थोड़ा विज्ञान, थोड़ा जादू: प्रकाश से उपचार का रोशन इतिहास |

थोड़ा विज्ञान, थोड़ा जादू: प्रकाश से उपचार का रोशन इतिहास

थोड़ा विज्ञान, थोड़ा जादू: प्रकाश से उपचार का रोशन इतिहास

:   Modified Date:  November 7, 2024 / 04:45 PM IST, Published Date : November 7, 2024/4:45 pm IST

(फिलिपा मार्टियर, द यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया)

सिडनी, सात नवंबर (द कन्वरसेशन) सूर्य सहस्राब्दियों से मनुष्यों के लिए प्रकाश का विश्वसनीय स्रोत रहा है और हम जानते हैं कि सूर्य हमारे अस्तित्व के लिए आवश्यक है।

शायद यही कारण है कि प्राचीन धर्मों जैसे कि मिस्र, यूनान, मध्य पूर्व, भारत, एशिया और मध्य और दक्षिण अमेरिका में सूर्य की पूजा होती थी। प्रारंभिक धर्म भी अक्सर उपचार से जुड़े होते थे। बीमार लोग मदद के लिए पादरी, ओझा या झाड़-फूंक करने वालों की ओर रुख करते थे।

पुराने समय में लोग सूर्य का उपयोग उपचार के लिए करते थे, लेकिन यह शायद वैसा न हो जैसा आप सोचते हैं। तब से, हमने कई तरीकों से उपचार के लिए प्रकाश का उपयोग किया है। कुछ को आप आज पहचान सकते हैं, अन्य जादू की तरह लगते हैं।

आज इस बात के बहुत ज़्यादा सबूत नहीं हैं कि प्राचीन लोग मानते थे कि सूरज की रोशनी ही बीमारी को ठीक कर सकती है। इसके बजाय, इस बात के ज़्यादा सबूत हैं कि वे ठीक होने के लिए सूरज की गर्मी का इस्तेमाल करते थे।

एबर्स पेपीरस ईसा पूर्व 1500 साल के आसपास का प्राचीन मिस्र का चिकित्सा ‘स्क्रॉल’ है। इसमें ‘‘नसों को लचीला बनाने’’ के लिए मरहम बनाने की विधि दी गई है। यह मरहम शराब, प्याज, कालिख, फल और पेड़ के अर्क लोबान और लोहबान से बनाया गया था। इसे लगाने के बाद, व्यक्ति को ‘‘सूर्य के प्रकाश में रखा जाता था।’’

उदाहरण के लिए, खांसी के इलाज के लिए अन्य नुस्खों में विभिन्न सामग्री को एक बर्तन में डालकर धूप में रखना शामिल था। यही तकनीक चिकित्सा लेखन में भी है जिसका श्रेय यूनानी चिकित्सक हिप्पोक्रेट्स को दिया जाता है जिनका काल लगभग 450-380 ईसा पूर्व माना जाता है।

लगभग 150 ई. में आधुनिक तुर्की में सक्रिय रहे चिकित्सक एरेटियस ने लिखा था कि सूर्य का प्रकाश सुस्ती सहित कई बीमारियों को ठीक कर सकता था। इसमें वह बीमारी भी है जिसे हम आज अवसाद के रूप में पहचानते हैं।

सुस्ती मिटाने का अर्थ है प्रकाश में लेटना, सूर्य की किरणों के संपर्क में आना; तथा अपेक्षाकृत गर्म स्थान में रहना।

इस्लामी विद्वान इब्न सिना (980-1037 ई.) ने धूप सेंकने के स्वास्थ्य प्रभावों का वर्णन किया (उस समय जब हम त्वचा कैंसर से इसके जुड़े होने के बारे में नहीं जानते थे)। ‘द कैनन ऑफ मेडिसिन’ पुस्तक एक में उन्होंने कहा कि सूर्य की गर्मी पेट फूलने और अस्थमा से लेकर हिस्टीरिया तक हर तरह की बीमारी में मदद करती है। उन्होंने यह भी कहा कि सूर्य का प्रकाश ‘‘मस्तिष्क को सक्रिय करता है’’ और ‘‘गर्भाशय को साफ करने’’ के लिए फायदेमंद है।

कभी-कभी विज्ञान और जादू में फर्क करना मुश्किल होता है। अब तक बताए गए इलाज के सभी तरीके सूर्य की रोशनी के बजाय उसकी गर्मी पर ज्यादा निर्भर करते हैं। लेकिन रोशनी से इलाज के बारे में क्या?

वैज्ञानिक सर आइजैक न्यूटन (1642-1727) जानते थे कि आप सूरज की रोशनी को रंगों के इंद्रधनुषी स्पेक्ट्रम में ‘‘विभाजित’’ कर सकते हैं।

इस और कई अन्य खोजों ने अगले 200 वर्षों में उपचार के बारे में विचारों को मौलिक रूप से बदल दिया। लेकिन जैसे-जैसे नए विचार सामने आते गए, कभी-कभी विज्ञान और जादू के बीच फर्क करना मुश्किल हो गया।

उदाहरण के लिए, जर्मन रहस्यवादी और दार्शनिक जैकब लॉरबर (1800-1864) का मानना ​​था कि सूरज की रोशनी लगभग हर चीज का सबसे अच्छा इलाज है। उनकी 1851 की किताब ‘द हीलिंग पॉवर ऑफ सनलाइट’ 1997 में भी छपी थी।

सार्वजनिक स्वास्थ्य सुधारक फ्लोरेंस नाइटिंगेल (1820-1910) भी सूर्य के प्रकाश की शक्ति में विश्वास करती थीं। अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘नोट्स ऑन नर्सिंग’ में उन्होंने अपने रोगियों के बारे में कहा:

ताजी हवा की जरूरत के बाद उन्हें प्रकाश की ज़रूरत होती है न केवल प्रकाश बल्कि सीधी धूप। नाइटिंगेल का यह भी मानना ​​था कि सूरज की रोशनी बैक्टीरिया और वायरस का प्राकृतिक दुश्मन है। ऐसा लगता है कि वह कम से कम आंशिक रूप से सही हैं। सूरज की रोशनी कुछ बैक्टीरिया और वायरस को मार सकती है, लेकिन सभी को नहीं।

इस अवधि में रंगों और प्रकाश पर आधारित उपचार का एक तरीका क्रोमोथेरेपी उभरा। हालांकि इसके कुछ समर्थक दावा करते हैं कि उपचार के लिए रंगीन प्रकाश का उपयोग प्राचीन मिस्र से शुरू हुआ था, लेकिन अब इसका सबूत मिलना मुश्किल है।

आधुनिक क्रोमोथेरेपी का श्रेय अमेरिका के चिकित्सक एडविन बैबिट (1828-1905) को जाता है। बैबिट की 1878 की किताब ‘द प्रिंसिपल्स ऑफ लाइट एंड कलर’ रंगीन रोशनी के प्रयोगों और उनके अपने दर्शन और दूरदर्शी अंतर्दृष्टि पर आधारित थी। यह अब भी छपती है।

बैबिट ने क्रोमोल्यूम नामक एक पोर्टेबल रंगीन कांच की खिड़की का आविष्कार किया, जिसे शरीर की प्राकृतिक रंगीन ऊर्जा के संतुलन को बहाल करने के लिए डिजाइन किया गया था। कहा जाता है कि खिड़की से आने वाली रंगीन रोशनी के नीचे निर्धारित समय तक बैठने से स्वास्थ्य ठीक हो जाता है।

भारतीय उद्यमी दिनशाह घडियाली (1873-1966) ने इसके बारे में पढ़ा, वह अमेरिका चले गये और 1920 में अपने उपकरण स्पेक्ट्रो-क्रोम का आविष्कार किया।

स्पेक्ट्रो-क्रोम के पीछे सिद्धांत यह था कि मानव शरीर चार तत्वों ऑक्सीजन (नीला), हाइड्रोजन (लाल), नाइट्रोजन (हरा) और कार्बन (पीला) से बना है। जब ये रंग असंतुलित हो जाते हैं, तो बीमारी होती है।

स्पेक्ट्रो-क्रोम के साथ कुछ घंटे लंबे सत्र संतुलन और स्वास्थ्य को बहाल करेंगे। उदाहरण के लिए, इसकी हरी रोशनी का उपयोग करके, आप कथित तौर पर अपनी पिट्यूटरी ग्रंथि की सहायता कर सकते हैं, जबकि पीली रोशनी आपके पाचन में मदद करती है।

1946 तक घडियाली ने अमेरिका में इस उपकरण की बिक्री से लगभग 10 लाख डॉलर कमाए थे।

और आज?

हालांकि इनमें से कुछ उपचार अजीब लगते हैं, लेकिन अब हम जानते हैं कि कुछ रंगीन रोशनी कुछ बीमारियों और विकारों का इलाज करती हैं।

नीली रोशनी वाली फोटोथेरेपी का उपयोग अस्पताल में पीलिया से पीड़ित नवजात शिशुओं के इलाज के लिए किया जाता है। मौसमी भावात्मक विकार (जिसे कभी-कभी सर्दियों के अवसाद के रूप में जाना जाता है) वाले लोगों का इलाज नियमित रूप से सफेद या नीली रोशनी के संपर्क में आने से किया जा सकता है। पराबैंगनी प्रकाश का उपयोग त्वचा की स्थितियों, जैसे कि सोरायसिस के इलाज के लिए किया जाता है।

आज, लाइट थेरेपी ने सौंदर्य उद्योग में भी अपनी जगह बना ली है। एलईडी फेस मास्क, मुंहासों से लड़ने और उम्र बढ़ने के संकेतों को कम करने का वादा करते हैं। लेकिन प्रकाश के सभी रूपों की तरह, इसके संपर्क में आने से जोखिम और लाभ दोनों होते हैं। इन एलईडी फेस मास्क के मामले में, वे आपकी नींद में खलल डाल सकते हैं।

(द कन्वरसेशन) आशीष अविनाश

अविनाश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)