(क्रिस्टीन कार्सन, सीनियर रिसर्च फेलो, स्कूल ऑफ मेडिसिन, द यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया)
कैनबरा, 24 जनवरी (द कन्वरसेशन) इजराइल और हमास के बीच हाल ही में हुए युद्धविराम समझौते के बावजूद गाजा में युद्ध ने कई तरीके से अपने निशान छोड़े हैं।
एक पहलू यह भी है कि कैसे अराजकता रोगाणुरोधी प्रतिरोध को बढ़ाने में सहायक साबित होती है।
इस स्थिति में यह सूक्ष्मजीव उन दवाओं का सामना करने के काबिल हो जाते हैं, जिन्हें इन सूक्ष्मजीवों को मारने के लिए बनाया गया था। ये सूक्ष्मजीव ‘सुपरबग’ में बदल जाते हैं, जो पहले प्रभावी उपचारों को अप्रभावी बना देते हैं और वे संक्रमण, जिससे आप अतीत में उबर चुके हैं उसे घातक बना देते हैं।
हम पहले ही गाजा और दुनिया भर के अन्य संघर्ष क्षेत्रों में रोगाणुरोधी प्रतिरोध के उदाहरण देख चुके हैं।
रोगाणुरोधी प्रतिरोध वैश्विक स्तर पर एक बढ़ती हुई समस्या है। यह न केवल मानव स्वास्थ्य, बल्कि कृषि, खाद्य सुरक्षा और अर्थव्यवस्थाओं को भी खतरे में डालती है।
रोगाणुरोधी प्रतिरोध का प्रबंधन जटिल है और इसके संक्रमण को रोकने, रोगाणुरोधी एजेंटों के उपयोग पर सीमाएं और मजबूत स्वास्थ्य सेवा प्रणाली सहित दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।
स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली होती है बाधित
सशस्त्र संघर्ष स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे को तबाह कर देते हैं। ऐसे संघर्ष अक्सर सीमित संसाधनों वाली जगहों पर होते हैं।
अस्पताल और नैदानिक प्रयोगशालाएं क्षतिग्रस्त या फिर नष्ट हो जाती हैं क्योंकि संघर्ष में स्वास्थ्य सेवाकर्मी मारे जाते हैं या फिर विस्थापित हो जाते हैं।
संघर्ष क्षेत्रों में नैदानिक क्षमताएं, उपचार और स्वास्थ्य देखभाल जैसी सेवाएं कम हो जाती हैं, जिसकी वजह से संक्रमण को रोकना और नियंत्रित करना बेहद कठिन हो जाता है।
टीकाकरण भी होता है बाधित
टीकाकरण कार्यक्रम बाधित होने से रोगाणुरोधी प्रतिरोध का विकास प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीकों से प्रभावित हो सकता है।
उदाहरण के लिए संघर्ष क्षेत्रों में जीवाणु रोगों से लड़ने के लिए लगाये जाने वाले टीकाकरण अभियान में कमी से अधिक संक्रमण होते हैं, जिससे एंटीबायोटिक दवाओं की आवश्यकता बढ़ जाती है और रोगाणुरोधी प्रतिरोध विकसित होने का जोखिम बढ़ जाता है।
वायरल रोगों से लड़ने के लिए टीका नहीं लगवाना संघर्ष क्षेत्रों में लोगों को वायरल संक्रमणों और जीवाणु संक्रमणों के प्रति संवेदनशील बना सकता है।
वायरल और जीवाणु रोगों से निवारक उपाय के रूप में या उपचार के रूप में एंटीबायोटिक का उपयोग होता है, जिससे रोगाणुरोधी प्रतिरोध के विकास को बढ़ावा मिलता है।
एंटीबायोटिक का जरूरत से ज्यादा सेवन और दुरुपयोग
संघर्ष क्षेत्रों में ज्यादातर लोगों को चोट लगना, संक्रमण और गंदगी जैसी चीजें आम बात हैं। इन स्थितियों में एंटीबायोटिक दवाओं पर अत्यधिक निर्भरता होती है, खासकर ऐसी दवाएं, जो बैक्टीरिया की व्यापक श्रेणी के खिलाफ काम करती हैं।
आदर्श रूप से, ज्यादातर इस्तेमाल की जाने वाली एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग संयम से और निदान परीक्षणों के बाद किया जाना चाहिए।
हालांकि, उपचार की आवश्यकता होती है और निदान क्षमताओं से समझौता किया जाता है। इसलिए ज्यादातर इस्तेमाल में लाई जाने वाली एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग ज्यादा से ज्यादा किया जाता है, जिससे प्रतिरोध के विकास को और बढ़ावा मिलता है।
युद्धग्रस्त क्षेत्रों में एंटीबायोटिक दवाओं तक पहुंच पर कम नियंत्रण भी एक समस्या है।
बिना किसी पर्चे, पेशेवर निरीक्षण या जांच के एंटीबायोटिक का इस्तेमाल ऐसे तरीकों से किया जाता है, जिससे प्रतिरोध और बढ़ जाता है। इसमें लोगों द्वारा ‘बस एक-दो मामलों में’ इस्तेमाल करना, उस संक्रमण या चोट के लिए प्रभावी न होने वाले एंटीबायोटिक का इस्तेमाल करना, या उन्हें बहुत लंबे समय तक या पर्याप्त समय तक इस्तेमाल न करना शामिल है।
इन सभी कारणों से एंटीबायोटिक का अत्यधिक उपयोग और दुरुपयोग प्रतिरोधी रोगाणुओं के उत्पन्न होने और फैलने की अधिक संभावना बनाता है।
घाव, संक्रमण और एंटीबायोटिक
सशस्त्र संघर्ष के कारण बड़ी संख्या में दर्दनाक चोटें आती हैं।
यूक्रेन के निप्रो में मेचनिकोव अस्पताल के मुख्य सर्जन सर्जी कोसुलनिकोव ने पिछले वर्ष कहा था, “हर विस्फोट एक खुला घाव है और हर खुला घाव एक संक्रमण है।”
इन चोटों के इलाज के लिए एंटीबायोटिक दवाओं की आवश्यकता होती है। हालांकि, संघर्ष क्षेत्रों में संक्रमित करने वाले रोगाणु अक्सर कई दवाओं के प्रति प्रतिरोधी होते हैं।
यह विशेष रूप से तब होता है जब वे रोगाणु युद्ध के मैदान, फील्ड अस्पतालों या अन्य उच्च जोखिम वाले वातावरण में पैदा होते हैं।
एक बार रोगाणुरोधी प्रतिरोध शुरू हो जाने के बाद, ये परिस्थितियां रोगाणुओं के लिए अतिरिक्त एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी बनना आसान बना देती हैं।
रहने के लिए गंदगी भरा माहौल
विस्थापित आबादी के लिए शरणार्थी शिविर और आश्रय स्थल अक्सर भीड़भाड़ वाले होते हैं और उनमें स्वच्छ पानी व उचित स्वच्छता की सुविधा नहीं होती। इसलिए संक्रमण और प्रतिरोधी रोगाणुओं के होने और फैलने की संभावना अधिक होती है, जिससे प्रकोप और भी बदतर हो जाता है तथा प्रतिरोधी रोगाणुओं का विकास व प्रसार को बढ़ावा मिलता है।
निगरानी का अभाव रोगाणुरोधी प्रतिरोध का प्रभावी प्रबंधन सटीक नैदानिक परीक्षणों और प्रतिरोध चलन का पता लगाना व उपचार अनुशंसाओं को सूचित करने के लिए मजबूत निगरानी प्रणालियों पर निर्भर करता है।
संघर्ष इन प्रणालियों को बाधित करता है, जिससे अधिकारी उभरते प्रतिरोध रुझानों पर नजर नहीं रख राते हैं। यह व्यवधान प्रभावी प्रतिवादों के कार्यान्वयन में भी देरी करता है।
प्रतिरोधी रोगाणुओं का वैश्विक प्रसार
संघर्ष के कारण रोगाणुरोधी प्रतिरोधी सूक्ष्मजीवों का एक बड़ा समूह पैदा होता है, जो संघर्ष क्षेत्र में और उसके बाहर कई लोगों को संक्रमित या अपना शिकार बना सकता है।
संघर्ष क्षेत्र में लोगों का आना-जाना सीमाओं के पार इस प्रसार में योगदान देता है। शरणार्थी और विस्थापित लोग अक्सर प्रतिरोधी सूक्ष्मजीवों को ऐसे क्षेत्रों में ले जाते हैं, जहां पहले से कोई रोगी नहीं था या फिर उनकी संख्या कम थी, जिससे रोगाणुरोधी प्रतिरोध का वैश्विक प्रसार होता है।
अफगानिस्तान, गाजा, सीरिया, यूक्रेन, यमन और अन्य स्थानों पर संघर्षों के दौरान अनेक एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी बैक्टीरिया उभरे और पनपे, तथा ऐसा होना जारी है।
हमें इसके बारे में क्या करना चाहिए?
संघर्ष से प्रभावित क्षेत्रों में रोगाणुरोधी प्रतिरोध पर लगाम लगाये जाने की तत्काल आवश्यकता है, साथ ही शांति की भी। इसमें स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों का पुनर्निर्माण और रखरखाव, साफ-सफाई में सुधार, एंटीबायोटिक उपयोग को विनियमित करना और स्वच्छ पानी व टीकों तक पहुंच सुनिश्चित करना शामिल है।
संघर्ष से पहले से ही प्रभावित लोगों पर विनाशकारी प्रभाव को कम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग और निरंतर निवेश आवश्यक है।
इसके बिना, रोगाणुरोधी प्रतिरोध युद्ध की एक और भयावह रूप ले सकता है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वास्थ्य और सुरक्षा को खतरे में डाल देगा।
द कन्वरसेशन जितेंद्र रंजन
रंजन
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(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)