उप्र विधानसभा-विधान परिषद के 20 फीसदी पदों पर रिश्तेदारों की भर्ती की खबर पर भाजपा आरोपों में घिरी |

उप्र विधानसभा-विधान परिषद के 20 फीसदी पदों पर रिश्तेदारों की भर्ती की खबर पर भाजपा आरोपों में घिरी

उप्र विधानसभा-विधान परिषद के 20 फीसदी पदों पर रिश्तेदारों की भर्ती की खबर पर भाजपा आरोपों में घिरी

:   Modified Date:  November 15, 2024 / 05:43 PM IST, Published Date : November 15, 2024/5:43 pm IST

लखनऊ, 15 नवंबर (भाषा) उत्तर प्रदेश विधानसभा और विधान परिषद के रिक्त पदों में से पांचवां हिस्सा अधिक महत्वपूर्ण व्यक्तियों (वीआईपी) के रिश्तेदारों से भरे जाने की खबर के एक प्रमुख अंग्रेजी दैनिक में प्रकाशित होने के बाद विपक्षी दलों ने भाजपा पर ‘परिवारवाद’ का आरोप लगाया है। यह एक ऐसा आरोप है जिसे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अक्सर विपक्ष पर लगाती रही है।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ समाचार पत्र द्वारा किए गए खुलासे के अनुसार, समीक्षा अधिकारी (आरओ) और सहायक समीक्षा अधिकारी (एआरओ) के पदों के लिए 186 रिक्तियों में से 38 पदों पर चयनित उम्मीदवारों के अधिकारियों और राजनेताओं से संबंध थे।

अनुमानित तौर पर 2.5 लाख उम्मीदवारों ने इस पद के लिए आवेदन किया था जिसकी परीक्षा 2020-2021 में उप्र विधानसभा और उप्र विधान परिषद में प्रशासनिक पदों को भरने के लिए दो दौर में आयोजित की गई थी।

अखबार की खबर में दावा किया गया है कि सफल अभ्यर्थियों की सूची में जगह बनाने वालों में तत्कालीन उप्र विधानसभा अध्यक्ष के पीआरओ (जनसंपर्क अधिकारी) और उनके भाई, एक पूर्व मंत्री के भतीजे, विधान परिषद सचिवालय प्रभारी के बेटे, विधान सभा सचिवालय प्रभारी के चार रिश्तेदार, उप लोकायुक्त के बेटे, विधायी कार्य विभाग के प्रभारी के बेटे और बेटी, दो मुख्यमंत्रियों के पूर्व ओएसडी (विशेष कार्यधिकारी) के बेटे शामिल हैं।

संपर्क करने पर उप्र विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘यह मामला अदालत में लंबित है और इसलिए मेरे लिए इस पर टिप्पणी करना उचित नहीं होगा।’’

उप्र विधानसभा के प्रमुख सचिव प्रदीप दुबे से बार-बार प्रयास करने के बावजूद टिप्पणी के लिए संपर्क नहीं किया जा सका।

समाजवादी पार्टी के उप्र विधान परिषद के सदस्य (एमएलसी) आशुतोष सिन्हा ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मामला अदालत में लंबित है और यह सब जांच का विषय है। लेकिन, ऐसा लगता है कि भाजपा चुनाव के दौरान टिकट वितरण या नौकरियों के लिए उम्मीदवारों का चयन करते समय ‘परिवारवाद’ (वंशवाद की राजनीति) में लिप्त है।’’

उप्र कांग्रेस के नेता अशोक सिंह ने कहा, ‘‘मामला अदालत में लंबित है और इसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। सभी दोषियों की पहचान कर उन्हें उचित सजा मिलनी चाहिए।’’

राष्ट्रीय किसान मंच के अध्यक्ष शेखर दीक्षित ने इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘ऐसा लगता है कि केवल 20 से 25 प्रतिशत गलत काम ही पकड़े गए हैं। यह उम्मीदवारों, लोगों और पूरे समाज के साथ स्पष्ट धोखा है। यह निश्चित रूप से देश के लिए फायदेमंद नहीं है।’’

उप्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्षा और उप्र विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष माता प्रसाद पांडे (सपा) ने कहा, ‘‘जब तक मैं (स्वयं) इस मुद्दे की जांच नहीं करता, तब तक मैं इस मुद्दे पर कैसे टिप्पणी कर सकता हूं। यह एक ऐसा मामला है, जो विधानसभा और विधान परिषद से संबंधित है, जिस पर ज्यादा टिप्पणी नहीं की जा सकती। मैं पता लगाऊंगा और जो भी उचित होगा, बोलूंगा।’’

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने सितंबर 2023 में उत्तर प्रदेश विधानसभा और विधान परिषद के लिए कर्मचारियों की भर्ती के लिए आयोजित परीक्षाओं की निष्पक्षता पर संदेह जताया और सीबीआई को जांच करने का निर्देश दिया।

न्यायमूर्ति ए आर मसूदी और न्यायमूर्ति ओ पी शुक्ला की पीठ ने 18 सितंबर, 2023 को दिये आदेश में सीबीआई से प्रारंभिक जांच करने को कहा ताकि पता लगाया जा सके कि भर्ती प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी हुई है या नहीं। अदालत ने नवंबर के पहले सप्ताह तक रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा था।

पीठ एक विशेष अपील और एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो दो विधायी निकायों में 2022-23 में कर्मचारियों की भर्ती को चुनौती देने से संबंधित थी।

अदालत इस बात से चिंतित थी कि 2022-23 में कर्मचारियों की भर्ती करने से पहले 2019 में भर्ती एजेंसी क्यों बदली गई, जब उप्र लोक सेवा आयोग और उप्र अधीनस्थ सेवा चयन आयोग पहले से ही उपलब्ध थे।

पीठ ने उक्त भर्ती से संबंधित कुछ मूल अभिलेख का भी उल्लेख किया और अपने वरिष्ठ रजिस्ट्रार को प्रारंभिक जांच में सुविधा के लिए अभिलेखों की फोटोकॉपी सीबीआई को उपलब्ध कराने को कहा।

सुनवाई के दौरान पीठ ने पाया कि इस बात पर गंभीर संदेह है कि भर्ती एजेंसी का चयन निष्पक्ष तरीके से किया गया था।

अपने आदेश में पीठ ने कहा था, ‘‘भर्ती के लिए चुनी गई एजेंसी के संबंध में कंपनी के मास्टर डेटा की जांच करने पर, हमें कुछ ऐसे अस्पष्ट विवरण मिले, जो प्रथम दृष्टया, वर्तमान मामले में बाहरी एजेंसी की पहचान के संबंध में एक निष्पक्ष एजेंसी द्वारा प्रारंभिक जांच के लिए न्यायालय को संतुष्ट करते हैं। हमारा दृढ़ विचार है कि सार्वजनिक सेवा में भर्ती के कार्य में निष्पक्षता की कसौटी पर समझौता नहीं किया जा सकता।’’

इस बीच, उच्चतम न्यायालय ने 14 अक्टूबर, 2023 को उप्र विधानसभा और विधान परिषद के सचिवालयों में कर्मचारियों की नियुक्तियों में कथित अनियमितताओं की सीबीआई जांच के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के आदेश पर रोक लगा दी थी। अगली सुनवाई छह जनवरी, 2025 को निर्धारित है।

भाषा अरूणव जफर मनीष

संतोष

संतोष

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)