बेहतर डिजिटल साक्षरता जलवायु और आपदा से जुड़े साजिश सिद्धांतों में कमी लाने में मदद कर सकती है |

बेहतर डिजिटल साक्षरता जलवायु और आपदा से जुड़े साजिश सिद्धांतों में कमी लाने में मदद कर सकती है

बेहतर डिजिटल साक्षरता जलवायु और आपदा से जुड़े साजिश सिद्धांतों में कमी लाने में मदद कर सकती है

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Modified Date: January 24, 2025 / 05:29 PM IST
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Published Date: January 24, 2025 5:29 pm IST

(सिबो चेन, टोरंटो मेट्रोपोलिटन विश्वविद्यालय और एस हैरिस अल, यॉर्क विश्वविद्यालय, कनाडा)

टोरंटो, 24 जनवरी (कन्वरसेशन) हाल के सालों में बढ़ती जलवायु आपदाओं और उनके परिणामों के बीच साजिश के सिद्धांतों का प्रसार एक खतरनाक प्रवृत्ति बन गया है।

अमेरिका में 2024 में अटलांटिक चक्रवाती तूफान के मौसम में, दो चक्रवाती तूफान ‘हेलेन’ और ‘मिल्टन’ के बारे में गलत सूचना और दुष्प्रचार का प्रसार सोशल मीडिया पर किया गया, जिसमें यह झूठा दावा किया गया कि वे ‘जियो-इंजीनियर्ड’ थे और जानबूझकर मुख्य रूप से रिपब्लिकन क्षेत्रों को लक्षित किया गया था।

‘जियो इंजीनियर्ड’ का आशय धरती के जल, थल और वायुमंडल में छेड़छाड़ से है।

इस तरह के स्पष्ट झूठ ने ऑनलाइन विमार्श में ना केवल भ्रम और विषाक्तता को बढ़ावा दिया, बल्कि राहत और बचाव के के पहल में भी बाधा उत्पन्न की।

इसी तरह लॉस एंजिलिस के जलते जंगल को लेकर अमेरिकियों में एक बार फिर अफवाहों, अर्धसत्य और साजिश के सिद्धांतों की बाढ़ देखी जा रही है।

कनाडा की स्थिति भी उतनी ही चिंताजनक है। ऐसे साजिश सिद्धांत हैं जिनमें ‘ग्रीन आतंकवादियों’ पर जंगल की आग को तीव्र करने का आरोप लगाया गया है।

वर्ष 2024 में जैस्पर जंगल में लगी आग के दौरान, ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर कुछ उपयोगकर्ताओं ने दावा किया कि यह आपदा अल्बर्टावासियों को नियंत्रित करने के लिए प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की साजिश का हिस्सा थी।

इस प्रकार के षड्यंत्र सिद्धांत न केवल व्यापक हैं बल्कि जलवायु परिवर्तन से इनकार करने की मुख्यधारा के रूप में भी विकसित हुए हैं।

जलवायु परिवर्तन से इनकार

मनोवैज्ञानिक रूप से, पहचान-सुरक्षात्मक संज्ञान और सिस्टम औचित्य जैसे सिद्धांतों से पता चलता है कि लोग विरोधाभासी सबूतों को खारिज करते हुए, ऐसी जानकारी स्वीकार करते हैं जो उनकी पूर्व-मौजूदा मान्यताओं, सांस्कृतिक मानदंडों और पहचान के अनुरूप होती है।

राजनीतिक रूप से, जलवायु शमन को दक्षिणपंथी लोकलुभावन बयान द्वारा ‘लोगों’ की इच्छाओं को कमजोर करने के लिए ‘कुलीन वर्ग’ (दूसरे शब्दों में जलवायु की वकालत करने वाले और विशेषज्ञ) द्वारा थोपे गए एक राजनीतिक एजेंडे के रूप में बदनाम किया गया है।

इस प्रकार की कहानी जलवायु परिवर्तन को एक विभाजनकारी मुद्दा बनाती है जो व्यापक वैचारिक मतभेद के दायरे में आता है।

व्यापक साजिश सिद्धांत सूचना के विश्वसनीय और अविश्वसनीय स्रोतों के बीच अंतर करना अधिक कठिन बना सकते हैं। वे वैज्ञानिकों और वैज्ञानिक साक्ष्यों पर जनता का भरोसा कम कर सकते हैं, जलवायु विज्ञान की स्वीकृति और जलवायु शमन रणनीतियों को अपनाने में बाधा डाल सकते हैं। इसके अलावा, साजिश संबंधी मान्यताएं संस्थानों और सरकारों में अविश्वास को बढ़ाती हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन को प्रभावी ढंग से कम करने के लिए आवश्यक सामूहिक कार्रवाई में बाधा आती है।

अलबर्टा संशयवाद

राजनीतिशास्त्र के विशेषज्ञ लुईस मैसे द्वारा किए गए शोध से पता चलता है कि अल्बर्टा में क्षेत्रवाद ने संदेह उत्पन्न करने में कैसे योगदान दिया है, जिसने व्यापक जलवायु और स्थिरता नीतियों की उपयोगिता के बारे में सार्वजनिक चर्चा को दबाने का काम किया।

विद्वानों के बीच एक और आम सहमति यह है कि कनाडा में, जीवाश्म ईंधन क्षेत्र से जुड़ी कॉरपोरेट ताकतों की पहुंच ने व्यवसाय को हमेशा की तरह जारी रखने और जलवायु कार्रवाई की अनिवार्यता को नकारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

कॉरपोरेट एकाधिकार (जब छोटी संख्या में कंपनियां बाजार के एक बड़े हिस्से को नियंत्रित करती हैं) कनाडा में अमेरिका की तुलना में अधिक है। इसका मतलब है कि कॉरपोरेट ताकतें जलवायु परिवर्तन पर सरकारी कार्रवाई को अवरुद्ध करने और देरी करने में बहुत सक्रिय भूमिका निभाती हैं।

जलवायु परिवर्तन संचार

साजिश के सिद्धांतों का प्रचलन जलवायु परिवर्तन से जुड़े संचार की राह में चुनौतियां पैदा करता है। जलवायु विज्ञान को संप्रेषित करने के ऐसे प्रभावी तरीके विकसित करना जो सरल और समझने योग्य हों, जलवायु परिवर्तन से इनकार को दूर करने का एक महत्वपूर्ण तरीका है।

हालांकि, ऐसा संचार अकेले दो प्रमुख कारकों के कारण पर्याप्त नहीं हो सकता है।

सबसे पहले, जलवायु वैज्ञानिकों को निशाना बनाकर ऑनलाइन उत्पीड़न, ट्रोलिंग और यहां तक ​​कि मौत की धमकियां सार्वजनिक चर्चाओं में भाग लेने की उनकी इच्छा को काफी हद तक कम कर देती हैं। दूसरा, ‘एक्स’ और ‘मेटा’ जैसे ऑनलाइन मंचों ने अपने तथ्य-जांच तंत्र को कमजोर कर दिया है। इससे उनके गलत सूचना और अतिवाद के ‘इन्क्यूबेटर’ के रूप में तब्दील होने का खतरा बढ़ गया है।

हाल ही में, मेटा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) मार्क जुकरबर्ग ने घोषणा की कि कंपनी तीसरे पक्ष के तथ्य-जांचकर्ताओं के साथ अपना सहयोग समाप्त कर रही है और सामुदायिक नोट का उपयोग करना शुरू करेगी।

हालांकि, यह उपकरण, जो पहले से ही ‘एक्स’ पर मौजूद है, वायरल गलत सूचना को फैलने से रोकने के लिए पर्याप्त रूप से प्रभावी नहीं हो सकता है।

जन सहयोग

थिंक टैंक ‘द डैस’ द्वारा हाल ही में किए गए एक सार्वजनिक सर्वेक्षण से पता चलता है कि ऑनलाइन नुकसान से निपटने के लिए सरकारी हस्तक्षेप के प्रति मजबूत जन समर्थन हासिल है। इस तरह के नुकसान में गलत सूचना और दुष्प्रचार के कारण होने वाले नुकसान भी शामिल हैं।

संघीय सरकार का प्रस्तावित ऑनलाइन हानि अधिनियम, जिसका उद्देश्य हानिकारक ऑनलाइन सामग्री को नियंत्रित करना है, अब भी संसदीय प्रक्रिया के चरण में है।

हालांकि, गलत जानकारी से होने वाले नुकसान के लिए सोशल मीडिया कंपनियों को पर्याप्त रूप से जिम्मेदार ठहराने में विफल रहने को लेकर इस विधेयक की आलोचना की गई है।

ऐसे में देखना यह है कि यह विधेयक कानून के रूप में पारित होता है या नहीं। सरकारें ऑनलाइन सामग्री को नियंत्रित करने में जब भी सीधे शामिल होती हैं तो हमेशा विधायी चुनौतियां और कठिनाइयां आती हैं।

(कन्वरसेशन) संतोष माधव

माधव

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(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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