जलवायु संबंधी आपात स्थितियां हमारी सामूहिक सुरक्षा के लिए खतरा हैं, सरकारें आंखें मूंद रही हैं |

जलवायु संबंधी आपात स्थितियां हमारी सामूहिक सुरक्षा के लिए खतरा हैं, सरकारें आंखें मूंद रही हैं

जलवायु संबंधी आपात स्थितियां हमारी सामूहिक सुरक्षा के लिए खतरा हैं, सरकारें आंखें मूंद रही हैं

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Modified Date: October 12, 2024 / 12:07 PM IST
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Published Date: October 12, 2024 12:07 pm IST

(जेम्स डाइक और लौरी लेबॉर्न, एक्सेटर विश्वविद्यालय)

एक्सेटर (इंग्लैंड), 12 अक्टूबर (द कन्वरसेशन) शायद आपकी नजरों से यह छूट गया हो, लेकिन कुछ महीने पहले एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी जिसमें पड़ताल की गई थी कि ब्रिटेन सरकार ने बड़ी आपात स्थितियों से निपटने के लिए किस तरह से तैयारी की है। इसमें जो पाया गया उसका पूरे देश पर गहरा असर पड़ा है।

यह रिपोर्ट कोविड-19 महामारी पर ब्रिटेन की सार्वजनिक पड़ताल के तहत लिखी गई थी और इसमें बताया गया था कि किस प्रकार यह महामारी एक “गैर-दुर्भावनापूर्ण खतरे” का उदाहरण है। ये हमारी सामूहिक सुरक्षा के लिए बड़े खतरे हैं जो आतंकवाद या युद्ध जैसे शत्रुतापूर्ण इरादे से नहीं, बल्कि मानवीय भूल, संरचनात्मक विफलता या प्राकृतिक आपदाओं के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं। इस मामले में यह एक नया वायरस था जो जानवरों से मनुष्यों में आया और फिर तेजी से फैल गया।

महामारी ने हर चीज को प्रभावित किया। इसका असर इतना गंभीर था कि इसे सरकार ने “पूरी प्रणाली में नागरिक आपातकाल” का नाम दिया। यह तेजी से फैलता संकट था, जिसने स्वास्थ्य प्रणाली से लेकर आर्थिक स्थिरता और जनता के भरोसे तक, ब्रिटेन की सुरक्षा के कई आयामों को प्रभावित किया। यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन का सबसे बड़ा सुरक्षा संकट था। फिर भी इसका सशस्त्र संघर्ष से कोई लेना-देना नहीं था।

जांच में पाया गया कि विभिन्न सरकारों ने महामारी के खतरों को बहुत कम करके आंका। उन्हें रूसी आक्रमण या आतंकवाद जैसे शत्रुतापूर्ण कार्यों से होने वाले सुरक्षा खतरों के समान प्राथमिकता नहीं दी गई। इसके बाद हुई त्रासदी ने साबित कर दिया कि यह कितनी बड़ी गलती थी। जांच में कहा गया कि जब पूरे तंत्र में नागरिक आपात स्थितियों की योजना बनाने और उनका जवाब देने की बात आई, तो ब्रिटेन की सरकार ने “अपने नागरिकों को निराश किया”, और फिर निष्कर्ष निकाला कि “मौलिक सुधार” की आवश्यकता थी।

हमने एक नई रिपोर्ट पर काम किया है, जिसमें सुरक्षा के लिए एक और अधिक बड़े “गैर-दुर्भावनापूर्ण खतरे”- जलवायु परिवर्तन- के साथ चिंताजनक समानताएं पाई गई हैं।

जलवायु जोखिम का बढ़ना

दो हफ्ते पहले तूफान हेलेन फ्लोरिडा में आया और उत्तर की ओर बढ़ गया। दो दिन बाद जब यह टेनेसी में समाप्त हुआ, तब तक 200 से ज्यादा लोग मारे जा चुके थे और अरबों डॉलर का नुकसान हुआ था।

अब फ्लोरिडा तूफान मिल्टन की तबाही झेल रहा है, जो अधिक विनाशकारी साबित हो सकता है, क्योंकि यह हेलेन के बाद आया है। हेलेन और मिल्टन जैसे तूफानों की आवृत्ति की आशंका अब जलवायु परिवर्तन के कारण दोगुनी हो गयी है।

तूफानों से लेकर जानलेवा गर्म लहरों, भयंकर सूखे से लेकर फसलों के खराब होने तक- जलवायु परिवर्तन के परिणाम संभावित रूप से विनाशकारी हैं।

फिर भी कई सरकारें अपनी सुरक्षा योजनाओं में चरम जलवायु परिदृश्यों पर नियमित रूप से विचार नहीं करती हैं, तथा इसके बजाय यह मानकर चलती रहती हैं कि जलवायु जोखिम दीर्घावधि में धीरे-धीरे विकसित होंगे।

तबाही की ओर बढ़ते कदम

ये जलवायु जोखिम आगे चलकर “नागरिक आपातस्थितियों” की संभावना उत्पन्न करते हैं। इसका एक उदाहरण ‘टिपिंग प्वॉइंट’ है। टिपिंग प्वॉइंट एक महत्वपूर्ण सीमा है, जिसे पार करने पर जलवायु प्रणाली में बड़े, त्वरित और अक्सर अपरिवर्तनीय बदलाव होते हैं। उदाहरण के लिए, पृथ्वी की प्रमुख महासागरीय धारा प्रणालियों में से एक अटलांटिक मेरिडियनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन (एमोक) है, जो उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से उत्तरी गोलार्ध में भारी मात्रा में गर्मी पहुंचाता है। फिर भी जलवायु परिवर्तन के कारण एमोक कमजोर हो रहा है, एक ऐसी प्रक्रिया जो इसे इस सदी में किसी समय एक महत्वपूर्ण बिंदु से आगे बढ़कर ध्वस्त कर सकती है, हालांकि जलवायु वैज्ञानिकों के बीच अब भी सटीक तिथियों और संभावनाओं को लेकर काफी बहस चल रही है।

अपर्याप्त आकलन

फिर भी ये जोखिम ब्रिटेन सरकार के सुरक्षा खतरों के राष्ट्रीय रजिस्टर में नहीं है। वास्तव में, जलवायु परिवर्तन का कोई समर्पित सुरक्षा सूचकांक भी नहीं है। सरकार का मौजूदा जलवायु परिवर्तन जोखिम मूल्यांकन समग्र रूप से व्यापक सुरक्षा खतरों का आकलन करने के लिए नहीं बनाया गया है और यह उच्च-स्तरीय सुरक्षा से संबंधित निर्णयकर्ताओं के लिए नहीं है।

शुक्र है कि नयी ब्रिटिश सरकार अपनी सुरक्षा नीतियों की समीक्षा कर रही है। जलवायु परिवर्तन को उसकी योजनाओं के केंद्र में होना चाहिए।

हमारे सामने एक विकल्प है। हम तब तक इंतजार कर सकते हैं जब तक कि जलवायु के प्रभाव नियंत्रण से बाहर न हो जाएं, और घबराई हुई सरकारें सीमा पर और अधिक दीवारें बनाने और सैन्यीकरण जैसे झूठे समाधानों का सहारा न लें। चिंता की बात यह है कि इसकी संभावना बढ़ती जा रही है, क्योंकि सरकारें लगातार खतरनाक भविष्य की ओर अंधाधुंध उड़ान भर रही हैं। वैकल्पिक रूप से, सरकार की संस्थाएं, जिनका उद्देश्य हमें बड़ी आपात स्थितियों से बचाना है, अंततः सक्रिय हो सकती हैं और हमें आने वाले तूफान से दूर ले जा सकती हैं।

(द कन्वरसेशन)

प्रशांत सुरेश

सुरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)