भाषाई सांप्रदायिकता के खिलाफ भी एक लड़ाई होनी चाहिए: अब्‍दुल बिस्मिल्‍लाह |

भाषाई सांप्रदायिकता के खिलाफ भी एक लड़ाई होनी चाहिए: अब्‍दुल बिस्मिल्‍लाह

भाषाई सांप्रदायिकता के खिलाफ भी एक लड़ाई होनी चाहिए: अब्‍दुल बिस्मिल्‍लाह

:   Modified Date:  September 15, 2024 / 12:26 AM IST, Published Date : September 15, 2024/12:26 am IST

लखनऊ, 14 सितंबर (भाषा) मशहूर उपन्यासकार प्रोफेसर अब्‍दुल बिस्मिल्‍लाह ने शनिवार को कहा कि भाषाई सांप्रदायिकता के खिलाफ भी एक लड़ाई होनी चाहिए।

वह यहां समाजवादी पार्टी (सपा) के उत्तर प्रदेश मुख्यालय डॉ राम मनोहर लोहिया सभागार में हिन्दी दिवस के मौके पर आयोजित साहित्यकारों के सम्मान समारोह को संबोधित कर रहे थे।

सपा मुख्यालय से जारी एक बयान के अनुसार पार्टी ने शनिवार को यहां हिंदी दिवस के मौके पर वरिष्ठ साहित्यकारों, लेखकों एवं समाजसेवियों का अभिनंदन किय। सपा प्रमुख एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शाल ओढ़ाकर सभी को सम्मानित किया।

हिन्दी दिवस पर अखिलेश यादव द्वारा उदय प्रताप सिंह, प्रो अब्दुल बिस्मिल्लाह, वीरेन्द्र यादव, सूर्य कुमार पाण्डेय, प्रमोद त्यागी, दीपक कबीर, प्रो रमेश दीक्षित, वंदना मिश्रा, हिमांशु शर्मा, नीरज यादव, संजीव जायसवाल, कादिर राणा, अर्चना दीक्षित, राकेश कुमार, मुकेश दर्पण, आयुष यादव, मणेन्द्र मिश्रा, संजीव यादव, संदीप यादव, जयशंकर पांडेय आदि को सम्मानित किया गया।

प्रो. अब्दुल बिस्मिल्लाह ने कहा कि भाषाई साम्प्रायिकता के खिलाफ भी लड़ाई होनी चाहिए।

उन्‍होंने कहा कि हिन्दू-उर्दू को हिन्दू-मुस्लिम की भाषा बताकर अंग्रेजों ने भ्रम फैलाया और बाद में उससे रोटियां सिंकने लगी हैं।

उन्होंने दावा किया कि हिंदी और उर्दू में कोई भेद नहीं है।

प्रोफेसर बिस्मिल्‍लाह ने कहा कि ”यह सम्मान साझी संस्कृति के लिए है अतः विशिष्ट है।”

प्रोफेसर बिस्मिल्लाह की पहली कृति ‘झीनी-झीनी बीनी चदरिया‘ कथा साहित्य की मील का पत्थर मानी जाती है।

पूर्व सांसद एवं कवि उदय प्रताप ने कहा, ”अंग्रेजों ने जो भाषाई साम्प्रदायिकता पैदा की थी वह आज भी चल रही है। हिन्दी, उर्दू मिलाकर हिन्दुस्तानी बनाने का समर्थन गांधीजी, मौलाना आजाद ने भी किया था। दुनिया की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में हिन्दी भी है।”

साहित्यकार प्रसिद्ध आलोचक वीरेंद्र यादव ने अपने संबोधन में कहा, ”समाजवादी आंदोलन और हिन्दी का गहरा रिश्ता रहा है। डॉ. राम मनोहर लोहिया ने आजाद भारत में अंग्रेजी के वर्चस्व को हटाने के लिए आंदोलन शुरू किया था।”

उन्‍होंने कहा कि अंग्रेजी की गुलामी आज भी नहीं गई है।

उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव ने पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्‍पसंख्‍यक) का जो नारा दिया है वह डॉ0 राममनोहर लोहिया की वैचारिकी से जुड़ता है।

भाषा आनन्द राजकुमार

राजकुमार

 

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