आशा और निराशा: जबरन गायब किए जाने के खिलाफ न्याय की लड़ाई लड़ रहे बांग्लादेश में परिवार |

आशा और निराशा: जबरन गायब किए जाने के खिलाफ न्याय की लड़ाई लड़ रहे बांग्लादेश में परिवार

आशा और निराशा: जबरन गायब किए जाने के खिलाफ न्याय की लड़ाई लड़ रहे बांग्लादेश में परिवार

:   Modified Date:  September 1, 2024 / 07:53 PM IST, Published Date : September 1, 2024/7:53 pm IST

(प्रदीप्त तापदार)

ढाका, एक सितंबर (भाषा) ढाका में एक मंद रोशनी वाले कमरे में बेबी अख्तर अपने पति तारिकुल इस्लाम तारा की धुंधली हो चुकी तस्वीर को थामे हुए हैं, जो कथित तौर पर बांग्लादेश की सुरक्षा एजेंसियों द्वारा ले जाए जाने के बाद बारह साल पहले गायब हो गए थे। यह एक व्यक्तिगत त्रासदी है, जो जबरन गायब किए जाने के व्यापक दुःस्वप्न को दर्शाती है जिसने पिछले 15 वर्षों से बांग्लादेश को परेशान किया हुआ है।

उन्होंने कहा, “मैं पिछले 12 साल से अपने पति का इंतज़ार कर रही हूं। मेरी जिंदगी और परिवार बिना किसी गलती के बर्बाद हो गए। हम न्याय चाहते हैं। हमें उम्मीद है कि अंतरिम सरकार हमें न्याय देगी। मैं अपने पति को वापस चाहती हूं।”

पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के हाल ही में अपदस्थ होने के बाद तारा जैसे सैकड़ों लोगों का भाग्य अनिश्चितता में डूबा हुआ है। हसीना के प्रशासन पर लोगों को व्यवस्थित तरीके से गायब करने का आरोप लगाया गया था।

हसीना के पद से हटने के बाद अंतरिम सरकार ने इन मामलों की जांच के लिए एक आयोग गठित करके एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है।

हालांकि, अब भी इंतजार कर रहे परिवारों के लिए आयोग का गठन आशा की किरण है और न्याय की तलाश में गुजारे गए वर्षों की याद दिलाता है, क्योंकि अवामी लीग शासन के पिछले डेढ़ दशक में जबरन गायब होने के लगभग 700 मामले दर्ज किए गए हैं।

गायब हुए लोगों के परिजनों के साथ काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन मायर डाक की समन्वयक संजीदा इस्लाम तुली ने कहा, “शेख हसीना के शासनकाल में जबरन लोगों को गायब कर देना आम बात थी। लापता लोगों के परिवारों के लिए आयोग का गठन एक महत्वपूर्ण अवसर है। पिछले 15 साल से यह लड़ाई लड़ने के बाद हमें न्याय मिलने की उम्मीद है।”

उन्होंने कहा, “जबरन गायब किए जाने के इस आतंक का इस्तेमाल राजनीतिक विरोध को दबाने, असहमति को दबाने और देश में भय का माहौल बनाने के लिए किया गया। पिछले डेढ़ दशक में, जिन लोगों को जबरन गायब कर दिया गया था, उनके परिवारों को कानूनी राहत देने से व्यवस्थित रूप से इनकार किया गया। यद्यपि पंजीकृत मामले लगभग 700 हैं, लेकिन वास्तविक आंकड़े इससे कहीं अधिक हैं।”

उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश के नेतृत्व में गठित इस आयोग में विधि विशेषज्ञ और मानवाधिकार कार्यकर्ता भी शामिल हैं।

यह घटनाक्रम नयी सरकार द्वारा जबरन गायब किए जाने के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र संधि पर हस्ताक्षर किए जाने के कुछ ही समय बाद हुआ, जिसमें गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाओं से निपटने के प्रति प्रतिबद्धता का संकेत दिया गया था।

जबरन गायब किए गए लोगों के परिजनों को न्याय दिलाने के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन ‘अधिकार’ द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, एकत्र किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि जनवरी 2009 और जून 2024 के बीच बांग्लादेशी कानून प्रवर्तन एजेंसियों और सुरक्षाबलों द्वारा 709 लोगों को जबरन गायब किया गया।

रिपोर्ट में कहा गया है, “उनमें से 471 लोग जीवित पाए गए या उन्हें अदालत में पेश किया गया। इस बीच, 83 लोग मृत मिले, जिनमें से कुछ कथित तौर पर सुरक्षाबलों के साथ ‘क्रॉसफायर’ में फंस गए। आज तक, 155 लोग लापता हैं।”

मानवाधिकार कार्यकर्ता माइकल चकमा, जिन्हें पिछले छह वर्षों से गुप्त कोठरियों में हिरासत में रखा गया था और हसीना के सत्ता से बाहर होने के बाद ही रिहा किया गया था, ने न्यायेतर हिरासत में अपने साथ हुई भयावहता को याद किया।

उन्होंने संवाददाताओं से कहा, “मुझे हर दिन पीटा जाता था और कल्पना से परे यातनाएं दी जाती थीं। मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं बाहर आऊंगा और सोचता था कि मैं यहीं मर जाऊंगा। पिछले छह साल से मुझे याद नहीं कि मैंने आखिरी बार सूरज की रोशनी कब देखी थी। उन कोठरियों में मेरे जैसे और भी बहुत से लोग थे।”

बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और जमात-ए-इस्लामी जैसे राजनीतिक दलों ने भी अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों को गायब किए जाने की कई घटनाओं की शिकायत की है।

भाषा प्रशांत नेत्रपाल

नेत्रपाल

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)