मथुरा (उप्र), तीन दिसम्बर (भाषा) उत्तर प्रदेश के राज्य पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग के तत्वावधान में भारतीय मुद्रा परिषद का 106 वां वार्षिक सम्मेलन मंगलवार को यहां पांचजन्य सभागार में शुरु हुआ।
इस तीन दिवसीय सम्मेलन में देश भर से आए मुद्रा विशेषज्ञ बृहस्पतिवार तक विभिन्न सत्रों में सिक्कों के इतिहास पर अपने शोध पत्र प्रस्तुत करेंगे।
कार्यक्रम की शुरुआत उप्र राज्य पुरातत्व विभाग की निदेशक रेनू द्विवेदी ने की।
इस मौके पर विशिष्ट अतिथि के रूप में राष्ट्रीय संग्रहालय के महानिदेशक एवं विरासत संस्थान (नोएडा) के कुलपति प्रो. बी आर मणि तथा भारत सरकार से पद्मश्री से सम्मानित ब्रज संस्कृति सेवी मोहन स्वरूप भाटिया उपस्थित रहे।
भारतीय मुद्रा परिषद के अध्यक्ष डी. राजा रेड्डी ने सम्मेलन की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने इतिहास लेखन में मुद्राओं के महत्व पर बल देते हुए कहा कि मुद्राओं के अध्ययन से अनेक अनसुलझे ऐतिहासिक प्रश्नों का उत्तर मिलता है।
भारतीय मुद्रा परिषद के संयुक्त सचिव डॉ. अमित उपाध्याय ने परिषद का वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया।
इस मौके पर भारतीय मुद्रा परिषद की वार्षिक पत्रिका एवं स्मारिका का विमोचन किया गया। उप्र राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा सभी अतिथियों को विभाग की ओर से स्मृति चिन्ह भेंट किए गए।
उद्घाटन सत्र के पश्चात सम्मेलन के प्रथम सत्र में ऑस्ट्रेलिया के प्रो. ओसमंड बोपेराची ने अब तक अप्रकाशित हिन्द-यवन एवं कुषाण सिक्कों पर प्रकाश डाला।
दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो. विजयलक्ष्मी सिंह ने सलाह दी कि इतिहास को पूरी तरह से जानने के लिए मौर्य काल के पूर्ववर्ती सिक्कों को भी पढ़ने तथा समझने का प्रयास किया जाना चाहिए।
प्रो. सुष्मिता बसु मजूमदार ने मुद्रा शास्त्र के पुनरावलोकन के आधार पर कोशल क्षेत्र के प्रारंभिक इतिहास को पुनर्परिभाषित करने का प्रयास किया। उन्होंने बताया कि नवीन मुद्राशास्त्र के साक्ष्य कोशल महाजनपद के इतिहास के नवीन आयामों को उद्घाटित कर रहे हैं।
भाषा सं आनन्द
राजकुमार
राजकुमार
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