नईदिल्ली। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वेक्षण NFHS के ताजा आंकड़ों में इसबार उत्तर प्रदेश को लेकर भी कई सकारात्मक तथ्य सामने आए हैं। यूपी की साक्षरता, लैंगिक अनुपात, बच्चों के स्कूल जाने से जुड़े आंकड़े या स्वास्थ्य संबंधी तथ्य प्रदेश की प्रगति को दिखाने वाले हैं। वहीं, जनसंख्या नियंत्रण को लेकर किए जाने वाले उपायों के आंकड़ों में भी बढ़ोतरी हुई है, लेकिन पुरुष बंध्याकरण का डेटा आज भी कमजोर है।
सर्वे के आंकड़ों पर गौर करें तो यूपी के पुरुष आज भी नसबंदी कराने से हिचकते हैं, पुरुषों की ‘मर्दानगी’ बचाने की यही सोच महिलाओं को परेशान करती है। हालांकि परिवार नियोजन के लिए नसबंदी कराने के कुल आंकड़ों में कमी आई है, लेकिन गांवों में इसके प्रति रुझान में वृद्धि हुई है।
NFHS report 2021: के मुताबिक 2015-16 के मुकाबले यूपी में परिवार नियोजन के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ी है, 5 साल पहले के सर्वेक्षण में जहां उत्तर प्रदेश में परिवार नियोजन का कोई भी तरीका इस्तेमाल कराने वालों की संख्या 45.5% थी, वहीं 2020-12 में यह बढ़कर 62.4% हो गई है। नियोजन के लिए आधुनिक तरीका इस्तेमाल करने वालों की संख्या भी बढ़ी है।
5 साल पहले 31.7 फीसदी के मुकाबले इस बार के सर्वे में पता चला है कि 44.5 प्रतिशत लोग परिवार नियोजन के लिए आधुनिक तरीके अपना रहे हैं। परिवार नियोजन के लिए नसबंदी कराने के आंकड़ों पर गौर करें तो आज भी प्रदेश में पुरुष काफी पीछे हैं, नसबंदी कराने में महिलाएं आगे हैं।
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परिवार में कम बच्चे हों, इसके लिए महिलाएं ज्यादा सोचती हैं, हालांकि 2015-16 के मुकाबले महिलाओं की नसबंदी के आंकड़ों में एक फीसदी की कमी आई है, लेकिन पुरुष अब भी ‘लकीर के फकीर’ बने हुए हैं। NFHS की रिपोर्ट पर गौर करें तो 5 साल पहले महिलाओं की नसबंदी का आंकड़ा जहां 17.3 फीसदी था, वहीं यह अब 16.9 फीसद रह गया है, इनमें भी ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं नसबंदी कराने में शहरी औरतों से आगे हैं।
शहरों में 13.5 और गांवों में 18 फीसदी महिलाएं नसबंदी करा रही हैं। पुरुषों के आंकड़े पर गौर करें तो यह चिंतित करने वाला है, पुरुष नसबंदी के आंकड़ों में पिछले 5 साल के दौरान कोई बदलाव नहीं आया है, यह तब भी 0.1 प्रतिशत था, अब भी इसी दर्जे पर बना हुआ है।
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