क्या देश की व्यवस्था के खिलाफ युवाओं के गुस्से ने शेख हसीना के शासन को उखाड़ फेंका ? |

क्या देश की व्यवस्था के खिलाफ युवाओं के गुस्से ने शेख हसीना के शासन को उखाड़ फेंका ?

क्या देश की व्यवस्था के खिलाफ युवाओं के गुस्से ने शेख हसीना के शासन को उखाड़ फेंका ?

Edited By :  
Modified Date: August 12, 2024 / 05:59 PM IST
,
Published Date: August 12, 2024 5:59 pm IST

ढाका, 12 अगस्त (एपी) देश की व्यवस्था के प्रति निराशा जाहिर करते हुए एक विश्वविद्यालय की छात्रा जन्नत-उल प्रोम कहती हैं कि डिग्री पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई या संभवतः नौकरी के लिए वह बांग्लादेश छोड़ देंगी क्योंकि यहां की व्यवस्था में योग्य उम्मीदवार के लिए कोई जगह नहीं है और युवाओं को बेहद कम अवसर मिलते हैं।

प्रोम ने कहा, ‘‘हमारे यहां दायरा बेहद सीमित है।’’ उन्होंने कहा कि अगर उनके परिवार के पास उन्हें और उनके बड़े भाई के खातिर विदेशी विश्वविद्यालयों में पढ़ाने की फीस के लिए पर्याप्त धन होता तो वह पहले ही घर छोड़ देतीं।

लेकिन हाल की घटनाओं से उनके मन में उम्मीद जगी है कि एक दिन बांग्लादेश में हालत बदलेंगे। देश की सत्ता में 15 वर्ष रहने के बाद प्रधानमंत्री शेख हसीना ने युवाओं के प्रदर्शन के चलते पिछले सप्ताह पद से इस्तीफा दे दिया और देश छोड़कर चली गईं।

सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों में प्रोम भी शामिल थी। उनका कहना है कि जिस तरह से शेख हसीना के निरंकुश शासन ने असहमति को दबाया, अभिजात वर्ग को तरजीह दी और असमानताओं को बढ़ाया, उससे युवा तंग आ चुके थे।

जून में छात्र बांग्लादेश की सड़कों पर उतर आए थे और मांग कर रहे थे कि उन नियमों को समाप्त किया जाए जिसके तहत 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में हिस्सा लेने वाले लड़ाकों के रिश्तेदारों को सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया गया था।

छात्रों के आंदोलन का केंद्र वह नौकरियां भी थीं जिन्हें देश में सबसे स्थिर और सबसे अधिक वेतन वाली माना जाता है, लेकिन हाल के वर्षों में देश की अर्थव्यवस्था में तेजी के बावजूद मध्यम वर्ग को इस तरह की नौकरियों में पर्याप्त अवसर नहीं मिल पाए।

यह बात भी हैरान करने वाली है कि बिल्कुल नयी युवा पीढ़ी ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया। प्रोम जैसे युवा बांग्लादेश में नौकरी के अवसरों की कमी से सबसे अधिक निराश और प्रभावित हैं।

जुलाई के मध्य में हसीना ने युवाओं की मांगों को हल्के में लेते हुए सवाल पूछा था कि अगर नौकरियां स्वतंत्रता सेनानियों को नहीं दी जानी चाहिए तो फिर किसे दी जानी चाहिए।’’ हसीन ने कुछ ही समय बाद इसके जवाब में कहा था, ‘‘क्या नौकरियां रजाकार के वशंजों को दी जानी चाहिए।’’ इसके बाद युवाओं का गुस्सा भड़क गया था।

रजाकार वे लोग थे जिन्होंने बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम को दबाने के लिए पाकिस्तान के साथ हाथ मिला लिया था।

अगले दिन, सुरक्षा बलों के साथ झड़पों के दौरान प्रदर्शनकारियों की मौत की खबरें आई जिससे विरोध और भड़क गया तथा हसीना सरकार के खिलाफ छात्रों के प्रदर्शन ने व्यापक विद्रोह का रूप ले लिया।

कॉर्नेल विश्वविद्यालय में राजनीतिक हिंसा और बांग्लादेश के सैन्य इतिहास का अध्ययन करने वाली प्रोफेसर सबरीना करीम ने कहा कि प्रदर्शनकारियों में नयी पीढ़ी भी शामिल रही जिन्हें हसीना के प्रधानमंत्री बनने से पहले के दौर के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है।

ढाका विश्वविद्यालय की 22 वर्षीय छात्रा नूरिन सुल्ताना टोमा का कहना है कि जिस तरह हसीना ने छात्र प्रदर्शनकारियों की तुलना देशद्रोहियों से की थी उससे साफ है कि उन्हें इस बात का अंदाजा हो गया था कि वह युवा की मांग को किसी भी कीमत पर पूरा नहीं कर पाएंगी।

टोमा ने कहा कि उन्हें लगने लगा था कि बांग्लादेश धीरे-धीरे असमानताओं का आदी होता जा रहा है और लोगों ने यह उम्मीद खो दी है कि चीजें कभी बेहतर होंगी।

एपी खारी माधव

माधव

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)