(सुजैन ओ कोनेल, वेसलेयन यूनिवर्सिटी, एल्टन सी. बेयर्स, यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो बोल्डर)
बोल्डर (अमेरिका), 25 मार्च (द कन्वरसेशन) वैश्विक तापमान के बढ़ने से दुनियाभर की पर्वत श्रृंखलाओं में हिमनद (ग्लेशियर) पिघल रहे हैं। यूरोप के आल्पस और पाइरेनीज वर्ष 2000 से 2023 तक अपने हिमनदों का 40 फीसदी गंवा चुके हैं।
आल्प्स व पाइरेनीज सहित अन्य हिमक्षेत्र सदियों से निचले इलाकों में रहने वाले लोगों को मीठे पानी की आपूर्ति करते रहे हैं और आज लगभग दो अरब लोग इन हिमनदों पर निर्भर हैं।
लेकिन जैसे-जैसे हिमनद तेजी से पिघल रहे हैं, ठीक वैसे-वैसे संभावित रूप से जोखिम भी बढ़ता जा रहा है।
पिघली बर्फ का पानी अक्सर उन जगहों पर जमा होने लगता है, जहां कभी ग्लेशियर हुआ करते थे और इससे बड़ी झीलें बन जाती हैं। इनमें से कई बड़ी झीलें सदियों से हिमनद वाली जगहों पर बनी हैं, जहां बर्फ के बड़े-बड़े टुकड़े रहे थे।
इन विशालकाय बर्फ के पहाड़ों के पीछे बहुत ज्यादा पानी या झीलें होती हैं और जब भी हिमस्खलन से ये जगह खिसकती है तो भारी मात्रा में पानी और मलबा पहाड़ी घाटियों में बह जाता और रास्ते में आने वाली हर चीज को नष्ट कर देता है।
इन खतरों और मीठे पानी की आपूर्ति को होने वाले नुकसान के मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र (संरा) ने 2025 को ‘इंटरनेशनल ईयर ऑफ ग्लेशियर प्रिजर्वेशन’ और 21 मार्च को पहला ‘विश्व ग्लेशियर दिवस’ घोषित किया।
एक पृथ्वी वैज्ञानिक और पर्वत भूगोलवेत्ता के रूप में, हम इस बात का अध्ययन करते हैं कि बर्फ के पिघलने से आस-पास के पहाड़ी ढलानों और हिमनद झीलों की स्थिरता पर क्या प्रभाव पड़ सकता है। हम बढ़ती चिंता के कई कारण देखते हैं।
बर्फ के विशाल बांधों का टूटना और हिमस्खलन
अधिकांश हिमनद झीलें 1860 के दशक में तापमान में बढ़ोतरी के ‘ट्रेंड’ से एक सदी पूर्व से ही बनना शुरू हुई थीं लेकिन 1960 के दशक से इन झीलों की संख्या में बहुत तेजी से वृद्धि हुई।
हिमालय, एंडीज, आल्प्स, रॉकी पर्वत, आइसलैंड और अलास्का में रहने वाले कई लोगों ने हिमनद झीलों में पानी बढ़ जाने के कारण बाढ़ का अनुभव किया है। अक्टूबर 2023 में हिमालय में हिमनद झील में पानी बढ़ने से आई बाढ़ ने 30 से ज्यादा पुलों को क्षतिग्रस्त कर दिया था और 200 फुट ऊंचे जलविद्युत संयंत्र को नष्ट कर दिया था।
इन झीलों के आस-पास रहने वाले लोगों को बहुत देर से चेतावनी मिली और जब तक आपदा खत्म हुई, तब तक 50 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी थी।
हाल के वर्षों में अलास्का के जूनो में मेन्डेनहॉल ग्लेशियर की एक हिस्से पर बर्फ से बनी झील के कारण कई बार अचानक बाढ़ आई है। ये बाढ़, जिनमें 2024 की बाढ़ भी शामिल है, पिघलते ग्लेशियर के कारण आई थीं।
हिमस्खलन, चट्टानों का गिरना और ढलानों में दरारें भी हिमनद झील के विस्फोट से बाढ़ का कारण बन सकती हैं। ये घटनाएं जमी हुई सतह के रूप में अधिक आम होती जा रही हैं, जिसे पर्माफ्रॉस्ट पिघलना कहा जाता है, जिससे पर्वतीय परिदृश्यों से क्रायोस्फेरिक गोंद गायब हो रहा है, जो पहले उन्हें एक साथ बांधे रखता था।
जब ये चट्टानें झीलों में गिरती हैं तो बहुत बड़ी लहरें पैदा कर सकती हैं। बड़ी लहरों से पानी मुहाने से बाहर निकल जाता है, जिससे बाढ़ के रूप में पानी, गाद और मलबा आ सकता है।
यह खतरनाक मिश्रण 20 से 60 मील प्रति घंटे की गति से नीचे की ओर बहता है, जिससे घर और उसके रास्ते में आने वाली हर चीज नष्ट हो सकती है।
जहां जोखिमों को प्रबंधित नहीं किया जा सकता है, वहां लोगों को निर्माण कार्य करने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। शिक्षा ने बाढ़ के जोखिम के बारे में जागरूकता पैदा करने में मदद की है, लेकिन आपदाएं फिर भी जारी हैं।
हिमनद झीलों से बाढ़ और सतह पर जमी बर्फ का पिघलना
हिमनद झीलों में पानी बढ़ने से आने वाली बाढ़ की नाटकीय प्रकृति अक्सर सुर्खियों में रहती है लेकिन ये एकमात्र जोखिम नहीं हैं।
जैसे-जैसे वैज्ञानिक इस बारे में अपनी समझ बढ़ा रहे हैं कि कैसे दुनिया के बर्फीले क्षेत्र वैश्विक तापमानवृद्धि की चपेट में आ रहे हैं और वे कई अन्य घटनाओं की पहचान कर रहे हैं, जो समान रूप से इस विनाशकारी घटना को जन्म दे सकती हैं।
उदाहरण के लिए, ‘एंग्लेशियल कंड्यूट’ बाढ़, ग्लेशियरों के अंदर उत्पन्न होती है, आमतौर पर खड़ी ढलानों पर। पिघला हुआ पानी बर्फ की गुफाओं के अंदर इकट्ठा हो सकता है।
संभवतः सतह पर बने तालाब हुई तेजी से जल निकासी के कारण एक गुफा से दूसरी गुफा में पानी का अचानक बढ़ना एक श्रृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया को शुरू करता है, जो (हिमनद) झील से निकलकर बाढ़ का रूप ले लेती है।
पहाड़ों पर जमी बर्फ पिघलने से भी बाढ़ आ सकती है। चट्टान, बर्फ और मिट्टी का यह स्थायी रूप से जमी हुई परत हज़ारों सालों से 19,685 फ़ीट (6,000 मीटर) से ज़्यादा की ऊँचाई पर मौजूद है।
बर्फ जमने से पहाड़ों को एक साथ रखने में मदद मिलती है, लेकिन जैसे-जैसे ‘पर्माफ्रॉस्ट’ पिघलता है, ठोस चट्टान भी कम स्थिर हो जाती है और टूटने की संभावना अधिक होती है। जबकि बर्फ और मलबे के अलग होने और विनाशकारी और खतरनाक मलबे के प्रवाह में बदलने की संभावना अधिक होती है।
वर्ष 2017 में नेपाल की 20,935-फुट (6,374-मीटर) सलदीम चोटी की ठोस चट्टान का लगभग एक तिहाई हिस्सा ढह गया और नीचे लैंगमाले ग्लेशियर पर गिर गया। हवा के माध्यम से गिरने वाली चट्टानों के घर्षण से उत्पन्न गर्मी से बर्फ पिघल गई। इससे चट्टानों, मलबे और तलछट का एक घोल बन गया, जो नीचे लैंगमाले हिमनद झील में गिर गया, जिसके परिणामस्वरूप भारी बाढ़ आ गई।
क्या है खतरा
‘इंटरनेशनल ईयर ऑफ ग्लेशियर प्रिजर्वेशन’ और ‘विश्व ग्लेशियर दिवस’ जोखिमों पर ध्यान केंद्रित करता है और बताता है कि कौन खतरे में है।
वर्ष 2024 में प्रकाशित एक अध्ययन ने दुनिया भर में 110,000 से अधिक हिमनद झीलों की गणना की और निर्धारित किया कि एक करोड लोगों के जीवन और घरों को इन झीलों से बाढ़ का खतरा है।
संयुक्त राष्ट्र इन क्षेत्रों में और अधिक शोध को प्रोत्साहित कर रहा है।
संरा ने वर्ष 2025 से 2034 को ‘क्रायोस्फेरिक विज्ञान में कार्य का दशक’ भी घोषित किया है।
कई महाद्वीपों के वैज्ञानिक जोखिमों को समझने और लोगों को इस बारे में जागरूक करने के साथ-साथ खतरे को कम करने में मदद करने के तरीके खोजने के लिए काम करेंगे।
द कन्वरसेशन जितेंद्र पवनेश
पवनेश
(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)