(जॉन स्टीवर्ट,बौर्नमाउथ विश्वविद्यालय;जेरेमी सियरल, कॉर्नेल विश्वविद्यालय)
न्यूयॉर्क, 12 अक्टूबर (द कन्वरसेशन) ऐसा प्रतीत होता है कि मनुष्य ने भेड़ियों और भालुओं के समान ही पिछले हिमयुग से निपटने के लिए खुद को ढाल लिया था।यह खुलासा हमारे हालिया अध्ययन में हुआ है। इससे इस हिमयुग के दौरान हमारे पूर्वज कैसे और कहां रहते थे, इस बारे में लंबे समय से चले आ रहे सिद्धांतों को चुनौती मिली है।
पिछले अध्ययनों ने अधिकांश पुरातत्वविदों के इस दृष्टिकोण का समर्थन किया है कि आधुनिक मानव पिछले हिमयुग के चरम पर पहुंचने के बाद दक्षिणी यूरोप में पलायन कर गए थे, तथा बाद में वैश्विक तापमान में वृद्धि के दौरान उनका विस्तार हुआ।लेकिन हमारा अध्ययन आनुवंशिक डेटा का उपयोग करके यह दिखाने वाला पहला अध्ययन है कि कम से कम कुछ मनुष्य मध्य यूरोप में ही रहे, जबकि अन्य कई जानवर ऐसा नहीं करते थे और हमारी प्रजाति अफ्रीका की अपेक्षाकृत गर्म जलवायु में विकसित हुई थी।
वैज्ञानिकों को 19वीं शताब्दी से ही ज्ञात है कि दुनिया भर में जानवरों और पौधों के वितरण में जलवायु के साथ उतार-चढ़ाव आ सकता है।लेकिन जलवायु संकट ने इन उतार-चढ़ावों को समझना पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है।
विभिन्न स्थानों पर रहने वाली एक ही प्रजाति की जनसंख्या में प्रायः एक-दूसरे से भिन्न आनुवंशिकी होती है। वैज्ञानिकों ने हाल में अध्ययन किया है कि जलवायु परिवर्तन ने प्रजातियों की इन आनुवंशिक रूप से भिन्न आबादी के वितरण को किस प्रकार प्रभावित किया है।
इस क्षेत्र में अधिकांश अध्ययन जानवरों या पौधों की अलग-अलग प्रजातियों पर केंद्रित हैं। उन्होंने प्रदर्शित किया कि मनुष्यों सहित कई प्रजातियों ने लगभग 20,000 साल पहले अंतिम हिमयुग के चरम पर पहुंचने के बाद से अपनी भौगोलिक सीमाओं का विस्तार किया है।
उस समय, यूरोप डेनमार्क और दक्षिण वेल्स तक बर्फ से ढक गया था। यूरोप ठंडा था, लेकिन ज़्यादातर बर्फ रहित था, शायद आज के अलास्का या साइबेरिया की तरह।
बौर्नमाउथ विश्वविद्यालय में ऑक्साला गार्सिया-रोड्रिग्ज के नेतृत्व में हमारी टीम के नए अध्ययन ने एक अलग दृष्टिकोण अपनाया और यूरोप के 23 सामान्य स्तनधारियों के आनुवंशिक इतिहास की समीक्षा की।
मनुष्यों के अतिरिक्त, इनमें बैंक वोल और लाल गिलहरी जैसे कृंतक, छछूंदर और साही जैसे कीटभक्षी, लाल हिरण और जंगली सूअर जैसे खुर वाले जानवर, तथा भूरे भालू और नेवले जैसे मांसाहारी जानवर शामिल थे।
हमारे अध्ययन में एक महत्वपूर्ण मापदंड यह था कि यूरोप में आज सबसे अधिक विविधता कहां है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उच्च आनुवंशिक विविधता वाले क्षेत्र संभवतः प्रजातियों द्वारा सबसे लंबे समय तक रहने वाले क्षेत्र हैं।
इन क्षेत्रों को ‘रिफ्यूजिया’ के नाम से जाना जाता है। ये वे स्थान हैं जहां प्रजातियां जीवित रहने के लिए उस समय शरण लेती थीं जब अन्य स्थानों पर पर्यावरणीय परिस्थितियां प्रतिकूल होती थीं। हमने जिन स्तनधारियों पर अध्ययन किया, उनके लिए ये ‘रिफ्यूजिया’(शरणस्थल) कम से कम अंतिम हिमयुग के समय से ही आबाद रहे होंगे।ये ‘रिफ्यूजिया’ संभवतः सबसे गर्म क्षेत्र या स्थान थे जहां जानवरों के लिए भोजन ढूंढना सबसे आसान था।
हमने जो आनुवंशिक स्वरूप पाया, उनमें ऐसे मामले शामिल हैं जहां कुछ स्तनधारी (जैसे कि लाल लोमड़ी और छोटी हिरन) आइबेरिया और इटली जैसे दक्षिणी क्षेत्रों में हिमनदीय शरणस्थलों तक ही सीमित थे, और हिमयुग के बाद वैश्विक तापमान बढ़ने के साथ ही उनका भौगोलिक वितरण विस्तारित हुआ। अन्य स्तनधारी (जैसे ऊदबिलाव और वनबिलाव) हिमनदीय शरणस्थलों से यूरोप के पूर्व की ओर बढ़े और फिर पश्चिम की ओर उनका विस्तार हुआ।
‘पिग्मी श्रू’ (बौने छछूंदर) और चूहे जैसी प्रजातियां उत्तरी यूरोप की गहरी घाटियों, या अन्यथा दुर्गम हिमनद परिदृश्यों में छोटे परिक्षेत्रों जैसे सुरक्षित क्षेत्रों तक ही सीमित रहीं। यह परिपाटी पहले भी अन्य वैज्ञानिकों ने दर्ज की है।
लेकिन हमें चौथी परिपाटी देखने को मिली।हमने अपने अध्ययन के दौरान पाया कि कुछ प्रजातियां (जैसे भूरे भालू और भेड़िये) अंतिम हिमयुग के दौरान पूरे यूरोप में व्यापक रूप से फैले हुए थे, जिनके पास या तो कोई शरणस्थल नहीं था या उत्तर और दक्षिण दोनों ओर शरणस्थल थे।
यही परिपाटी हमें ‘होमो सेपियंस’ (आधुनिक मानव) में भी देखने को मिली। इस समय तक ‘निएंडरथल’ (मानव की एक अन्य प्रजाति) लगभग 20,000 साल पहले ही विलुप्त हो चुके थे।
यह स्पष्ट नहीं है कि प्राचीन मानव और इस समूह के अन्य जानवर अधिक अनुकूल स्थानों की खोज करने के बजाय इस कठोर जलवायु में क्यों रहते थे।लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि वे हिमयुग की परिस्थितियों को सहन करने में सक्षम थे जबकि अन्य जानवर अपेक्षाकृत अनुकूल शरणस्थलों की ओर चले गए।
शायद सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस परिपाटी के अनुरूप प्रतीत होने वाली प्रजातियों में आधुनिक मानव भी शामिल हैं और जिनके अंतिम हिमयुग के चरम पर जनसंख्या में बहुत कमी या भौगोलिक विस्तार में कोई संकुचन नहीं आया था। यह विशेष रूप से हतप्रभ करने वाला है कि मनुष्य इस समूह में हैं,जिनके पूर्वजों का विकास अफ्रीका में हुआ था और यह असंभव प्रतीत होता है कि वे ठंडे जलवायु के प्रति लचीले थे।
यह स्पष्ट नहीं है कि क्या ये मानव पारिस्थितिक अनुकूलन पर निर्भर थे, उदाहरण के लिए, चूंकि वे सर्वाहारी थे इसलिए वे कई अलग-अलग चीजें खा सकते थे, या फिर वे प्रौद्योगिकी के कारण जीवित बचे रहे। उदाहरण के लिए, यह तथ्य स्पष्ट रूप से स्थापित हो चुका है कि मनुष्य के पास कपड़े थे, उसने आवास बनाना सीख लिया था और पिछले हिमयुग की ठंडी परिस्थितियों के दौरान आग जलाने में सक्षम थे।
यह नयी परिपाटी और इसमें मानव का शामिल होना, वैज्ञानिकों के बीच जलवायु परिवर्तन और जैवभूगोल के बारे में पुनर्विचार को प्रेरित कर सकता है, विशेष रूप से उन वैज्ञानिकों के लिए जो मानव की भौगोलिक बसावट में अंतर का अध्ययन कर रहे हैं।इसका अभिप्राय यह हो सकता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण कुछ क्षेत्र अपेक्षा से अधिक समय तक रहने योग्य रह सकते हैं।
(द कन्वरसेशन) धीरज नरेश
नरेश
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