(मैरियन सॉवर, ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी)
सिडनी, 28 जनवरी (द कन्वरसेशन) दिसंबर 1972 में जब ऑस्ट्रेलिया में प्रधानमंत्री गॉफ व्हिटलैम के नेतृत्व वाली सरकार पहली बार सत्ता में आई थी, तब संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1975 को अंतरराष्ट्रीय महिला वर्ष (आईडब्ल्यूवाई) के रूप में घोषित किया था। इस घोषणा ने दुनिया को बदलने वाली कई घटनाक्रमों की नींव तैयार की, जिसमें ऑस्ट्रेलिया को भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी थी।
आईडब्ल्यूवाई का मकसद महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को खत्म करना और आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन में उनकी पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करना था। पचास साल बाद ऐसी भागीदारी विकास और सुशासन की सूचक बन गई है। लेकिन नकारात्मक भाव और लिंग-आधारित हिंसा के दंश के कारण अंतरराष्ट्रीय महिला वर्ष का संपूर्ण उद्देश्य अभी तक पूरा नहीं हो पाया है।
चेतना जगाने वाली सबसे बड़ी घटना
-महिलाओं पर संयुक्त राष्ट्र का पहला विश्व सम्मेलन जून 1975 में मेक्सिको सिटी में आयोजित किया गया था, जिसे “चेतना जगाने वाली इतिहास की सबसे बड़ी घटना” करार दिया गया था। चेतना जागरण महिलाओं की आजादी से जुड़े प्रदर्शनों का हिस्सा रहा था। अब सरकारों और अंतर-सरकारी निकायों ने इसका बीड़ा उठाया है।
मेक्सिको सिटी सम्मेलन कई मायनों में एजेंडा निर्धारित करने वाला साबित हुआ था। एलिजाबेथ रीड के नेतृत्व में ऑस्ट्रेलियाई सरकार के प्रतिनिधिमंडल ने बहुपक्षीय कूटनीति की दुनिया को महिला आंदोलन की भाषा से अवगत कराने में मदद की। जैसा कि रीड ने कहा था : ‘हमने तर्क दिया कि सम्मेलन के दस्तावेजों में जब भी ‘नस्लवाद’, ‘उपनिवेशवाद’ और ‘नव-उपनिवेशवाद’ जैसे शब्द आएं, तब ‘लिंगवाद’ को भी उसमें शामिल किया जाना चाहिए। ‘लिंगवाद’ एक ऐसा शब्द था, जो उस तारीख तक संयुक्त राष्ट्र के दस्तावेजों या बहस में नजर नहीं आया था।’
रीड प्रधानमंत्री की महिला मामलों की सलाहकार के पद काबिज थीं। इस अग्रणी भूमिका में वह आईडब्ल्यूवाई के दौरान ऑस्ट्रेलिया में राष्ट्रीय चेतना जगाने वाली कवायदों के लिए सरकारी प्रतिबद्धता और धन जुटाने में सफल साबित हुई थीं।
बड़े पैमाने पर मिले छोटे अनुदानों ने ‘हमारे दिमाग में क्रांति लाने के साथ ही’ महिला संगठनों, गिरजाघरों और संघों की सोच एवं व्यवहार में बदलाव को बढ़ावा दिया। इसने नये महिला केंद्रों को गेस्टेटनर मशीन (लिखित या मुद्रित दस्तावों की प्रति उपलब्ध कराने वाली मशीन) जैसी सहायता भी प्रदान की।
आईडब्ल्यूआई अनुदान में शरणार्थी केंद्र, महिला स्वास्थ्य केंद्र और बलात्कार संकट केंद्र नयी महिला सेवाएं स्पष्ट रूप से शामिल नहीं थीं। उनके वित्तपोषण को एकमुश्त अनुदान के लिए उपयुक्त समझे जाने के बजाय सरकार की एक सतत जिम्मेदारी माना जाता था।
ऑस्ट्रेलिया में आईडब्ल्यूवाई की शुरुआत एक जनवरी को नये साल के लिए देश की आशाओं और आकांक्षाओं पर रीड और गवर्नर-जनरल जॉन केर के बीच टेलीविजन पर बातचीत के साथ हुई। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (आठ मार्च) पर प्रधानमंत्री गॉफ व्हिटलैम के भाषण में व्यवहार में बदलाव की आवश्यकता पर जोर दिया गया। उन्होंने कहा कि पुरुषों और महिलाओं दोनों को पूर्वाग्रह के हमारे अभ्यस्त रुख के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए, जिसे हम अक्सर इस रूप में नहीं देखते हैं, लेकिन जिसका अस्तित्व हमारी भाषा और व्यवहार से स्पष्ट रूप से प्रकट होता है।
ऑस्ट्रेलिया की डाक सेवा ने आईडब्ल्यूवाई के प्रतीक चिह्न वाला एक डाक टिकट जारी करके इस दिन का जश्न मनाया, जो महिलाओं के पारंपरिक बंधनों से मुक्त होने की भावना को दर्शाता था। रीड के सुझाव पर प्रतीक चिह्न सहित सभी आईडब्ल्यूवाई सामग्री को बैंगनी, हरे और सफेद रंग में मुद्रित किया गया था, जिन्हें महिलाओं के लिए मताधिकार की मांग वाले आंदोलन के रंगों के रूप में जाना जाता है।
लैंगिक प्रभाव नीति निर्माण का हिस्सा बना
-सरकार के अंदर रीड ने यह विचार पेश किया था कि लैंगिक प्रभाव के लिए सभी कैबिनेट प्रस्तावों का विश्लेषण करने की आवश्यकता है। मेक्सिको सिटी सम्मेलन के बाद, यह विचार शासन के नये अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का हिस्सा बन गया।
विश्व कार्य योजना सम्मेलन में अपनाए जाने के बाद यह विचार दुनिया भर में प्रसारित किया गया कि सरकारों को लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए विशेष नीति तंत्र बनाने की जरूरत है।
चूंकि, इस दिशा में बड़े पैमाने पर काम किए जाने की आवश्यकता थी, इसलिए आईडब्ल्यूवाई को महिलाओं के लिए संयुक्त राष्ट्र दशक (1976-85) तक विस्तारित किया गया। इसके अंत तक, 127 देशों ने महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए किसी न किसी तरह की सरकारी मशीनरी विकसित कर ली थी। बाद में संयुक्त राष्ट्र के हर विश्व सम्मेलन (कोपेनहेगन 1980, नैरोबी 1985, बीजिंग 1995) में नयी कार्ययोजनाएं तैयार कीं और सरकारों द्वारा रिपोर्टिंग की मजबूत प्रणाली बनाई।
बीजिंग में महिलाओं पर चौथा विश्व सम्मेलन एक मील का पत्थर साबित हुआ। इसमें ‘कार्रवाई के लिए तैयार मंच’ ने उस चीज को और अधिक प्रोत्साहन प्रदान किया, जिसे अब ‘जेंडर मेनस्ट्रीमिंग ‘ कहा जाता है। जेंडर मेनस्ट्रीमिंग एक ऐसी रणनीति है, जो नीतियों, कार्यक्रमों और सेवाओं में लैंगिक समानता को एकीकृत करती है। 2018 तक, उत्तर कोरिया को छोड़कर संयुक्त राष्ट्र से मान्यता प्राप्त प्रत्येक देश ने इस उद्देश्य के लिए सरकारी मशीनरी स्थापित कर ली थी।
कई और महिला हितौषी कदम उठाए गए
-आईडब्ल्यूवाई के बाद महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर संयुक्त राष्ट्र संधि (सीईडीएडब्ल्यू) को 1979 में अपनाया गया था। सीईडीएडब्ल्यू को महिलाओं के अधिकारों के अंतरराष्ट्रीय बिल के रूप में जाना जाता है, जिसे 189 देशों ने अनुमोदित किया है। यह बाल अधिकारों को छोड़कर किसी भी अन्य संयुक्त राष्ट्र संधि से अधिक महत्वपूर्ण है।
सीईडीएडब्ल्यू के सभी हस्ताक्षरकर्ताओं को इसके कार्यान्वयन पर संयुक्त राष्ट्र के समक्ष समय-समय पर रिपोर्ट पेश करने की आवश्यकता थी। गैर-सरकारी संगठनों को सरकारी प्रतिनिधियों को सवाल-जवाब के बारे में सूचित करने के लिए छाया रिपोर्ट सौंपने को प्रोत्साहित किया गया। लैंगिक समानता सुनिश्चित करने से जुड़ी यह निरीक्षण प्रक्रिया और संवाद संयुक्त राष्ट्र की आदर्श-कार्यप्रणाली का हिस्सा बन गया।
हालांकि, अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर इस सफलता ने ‘लिंग-विरोधी आंदोलनों’ को बढ़ावा देने में मदद की, जिन्होंने 1995 के बाद रफ्तार पकड़ी। महिलाओं पर कोई और विश्व सम्मेलन आयोजित नहीं किया गया, इस डर से कि बीजिंग सम्मेलन में प्राप्त मानकों को नुकसान पहुंचेगा।
पचास साल बाद भी नहीं थमी लड़ाई
-आईडब्ल्यूआई के पचास साल बाद ऑस्ट्रेलिया सवैतनिक मातृत्व अवकाश, बच्चों की देखभाल, बुजुर्गों की देखभाल और घरेलू काम जैसी गतिविधियों को आर्थिक महत्व देने तथा महिलाओं के लिए पुरुषों के समान आर्थिक नीति बनाने की दिशा में कुछ खोई हुई जमीन हासिल करने की कोशिश कर रहा है। हालांकि, यह सब अनिश्चित बना हुआ है, क्योंकि लैंगिक समानता के मुद्दों को भी ‘विशेषाधिकार एजेंडा’ के हिस्से के रूप में आसानी से खारिज कर दिया जाता है।
(द कन्वरसेशन) पारुल माधव
माधव
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(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)