भूकंपीय तरंगों की ध्वनि से हुआ खुलासा, पृथ्वी के अंतर्भाग में मौजूद है एक गोलाकार क्षेत्र |

भूकंपीय तरंगों की ध्वनि से हुआ खुलासा, पृथ्वी के अंतर्भाग में मौजूद है एक गोलाकार क्षेत्र

भूकंपीय तरंगों की ध्वनि से हुआ खुलासा, पृथ्वी के अंतर्भाग में मौजूद है एक गोलाकार क्षेत्र

:   Modified Date:  August 31, 2024 / 04:33 PM IST, Published Date : August 31, 2024/4:33 pm IST

(ह्र्वोजे टकल्सिक, ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी)

कैनबरा, 31 अगस्त (द कन्वरसेशन) हमारे कदमों से लगभग 2,890 किलोमीटर नीचे तरल धातु का एक विशाल गोला है, जिसे हमारे ग्रह यानी पृथ्वी का अंतर्भाग कहा जाता है। मेरे जैसे वैज्ञानिकों ने भूकंप के कारण उठने वाली भूकंपीय तरंगों का इस्तेमाल एक तरह के ‘अल्ट्रासाउंड’ के तौर पर किया और यह “देखा” कि पृथ्वी के अंतर्भाग का आकार और ढांचा कैसा होता है।

इन तरंगों के अध्ययन का एक नया तरीका इस्तेमाल करते हुए मेरे साथी शियाओलोंग मा और मैंने एक चौंकाने वाली खोज की कि भूमध्य रेखा के चारों ओर, पृथ्वी के अंतर्भाग का एक बड़ा गोलाकार क्षेत्र है। यह सैंकड़ों किलोमीटर चौड़ा है जहां भूकंपीय तरंगें अंतर्भाग के शेष हिस्से की तुलना में दो प्रतिशत धीमी गति से यात्रा करती हैं।

हमारा मानना ​​है कि इस क्षेत्र में ‘सिलिकॉन’ और ‘ऑक्सीजन’ जैसे अधिक हल्के तत्व हैं। यह क्षेत्र पृथ्वी के अंर्तभाग में तरल धातु की अनेक तरंगों के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है, जिनसे पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र बनता है। हमारे अध्ययन के निष्कर्ष ‘साइंस एडवांसेज’ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं।

भूकंप से उत्पन्न भूकंपीय तरंगों के अधिकांश अध्ययनों के दौरान बड़ी और प्रारंभिक तरंगों पर गौर किया जाता है, जो भूकंप के बाद दुनिया भर में यात्रा करती हैं।

हमें पता चला कि हम ‘कोडा’ के नाम से जाने जाने वाले इन तरंगों के बाद के हल्के हिस्से पर गौर करके कुछ नया जान सकते हैं। भूकंपीय तरंग के ‘कोडा’ हिस्से का जब अंत होता है, तो इससे एक ध्वनि निकलती है।

हमने विशेष रूप से यह देखा कि विभिन्न भूकंपीय डिटेक्टरों पर दर्ज हुए ‘कोडा’ में अपनी शुरुआत से कई घंटों बाद कितनी समानता थी।

गणितीय भाषा में तरंगों की समानता को सह-संबंध कहा जाता है। लिहाजा, हम भूकंपीय तरंगों के अंतिम भागों में मिलने वाली इन समानताओं को ‘कोडा-सहसंबंध तरंग क्षेत्र’ कहते हैं।

‘‘कोडा-सहसंबंध तरंग क्षेत्र’’ पर गौर करने पर हमने कई गूंजने वाली तरंगों से उत्पन्न होने वाले छोटे संकेतों का पता लगाया, जिन्हें हम किसी और तरह से नहीं देख पाएंगे। इन गूंजती तरंगों के रास्तों को समझकर और ‘‘कोडा-सहसंबंध तरंग क्षेत्र’’ से मिलने वाले संकेतों के साथ उनका मिलान करके, हमने पता लगाया कि उन्हें पृथ्वी से गुजरने में कितना समय लगा।

इसके बाद, हमने ध्रुवों के नजदीक भूकंपीय डिटेक्टर में जो देखा उसकी तुलना भूमध्य रेखा के निकट हासिल हुए परिणामों से की। कुल मिलाकर, ध्रुवों के करीब पाई गईं तरंगें भूमध्य रेखा के पास की तरंगों की तुलना में तेज गति से यात्रा कर रही थीं।

हमने कई कंप्यूटर मॉडल और दूसरे तरीके आजमाकर यह पता लगाने की कोशिश की कि पृथ्वी के अंतर्भाग (कोर) में किन वजहों से भूकंपीय तरंगों की गति में परिवर्तन होता है। अंत में, हमने पाया कि भूमध्य रेखा के चारों ओर बाहरी कोर में एक गोलाकार क्षेत्र ‘टोरस’ होता है, जहां तरंगें अधिक धीमी गति से चलती हैं।

भूकंप विज्ञानियों ने पहले इस क्षेत्र का पता नहीं लगाया था। हालांकि, ‘‘कोडा-सहसंबंध तरंग क्षेत्र’’ का उपयोग करने से हमें बाहरी कोर को अधिक विस्तारपूर्वक तथा अधिक समान रूप से ‘देखने’ में मदद मिली है।

पिछले अध्ययनों में निष्कर्ष निकाला गया था कि तरंगें बाहरी कोर की ‘छत’ के आसपास हर जगह अधिक धीमी गति से चलती थीं। हालांकि, हमने इस अध्ययन में दिखाया है कि निम्न-वेग क्षेत्र केवल भूमध्य रेखा के पास है।

कुल मिलाकर हमने अपने इस अध्ययन में जो जानने की कोशिश की थी, हम उसके काफी करीब पहुंचे हैं। अध्ययन का एक उद्देश्य यह पता लगाना था कि पृथ्वी के अंतर्भाग में यात्रा करते समय भूकंपीय तरंगों की गति में परिवर्तन क्यों होता है और इस अध्ययन से हमारे सवाल का काफी हद तक जवाब मिल गया है।

(द कन्वरसेशन) जोहेब अविनाश

अविनाश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)