(उज्मी अतहर और गौरव सैनी)
बाकू/नयी दिल्ली, 11 नवंबर (भाषा) इस वर्ष के संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन के मेजबान अजरबैजान ने सोमवार को सभी देशों से लंबित मुद्दों को तत्काल हल करने का आह्वान किया, ताकि एक नए जलवायु वित्त पोषणा लक्ष्य पर सहमति बन सके।
संयुक्त राष्ट्र जलवायु प्रमुख ने कहा कि यह सहमति पूरी तरह से प्रत्येक देश के हित में है।
अजरबैजान की राजधानी बाकू में आयोजित हो रहे सीओपी29 की वार्ता की प्राथमिकता नया जलवायु वित्त पैकेज है, जिसे नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य भी कहा जाता है। ऐतिहासिक प्रदूषकों को एक ऐसा पैकेज देना होगा जो महत्वाकांक्षी, पूर्वानुमानित, समयबद्ध, विश्वसनीय हो तथा ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों के लिए ऋण के रूप में नहीं बल्कि अनुदान के रूप में दिया जाए।
‘ग्लोबल साउथ’ शब्द का इस्तेमाल आम तौर पर आर्थिक रूप से कम विकसित देशों को संदर्भित करने के लिए किया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन कार्यकारी सचिव साइमन स्टील ने उद्घाटन सत्र के दौरान कहा, “अगर दुनिया के कम से कम दो तिहाई देश उत्सर्जन में तेजी से कटौती नहीं कर सकते, तो हर देश को इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। अगर देश आपूर्ति शृंखलाओं में लचीलापन नहीं ला पाते, तो पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था घुटनों पर आ जाएगी। कोई भी देश इससे अछूता नहीं है। इसलिए, आइए इस विचार को त्याग दें कि जलवायु वित्त दान है। एक महत्वाकांक्षी नया जलवायु वित्त लक्ष्य पूरी तरह से हर देश के हित में है।”
उन्होंने कहा कि सिर्फ नए जलवायु वित्तपोषण लक्ष्य पर सहमति जताना ही पर्याप्त नहीं है तथा देशों को वैश्विक वित्तीय प्रणाली में सुधार के लिए और अधिक मेहनत करनी होगी।
विकासशील देश जलवायु वित्तपोषण को अधिक सुलभ, किफायती और निष्पक्ष बनाने के लिए वैश्विक वित्तीय प्रणाली में सुधार की मांग कर रहे हैं। वर्तमान प्रणाली में अक्सर उन्हें जलवायु परियोजनाओं के लिए ऋण लेना पड़ता है या उच्च ब्याज दर का भुगतान करना पड़ता है, जिससे उनकी अर्थव्यवस्था पर दबाव पड़ता है।
सीओपी29 के अध्यक्ष मुख्तार बाबायेव ने कहा कि वर्तमान नीतियां विश्व को तीन डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि की ओर ले जा रही हैं, जो अरबों लोगों के लिए विनाशकारी होगा।
उन्होंने कहा कि सीओपी29 अध्यक्ष की सर्वोच्च प्राथमिकता एक निष्पक्ष और महत्वाकांक्षी नए सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (एनसीक्यूजी) या नए जलवायु वित्त लक्ष्य पर आम सहमति बनाना है, जो 2009 में सहमत 100 अरब अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष के पिछले लक्ष्य का स्थान लेगा।
बाबायेव ने इस बात पर जोर दिया कि समस्या के पैमाने और तात्कालिकता को संबोधित करने के लिए एनसीक्यूजी प्रभावी और पर्याप्त होना चाहिए।
बातचीत में कुछ प्रगति हुई है, लेकिन अभी बहुत काम बाकी है, करार को अंतिम रूप देने में सिर्फ 12 दिन बचे हैं। उन्होंने कहा कि अब देशों को तत्काल मुद्दों को अंतिम रूप देने, योगदानकर्ताओं और मात्रा पर अपने मतभेदों को सुलझाने और नया लक्ष्य निर्धारित करने की आवश्यकता है।
विकासशील देशों का तर्क है कि 2009 में सहमत हुए 100 अरब अमेरिकी डॉलर के जलवायु वित्त लक्ष्य के विपरीत, एनसीक्यूजी को उनकी “आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं” का समाधान करना चाहिए।
अनुमान बताते हैं कि विकासशील और गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए आने वाले वर्षों में हजारों अरब डॉलर की आवश्यकता होगी। ‘ग्लोबल साउथ’ के वार्ताकारों में, समान विचारधारा वाले विकासशील देशों (एलएमडीसी) समूह ने सुझाव दिया है कि प्रति वर्ष एक हजार अरब अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता है, अरब समूह ने 1.1 हजार अरब अमेरिकी डॉलर, अफ्रीकी समूह ने 1.3 हजार अरब अमेरिकी डॉलर, भारत ने एक हजार अरब अमेरिकी डॉलर तथा पाकिस्तान ने दो हजार अरब अमेरिकी डॉलर की मांग की है।
भाषा प्रशांत माधव धीरज
धीरज
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