(किशोर द्विवेदी)
लखनऊ, तीन नवंबर (भाषा) साइबर ठगों ने हाल ही में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में एक सेवानिवृत्त बैंकर और उनकी पत्नी को पांच दिनों तक ‘डिजिटल अरेस्ट’ में रखा। ठगों ने बुजुर्ग दंपति को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का अधिकारी बनकर एक करोड़ रुपये से अधिक की रकम अंतरित करने के लिए मजबूर किया था।
इसी साल अगस्त में ऐसी ही एक अन्य घटना में लखनऊ के संजय गांधी परास्नातक आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने 2.81 करोड़ रुपये गंवा दिये थे। राज्य के नोएडा और वाराणसी समेत अन्य कई स्थानों से भी ऐसे अपराधों की कई खबरें सामने आई हैं।
साइबर अपराध, विशेष रूप से ‘डिजिटल अरेस्ट’ और निवेश या रोजगार के बहाने वित्तीय धोखाधड़ी की घटनाएं कोविड-19 महामारी के बाद से बढ़ गयी हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी ‘मन की बात’ की अपनी हालिया कड़ी में नागरिकों को इन खतरों के बारे में आगाह किया था।
विषय विशेषज्ञ बताते हैं कि ‘डिजिटल अरेस्ट’ के मामले में साइबर अपराधी अक्सर फोन पर या ऑनलाइन संचार के माध्यम से किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का झूठा दावा करते हैं।
इस तरह से ठगी करने वाले लोग खुद को विनियामक अधिकारियों के रूप में पेश करते हैं और अपने शिकार व्यक्ति को अवैध गतिविधियों में लिप्त बताकर धमकाते हैं। बाद में वे उनसे बताये गये बैंक खातों में धन डालने या व्यक्तिगत जानकारी देने के लिए मजबूर करते हैं।
साइबर ठगों के शिकार हुए एसजीपीजीआई के डॉक्टर ने कहा, ‘‘मुझे कॉल करने वालों ने बताया कि वे सीबीआई से हैं और मेरा नाम धन शोधन और मानव तस्करी में सामने आया है। इसके लिए मुझे गिरफ्तार किया जाएगा। उन्होंने कहा कि वे मुझे गिरफ्तारी से बचाने के लिए डिजिटल अरेस्ट में रखेंगे और मेरे दस्तावेजों की ऑनलाइन जांच करेंगे।’’
धोखाधड़ी में दो करोड़ 81 लाख रुपये गंवाने वाले लखनऊ के डॉक्टर ने अपनी शिकायत में कहा, ‘‘मुझे इसके बारे में किसी को भी कुछ नहीं बताने के लिए कहा गया क्योंकि उनके मुताबिक यह राष्ट्रीय महत्व का मामला था।’’
संस्था फ्यूचर क्राइम रिसर्च फाउंडेशन (एफसीआरएफ) द्वारा संकलित पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक जनवरी 2022 से अगस्त 2024 के बीच राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (एनसीआरपी) द्वारा 38.85 लाख से अधिक कॉल दर्ज की गईं, जिनमें से 6.05 लाख (15.7 प्रतिशत) से अधिक उत्तर प्रदेश से आईं। इनमें से 84.53 प्रतिशत कॉल वित्तीय धोखाधड़ी से संबंधित थीं। यह 3,153 करोड़ रुपये की ठगी से जुड़ी थीं, जबकि राष्ट्रव्यापी आंकड़ों के मुताबिक देश में 19,860 करोड़ रुपये की साइबर ठगी के मामले हो चुके हैं।
भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी और साइबर अपराध विशेषज्ञ त्रिवेणी सिंह ने बताया कि ‘डिजिटल अरेस्ट’ करने वाले अपराधी भारत, पाकिस्तान, कम्बोडिया, म्यांमा और लाओस से फर्जी कॉल सेंटर से काम करते हैं।
पूर्व में प्रदेश में साइबर अपराध शाखा के अधीक्षक रहे सिंह ने कहा, ‘‘गिरोह कॉल सेंटर में नौकरी देने की आड़ में अनजान व्यक्तियों की भर्ती करते हैं और उन्हें साइबर अपराध के लिए मजबूर करते हैं। ये अपराधी आमतौर पर ईडी या सीबीआई से होने का दावा करते हैं और आरोप लगाते हैं कि पीड़ित के व्यक्तिगत विवरण ड्रग तस्करी या धन शोधन जैसी अवैध गतिविधियों से जुड़े हैं।’’
उन्होंने बताया कि कुछ मामलों में पीड़ितों पर पोर्नोग्राफी (अश्लील वीडियो) देखने का झूठा आरोप लगाया जाता है, जिससे वे घबरा जाते हैं और ठगों के झांसे में आ जाते हैं।
सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि भारत या कहीं और ‘डिजिटल अरेस्ट’ का कोई कानूनी आधार नहीं है। अगर कोई किसी को स्काइप या किसी अन्य सोशल मीडिया के माध्यम से गिरफ्तारी की धमकी देता है, तो उसे धोखेबाज समझें।
सिंह ने चुनौतियों का जिक्र करते हुए कहा कि धोखाधड़ी वाले ज्यादातर कॉल व्हाट्सएप जैसे मैसेजिंग ऐप के जरिये वीओआईपी के माध्यम से किए जाते हैं। इससे यह पता लगाना मुश्किल होता है कि कॉल कहां से की जा रही है। ऐसा इसलिये, क्योंकि उन प्लेटफॉर्म से डेटा प्राप्त करना मुश्किल होता है जिनके सर्वर भारत के बाहर होते हैं। साइबर अपराधों की बढ़ती संख्या के कारण पुलिस के लिए त्वरित कदम उठाना मुश्किल हो जाता है और जब तक सूचना एकत्र की जाती है, तब तक पैसा अक्सर कई खातों में चला जाता है या क्रिप्टोकरेंसी में बदल जाता है।
पुलिस अधीक्षक (साइबर अपराध) राजेश कुमार यादव ने जन जागरूकता की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि वित्तीय धोखाधड़ी के मामलों में वृद्धि हुई है लेकिन ‘डिजिटल अरेस्ट’ की रिपोर्ट की गई घटनाएं अपेक्षाकृत कम हैं। कुल मिलाकर ऐसे लगभग 10 मामले सामने आये हैं।
उन्होंने कहा कि साइबर अपराधों की रिपोर्ट करने के लिए प्रदेश में एक मजबूत कॉल सेंटर प्रणाली है। वेबसाइट पर भी साइबर धोखाधड़ी की तत्काल रिपोर्ट की जा सकती है जिससे त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित होती है।
यादव ने बताया कि पीड़ितों की भूमिका महत्वपूर्ण है। जितनी जल्दी लोग धोखाधड़ी को पहचानते हैं और इसकी रिपोर्ट करते हैं उनकी खोई हुई धनराशि वापस पाने की संभावना उतनी ही बेहतर होती है।
उन्होंने कहा कि लोग लालच या डर की वजह से साइबर ठगों के जाल में फंस जाते हैं। लालच अक्सर निवेश या घर से काम करने के अवसरों के माध्यम से आसानी से पैसे कमाने के वादे करके दिया जाता है। इसके अलावा ठग किसी अपराध में संलिप्तता के आरोप के जरिये डराकर अपने शिकार को फंसा लेते हैं।
सिंह और यादव दोनों ने ही इस बात पर जोर दिया कि कोई भी वैध कानून प्रवर्तन जांच की प्रक्रिया ऑनलाइन या वीडियो कॉल के माध्यम से नहीं होती है।
यादव ने कहा, ‘‘हालांकि, साइबर अपराधी लगातार नए तरीके ईजाद करते रहते हैं। मगर इन अपराधों से निपटने के लिए नागरिकों में जागरूकता बढ़ाना जरूरी है।’’
उन्होंने कहा कि केंद्रीय गृह मंत्रालय धोखाधड़ी के इन तरीकों के बारे में जानकारी प्रसारित करने के लिए ‘साइबर दोस्त’ नामक एक सोशल मीडिया चैनल संचालित करता है। इसके अलावा मंत्रालय अपनी विशेष एजेंसी ‘इंडियन साइबर क्राइम कोआर्डिनेशन सिस्टम’ के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों के साइबर कर्मियों की क्षमताओं को बढ़ाने के लिए नियमित रूप से प्रशिक्षण सत्र आयोजित करता है।
भाषा किशोर सलीम शोभना आशीष
आशीष
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