प्रयागराज: Allahabad HC on Rape case इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दुष्कर्म के एक आरोपी को चिकित्सा न्यायशास्त्र के आधार पर जमानत दे दी है। अपीलकर्ता पर आरोप है कि उसने पीड़िता के रुमाल को क्लोरोफॉर्म में भिगोकर उसे अचेत कर दिया और उसके साथ दुष्कर्म किया। अदालत ने चिकित्सा न्यायशास्त्र को आधार बनाते हुए कहा कि एक अनुभवहीन व्यक्ति के लिए बिना बाधा के एक सोते हुए व्यक्ति को बेहोश करना संभव नहीं है।
Allahabad HC on Rape case उच्च न्यायालय ने कहा कि समाचार पत्रों में अक्सर यह रिपोर्ट छपती है कि एक महिला को क्लोरोफॉर्म सुंघाकर बेहोश करने के बाद उसके साथ दुष्कर्म किया गया, जोकि विश्वास करने लायक नहीं है। न्यायमूर्ति कृष्ण पहल ने चिकित्सा न्यायशास्त्र एवं विष विज्ञान का हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि “एक महिला जब होश में हो तो उसकी इच्छा के बगैर उसे चेतनाशून्य करना असंभव है।”
याचिकाकर्ता रवीन्द्र सिंह राठौर पर आरोप है कि उसने 2022 में एक फर्जी शादी करने के बाद शिकायतकर्ता महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाए। राठौर ने कथित तौर पर यह तथ्य छिपाया कि पहली पत्नी से उसके दो बच्चे हैं। शिकायतकर्ता महिला का दावा है कि राठौर ने क्लोरोफॉर्म का उपयोग कर उसे बेहोश किया, दुष्कर्म किया और इसका वीडियो बनाने के बाद इसे वायरल करने की धमकी दी।
अदालत ने सतेन्दर कुमार अंतिल बनाम केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो(सीबीआई) के मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय का हवाला देते हुए “जब तक दोषी साबित ना हो जाए, तब तक निर्दोष रहने का अनुमान लगाना” के सिद्धांत पर जोर दिया। अदालत ने बृहस्पतिवार को आरोपी की जमानत मंजूर करते हुए कहा कि जब तक तर्कसम्मत संदेह से परे दोष साबित नहीं हो जाता, महज आरोप के आधार पर एक व्यक्ति के जीवन जीने और आजादी के अधिकार (संविधान के अनुच्छेद 21) को छीना नहीं जा सकता।
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