं तो उन्हें शादी नहीं करनी चाहिए। वास्तव में, अमेरिका में हर 68 सेकंड में एक यौन उत्पीड़न की घटना होती है। हर पांच में से एक अमेरिकी महिला बलात्कार के प्रयास या बलात्कार की शिकार होती है। 2009-13 के दौरान अमेरिकी बाल संरक्षण सेवा एजेंसियों को इस बात के पुख्ता सबूत मिले कि प्रति वर्ष 63,000 बच्चे यौन शोषण के शिकार हुए हैं।

डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल से इस बात के सबूत मिले हैं कि उनके राष्ट्रपति के दूसरे कार्यकाल में महिलाओं के अधिकारों का और अधिक हनन हो सकता है। उनके पिछले कार्यकाल के दौरान स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच को कमजोर करने के कई प्रयास किए गए थे। उनकी विदेश नीति ने ‘‘ग्लोबल गैग रूल’’ को पुनः लागू किया, जिसके तहत वित्तपोषण की शर्तों के माध्यम से दुनिया भर में महिलाओं की प्रजनन स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच को सीमित किया गया था।

महिलाओं के अधिकारों की कमजोर स्थिति

यदि विश्व तालिबान के दुर्व्यवहारों, इराक के प्रतिबंधात्मक कानूनों और गर्भपात पर अमेरिकी प्रतिबंधों को बर्दाश्त कर सकता है तो इससे वैश्विक स्तर पर महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों के बारे में पता चलता है कि उन्हें छीनना कितना आसान है।

संयुक्त राष्ट्र संघ की ‘यूएन वूमेन’ का मानना है कि कानूनी सुरक्षा में वैश्विक लैंगिक अंतर को पाटने में 286 वर्ष लग सकते हैं।

लैंगिकता के आधार पर वेतन में अंतर, कानूनी समानता और सामाजिक असमानता के स्तर के आधार पर अभी तक कोई भी देश लैंगिक समानता हासिल नहीं कर पाया है। दुनिया के हर कोने में महिलाओं और लड़कियों को भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। ऐसा लगता है कि यह और भी बदतर होता जा रहा है।

द कन्वरसेशन

प्रीति नरेश

नरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)