भुलक्कड़ होने के विकासात्मक लाभ |

भुलक्कड़ होने के विकासात्मक लाभ

भुलक्कड़ होने के विकासात्मक लाभ

:   Modified Date:  November 5, 2024 / 05:43 PM IST, Published Date : November 5, 2024/5:43 pm IST

(स्वेन वेनेस्टे, ट्रिनिटी कॉलेज डबलिन में क्लिनिकल न्यूरोसाइंस के प्रोफेसर और एल्वा अरुलचेलवन, ट्रिनिटी कॉलेज डबलिन में मनोविज्ञान की व्याख्याता और मनोविज्ञान और तंत्रिका विज्ञान में पीएचडी शोधकर्ता)

डबलिन, पांच नवंबर (द कन्वरसेशन) भूल जाना हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा है। हो सकता है कि आपको सड़क पर कोई नमस्ते कहे, पर आप उसका नाम नहीं याद कर सकें या आप किसी कमरे में जाकर यह भूल जाएं कि आप वहां क्यों गये?

लेकिन हम चीजें क्यों भूल जाते हैं? क्या यह महज याददाश्त कमजोर होने का संकेत है, या इसके कोई लाभ भी हैं?

इस क्षेत्र में सबसे शुरुआती नतीजों में से एक ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भूलना केवल इसलिए हो सकता है क्योंकि औसत व्यक्ति की स्मृति कमजोर हो जाती है। यह विचार 19वीं सदी के जर्मन मनोवैज्ञानिक हरमन एबिंगहॉस ने दिया जिनके ‘‘भूलने का वक्र’’ (फॉरगेटिंग कर्व) से पता चलता है कि कैसे अधिकतर लोग नयी जानकारी का विवरण बहुत तेजी से भूल जाते हैं, लेकिन समय के साथ यह कम हो जाता है। हाल ही में इसे तंत्रिका विज्ञानियों द्वारा दोहराया गया है।

भूलने का वक्र:

हालांकि, भूलने से कार्यात्मक उद्देश्य भी पूरे हो सकते हैं। हमारा मस्तिष्क लगातार सूचनाओं से भरा रहता है। यदि हमें हर विवरण याद रखना होगा तो महत्वपूर्ण जानकारी को हमेशा याद रखना कठिन हो जाएगा।

जिन तरीकों से हम इससे बचते हैं उनमें से एक है सबसे पहले पर्याप्त ध्यान न देना। नोबेल पुरस्कार विजेता एरिक कैंडेल और उनके बाद के कई शोधों से पता चलता है कि स्मृति का सृजन तब होता है जब मस्तिष्क में कोशिकाओं (न्यूरॉन्स) के बीच ‘कनेक्शन’ (सिनैप्स) मजबूत होते हैं।

किसी चीज पर ध्यान देने से उन संबंधों को मजबूत किया जा सकता है और उसकी स्मृति को बनाए रखा जा सकता है। यही तंत्र हमें उन सभी अप्रासंगिक विवरणों को भूलने में सक्षम बनाता है जिनका हम हर दिन सामना करते हैं।

यद्यपि लोगों में उम्र बढ़ने के साथ-साथ विचलित होने के लक्षण बढ़ जाते हैं, और अल्जाइमर रोग जैसे स्मृति-संबंधी विकार ध्यान में कमी से जुड़े होते हैं, हम सभी को यादें बनाने के लिए सभी महत्वहीन विवरणों को भूलने में सक्षम होने की आवश्यकता होती है।

नयी जानकारी बरकरार रखना:

किसी स्मृति को याद करने से कभी-कभी नयी जानकारी से निपटने के उद्देश्य से उसमें परिवर्तन भी हो सकता है। मान लीजिए कि आपके दैनिक आवागमन में हर दिन एक ही मार्ग पर गाड़ी चलाना शामिल है।

लेकिन मान लीजिए कि एक सोमवार को आपकी सामान्य सड़कों में से एक बंद है, और अगले तीन हफ्तों के लिए एक नया मार्ग है। इस नयी जानकारी को शामिल करके यात्रा के लिए आपकी याददाश्त लचीली होनी चाहिए।

मस्तिष्क द्वारा ऐसा करने का एक तरीका कुछ याददाश्त संबंधी ‘कनेक्शन’ को कमजोर करना है, जबकि नए मार्ग को याद रखने के लिए नए अतिरिक्त संपर्क को मजबूत करना है।

स्पष्ट रूप से हमारी याददाश्त को अद्यतन करने में असमर्थता के नकारात्मक परिणाम होंगे। ‘पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर’(पीटीएसडी) पर विचार करें, जहां एक दुखद स्मृति को अद्यतन करने या भूलने में असमर्थता का मतलब है कि एक व्यक्ति को उसके वातावरण में मौजूद अनुस्मारक द्वारा लगातार ‘ट्रिगर’ किया जाता है।

विकासवादी दृष्टिकोण से, नयी जानकारी के लिए पुरानी यादों को भूलना निस्संदेह फायदेमंद है। हमारे शिकार करने वाले पूर्वजों ने बार-बार एक सुरक्षित जलाशय का दौरा किया होगा, लेकिन एक दिन उन्हें एक प्रतिद्वंद्वी बस्ती, या नवजात शावकों के साथ एक भालू का पता चला होगा। उन्हें अपने दिमाग में बैठी स्मृति को अद्यतन करने की जरूरत पड़ी क्योंकि यह स्थल अब सुरक्षित नहीं रह गया।। ऐसा न करने पर उनके अस्तित्व को खतरा हो सकता था।

स्मृतियों को पुनः सक्रिय करना

कभी-कभी भूलना स्मृति हानि के कारण नहीं, बल्कि यादों तक पहुंचने की हमारी क्षमता में परिवर्तन के कारण हो सकता है। चूहों पर अनुसंधान ने प्रदर्शित किया है कि उपरोक्त वर्णित ‘सिनैप्टिक कनेक्शन’ का समर्थन करके भूली स्मृतियों को पुनः सक्रिय कैसे किया जा सकता है।

चूहों को किसी तटस्थ चीज (जैसे घंटी बजना) को किसी अप्रिय चीज (जैसे पैर में हल्का झटका) के साथ जोड़ना सिखाया गया था। कई बार दोहराने के बाद चूहों ने एक ‘डर की स्मृति’ बनाई, जहां घंटी सुनने पर उनकी प्रतिक्रिया ऐसी हुई मानो उन्हें किसी झटके की उम्मीद हो।

शोधकर्ता ‘न्यूरोनल कनेक्शन’ को अलग करने में सक्षम थे जो मस्तिष्क के एमिग्डाला नामक हिस्से में घंटी और झटके के तालमेल से सक्रिय होते थे।

फिर उन्होंने सोचा कि क्या कृत्रिम रूप से इन न्यूरॉन को सक्रिय करने से चूहे ऐसे कार्य करेंगे जैसे कि उन्हें उम्मीद है कि उनके पैर को झटका लगेगा, भले ही कोई घंटी न हो और कोई झटका न हो।

उन्होंने ‘ऑप्टोजेनेटिक स्टिमुलेशन’ नामक तकनीक (जिसमें प्रकाश और आनुवंशिक इंजीनियरिंग का उपयोग शामिल है) का उपयोग करके ऐसा किया और दिखाया कि ऐसी याददाश्त को सक्रिय करना (और बाद में निष्क्रिय करना) वास्तव में संभव है।

यह मनुष्यों के लिए प्रासंगिक हो सकता है क्योंकि यह एक प्रकार की क्षणिक भूल के माध्यम से होता है, लेकिन हो सकता है कि यह स्मृति हानि के कारण नहीं हो।

जब आप किसी को सड़क पर देखते हैं और उसका नाम याद नहीं आता है, तो शायद आपको विश्वास हो कि आप पहला अक्षर जानते हैं, और आपको एक क्षण में नाम पता चल जाएगा। इसे ‘टिप ऑफ द टंग अवधारणा’ के रूप में जाना जाता है।

जब 1960 के दशक में मूल रूप से अमेरिकी मनोवैज्ञानिक रोजर ब्राउन और डेविड मैकनील द्वारा इसका अध्ययन किया गया था, तो उन्होंने बताया कि लोगों की लुप्त शब्द के पहलुओं की पहचान करने की क्षमता संयोग से बेहतर थी।

इससे पता चला कि जानकारी को पूरी तरह भुलाया नहीं गया था।

एक सिद्धांत यह है कि यह अवधारणा स्मृति में शब्दों और उनके अर्थ के बीच कमजोर कनेक्शन के कारण होती है जो इच्छित सूचना का स्मरण करने में कठिनाई को दर्शाता है।

कुल मिलाकर हम कई कारणों से जानकारी भूल सकते हैं। क्योंकि हम ध्यान नहीं दे रहे थे या क्योंकि जानकारी समय के साथ खत्म हो जाती है। हम यादों को ताजा करने के चक्कर में भूल सकते हैं।

कभी-कभी भूली हुई जानकारी स्थायी रूप से नष्ट नहीं होती, बल्कि अप्राप्य होती है। भूलने के ये सभी रूप हमारे मस्तिष्क को कुशलतापूर्वक कार्य करने में मदद करते हैं।

हालांकि, यह निश्चित रूप से लोगों के अधिक भुलक्कड़ होने (उदाहरण के लिए अल्जाइमर रोग के कारण) की वजह से होने वाले नकारात्मक परिणामों को कम करने के लिए नहीं है। लेकिन भूलने के अपने विकासवादी फायदे हैं।

(द कन्वरसेशन) संतोष माधव

माधव

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)