Politics in country on martyrdom of soldiers and bravery of the army

The Big Picture With RKM : जवानों की शहादत और सेना के शौर्य पर बार-बार सवाल क्यों? ED की कार्रवाई पर साजिश का आरोप कितना सही?

जवानों की शहादत और सेना के शौर्य पर बार-बार सवाल क्यों? Politics in country on martyrdom of soldiers and bravery of the army

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Modified Date: May 7, 2024 / 12:21 AM IST
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Published Date: May 6, 2024 11:58 pm IST

रायपुरः कश्मीर घाटी में आतंकियों की कायराना करतूत से एक ओर जहां देश भर में आक्रोश का माहौल है। वहीं दूसरी ओर चुनावी सीजन में जवानों की शहादत पर सियासत शुरू हो गई है। विपक्ष इस पर सवाल उठा रहे हैं। जिस सेना के शौर्य पर पूरे देश को मान हैं, जिन जवानों पर हम सबको अभिमान है, उनके एक्शन पर बार-बार सवाल उठाना कितना सही है? आखिर जवानों के शहादत पर देश में सियासत क्यों होती है? चलिए समझते हैं..

मेरा मनाना है कि सुरक्षा बल के जवानों के एक्शन और उनके शहादत पर कभी भी राजनीति नहीं करनी चाहिए। देश की सेना सियासत से हमेशा ऊपर होनी चाहिए, क्योकि वे देश की सुरक्षा में लगे हुए। घर-परिवार के साथ-साथ अपना सबकुछ छोड़कर वे देश की सीमा पर डटे रहते हैं। उनके शौर्य और बलिदान पर जो राजनीति हो रही है, वह गलत है। जिस तरीके से पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और जालंधर लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी चरणजीत सिंह चन्नी का बयान आया वह गलत है। मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा के रहने वाले जवान की शहादत के बाद भी इसे स्टंटबाजी कहना गलत है। इसी तरीके की बात महाराष्ट्र से भी सामने आई। महाराष्ट्र के नेता प्रतिपक्ष विजय वडेतिवार सवाल उठा रहे हैं कि मुंबई आतंकी हमले में हेमंत करकरे को अजमल कसाब ने नहीं मारा है, बल्कि आरएसएस समर्थक एक पुलिसकर्मी ने उनकी हत्या की। जबकि हमारी पुलिस ने वहां पर मजबूती से लड़ा और जबांज सैनिक तुकाराम ओंबले ने अजमल कसाब को जिंदा पकड़ा और उनके बलिदान पर आप सवाल उठा रहे हैं। मैं खुद 6 साल मुंबई में रहा हूं, उस समय हेमंत करकरे एटीएस के चीफ थे। उनके जैसे अफसर बहुत कम होते हैं। उनकी शहादत पर इस तरीके से सवाल उठाएंगे तो बहुत ही गलत है।

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इसी तरह जम्मू-कश्मीर के नेता फारूक अब्दुल्ला का भी बयान सामने आया। उनका कहना है कि अगर राजनाथ सिंह और एस जयशंकर यह कह रहे हैं कि पीओके हमारा है तो पाकिस्तानियों ने भी चुड़ियां नहीं पहनी है। उनके पास एटम बम है। भई यह तो पीओके को लेकर भारत के पार्लियामेंट में रेजोल्यूशन पास है। पीओके हमारा था, पीओके हमारा है और रहेगा। इस तरीके से बात नहीं बोलना चाहिए। वरिष्ठ नेता होने के बाद भी पाकिस्तानियों की भाषा में बात करना उचित नहीं है। कुछ चीज देश के लिए होती है और राजनीति से ऊपर होती है, उसमें किसी भी नेता को इस तरीके का बयान नहीं देना चाहिए।

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ईडी की कार्रवाई पर सवाल कितना सही?

सेना की तरह ही अब देश में ईडी की कार्रवाई को लेकर जमकर सियासत हो रही है। ईडी की कार्रवाई को लेकर साजिश के आरोप लगते हैं। दरअसल, मोदी और उनकी सरकार की भ्रष्टाचार के खिलाफ सतत लड़ाई चल रही है। आपको याद होगा कि 2014 के चुनाव में भाजपा लगातार भ्रष्ट्राचार के मुद्दें को उठा रही थी। 2G स्पेट्रम, कॉमनवेल्थ जैसे घोटालों को लेकर मनमोहन सरकार को घेर रही थी। वर्तमान में भी प्रधानमंत्री मोदी को कई बार यह कहते हुए सुना जा सकता है कि वह भ्रष्टाचारियों को चैन से रहने नहीं देंगे। इसलिए उनको गाली मिलती है। झारखंड में मंत्री के पीए के नौकर के घर भारी मात्रा में कैश बरामद होना कई सवालों को जन्म देता है। यह तो मान ही सकते हैं कि यह किसका पैसा होगा। लोकसभा चुनाव के मंत्री के पीए के नौकर के घर से भारी मात्रा में कैश बरामद होने से भाजपा को एक और मुद्दा मिल गया कि हम भ्रष्टाचार की लड़ाई लड़ रहे हैं और लगातार कार्रवाई कर रहे हैं। विपक्ष के लोगों के घर से लगातार कैश बरामद हो रहे हैं। यदि आप साबित कर लेते हैं कि कैश कहां से मिला है तो यह अपराध नहीं है, लेकिन इतनी बड़ी मात्रा में कैश मिलने से लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि यह मंत्री कितना भ्रष्टाचारी है। कुल मिलाकर मोदी को एक और मुद्दा मिल गया कि हम भ्रष्टाचारियों के खिलाफ लगातार लड़ रहे हैं।

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