पर्यावरण अनुकूल भोजन के बारे में पांच मिथक |

पर्यावरण अनुकूल भोजन के बारे में पांच मिथक

पर्यावरण अनुकूल भोजन के बारे में पांच मिथक

Edited By :  
Modified Date: October 14, 2024 / 02:51 PM IST
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Published Date: October 14, 2024 2:51 pm IST

(बियांका वासमैन, ईटीएच-सिंगापुर और ईटीएच-ज्यूरिख)

सिंगापुर, 14 अक्टूबर (360इंफो) ‘ऑर्गेनिक बीफ’, ‘जीएमओ-मुक्त’ और ‘शत-प्रतिशत प्राकृतिक’ खाद्य पदार्थ उन अनगिनत दावों में से कुछ ऐसे दावे हैं जो सुपरमार्केट में पर्यावरण के प्रति जागरूक उपभोक्ताओं का ध्यान आकृष्ट करने के लिए किये जाते हैं।

यद्यपि लोग ऐसे लेबल वाले खाद्य पदार्थों पर अधिक खर्च करने के लिए तैयार हैं, लेकिन अक्सर इस बात पर पर्याप्त विचार नहीं किया जाता है कि ये विशेषताएं वास्तव में किसी खाद्य पदार्थ की पर्यावरणीय स्थिरता में कितना योगदान देती हैं।

यह समझने योग्य बात है कि आखिर क्यों उपभोक्ता भ्रमित हैं।

विभिन्न खाद्य पदार्थों के पर्यावरणीय प्रभावों का निर्धारण करना बहुत ही जटिल काम है, क्योंकि ये इस बात से प्रभावित होते हैं कि वे कितने संसाधनों और ऊर्जा का उपभोग करते हैं, वे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कितना करते हैं, वे उस क्षेत्र की जैव विविधता को किस प्रकार प्रभावित करते हैं, जहां उनका उत्पादन होता है, उन्हें बाजार में कैसे और कितनी दूर तक पहुंचाया जाता है, तथा वे कितना और किस प्रकार का कचरा पैदा करते हैं।

इसके बावजूद, मानव स्वास्थ्य और ग्रह दोनों को लाभ पहुंचाने वाले आहार की बुनियादी विशेषताएं स्पष्ट हैं।

हमारे दैनिक कैलोरी सेवन का कम से कम आधा हिस्सा फलों, सब्जियों, साबुत अनाज, फलियों, मेवों और बीजों से आना चाहिए, जबकि लाल मांस और ऊर्जा से भरपूर, पोषक तत्वों से रहित खाद्य पदार्थ जैसे कि चीनी और परिष्कृत अनाज को काफी सीमित करना चाहिए।

दुर्भाग्य से, ठेठ पश्चिमी आहार इस आदर्श से बहुत दूर हैं और कई आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक कारक इस विसंगति में योगदान करते हैं, फलस्वरूप इससे निपटना एक कठिन मुद्दा बन जाता है।

हालांकि, जनता को अधिक स्थायी उपभोग से रोकने वाली मनोवैज्ञानिक बाधाओं से निपटना उनके व्यवहार को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है।

ऐसा करने की दिशा में पहला कदम उपभोक्ताओं के बीच इस बात की महत्वपूर्ण कमी को दूर करना है कि आखिर ऐसा क्या हो जो खाद्य विकल्प को पर्यावरण के अनुकूल बनाता है।

पहला मिथक: ‘मांस के पर्यावरण संबंधी प्रभावों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है’

खाद्य उत्पादन की दृष्टि से पशुपालन पर्यावरण को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियों में से एक है, क्योंकि इसमें ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन अधिक होता है, संसाधनों का व्यापक उपयोग होता है और इससे प्रदूषण होता है।

नतीजतन, कोई व्यक्ति अपने आहार के पारिस्थितिकीय प्रभावों को कम करने के लिए पशु-आधारित खाद्य पदार्थों, विशेष रूप से गोमांस को सीमित करके सबसे प्रभावशाली बदलाव कर सकता है।

इसके अतिरिक्त, एक व्यापक लेकिन गलत धारणा है कि कार और विमान यात्रा कम करना, बिजली की बचत करना, पुनर्चक्रण और प्लास्टिक से बचना पशु-आधारित खाद्य पदार्थों की खपत को कम करने की तुलना में किसी व्यक्ति के लिए जलवायु के लिए अधिक महत्वपूर्ण है।

विशेष रूप से, पादप-आधारित आहार अपनाने से व्यक्ति के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 20 से 30 प्रतिशत की कमी आ सकती है, जबकि अन्य क्रियाओं से 5 से 15 प्रतिशत की कमी आती है।

इन गलत धारणाओं का समाधान करना और अधिक पौधे-आधारित आहार की ओर बढ़ना पर्यावरणीय स्थिरता को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ा सकता है और बढ़ावा दे सकता है।

दूसरा मिथक: ‘जैविक और स्थानीय उत्पादन हमेशा दीर्घकालिक होते हैं’

लोग अक्सर मानते हैं कि जैविक और स्थानीय उत्पादन दीर्घकालिकता के लिए स्वर्ण मानक हैं, क्योंकि यह रासायनिक इस्तेमाल और परिवहन उत्सर्जन को कम कर सकता है। हालांकि, इस दृष्टिकोण के लिए अधिक सूक्ष्मता की आवश्यकता है।

उपभोक्ताओं की गलत धारणाएं विशेष रूप से उस वक्त समस्याग्रस्त होती हैं जब उन्हें लगता है कि स्थानीय कसाई से जैविक मांस खरीदना मांस उत्पादन के पर्यावरणीय प्रभाव को काफी हद तक कम कर सकता है।

तीसरा मिथक 3: ‘जो प्राकृतिक है, वह अच्छा है’

मनुष्यों में एक ‘प्राकृतिक पूर्वाग्रह’ होता है, जो यह मानता है कि जो प्राकृतिक है वह स्वाभाविक रूप से अच्छा है। परिणामस्वरूप, परिरक्षकों या योजकों अथवा कृत्रिम अवयवों या उच्च स्तर के प्रसंस्करण वाले खाद्य पदार्थों को अक्सर बेहतर माना जाता है।

इस विश्वास का आलोचनात्मक मूल्यांकन करना महत्वपूर्ण है। किसी भी नई खाद्य तकनीक का उनके वास्तविक पर्यावरणीय प्रभावों के आधार पर मूल्यांकन करना आवश्यक है, न कि उनकी कथित अप्राकृतिकता के कारण उन्हें खारिज करना।

चौथा मिथक: ‘मेरे लिए अच्छा, धरती के लिए अच्छा’

स्वस्थ खाद्य पदार्थों को अक्सर स्वचालित रूप से पर्यावरण के अनुकूल माना जाता है। हालाकि, किसी भोजन की पोषण गुणवत्ता और उसके पर्यावरणीय प्रभाव का आपस में कोई संबंध नहीं है।

उदाहरण के तौर पर भले ही स्ट्रॉबेरी अत्यधिक पौष्टिक होती हैं, लेकिन उनका पर्यावरणीय प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि वे स्थानीय रूप से उगाई गई थीं या दूर देश में, किसी खेत में या गर्म ग्रीनहाउस में।

वास्तव में दीर्घकालिक आहार प्राप्त करने के लिए पोषण मूल्य और पारिस्थितिक पदचिह्न दोनों पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता होती है।

पांचवा मिथक: ‘धरती को संरक्षित करने के लिए बजट को समाप्त करना आवश्यक है’

कई उपभोक्ता मानते हैं कि पर्यावरण के अनुकूल तरीके से खाना महंगा है। हालांकि, वैज्ञानिक गणना से पता चलता है कि अधिक चिरस्थायी आहार वर्तमान पश्चिमी आहार की तुलना में सस्ते हैं।

उच्च आय वाले देशों में, पादप-आधारित आहार सबसे किफ़ायती हैं, जहां शाकाहारी लोग भोजन की लागत में एक तिहाई तक की कटौती करते हैं। हालांकि, देशों के बीच खाद्य लागत अलग-अलग हो सकती है: कम आय वाले देशों में, जहां आहार सस्ते स्टार्च वाले स्टेपल्स पर निर्भर करते हैं, वहां फलों, सब्जियों, नट्स और फलियों का सेवन बढ़ाना किफ़ायती नहीं हो सकता।

(360 इंफो.आर्ग) सुरेश नरेश

नरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)