Supreme Court on marriage in Arya Samaj : नई दिल्ली। मध्यप्रदेश में आर्य समाज मंदिर में शादी करने वालों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। ऐसी शादियों के सर्टिफिकेट जारी करने पर रोक लगाने के ग्वालियर हाईकोर्ट के फैसले पर सर्वोच्च न्यायालय ने स्टे लगा दिया है। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि आर्य समाज मंदिर में होने वाली शादियों पर भी स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के प्रावधान लागू होने चाहिए। इन नियम-शर्तों का पालन किए बिना आर्य समाज मंदिर को शादी का सर्टिफिकेट जारी करने का अधिकार नहीं है। शादी के सर्टिफिकेट सिर्फ सक्षम अथॉरिटी ही जारी कर सकती है।
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Supreme Court on marriage in Arya Samaj : आर्य समाजी शादियां 1937 में बने आर्य मैरिज वैलिडेशन एक्ट और हिंदू मैरिज एक्ट 1955 से रेग्युलेट होती हैं। यहां कोई भी लंबी कानूनी प्रक्रिया के बजाए आसानी से शादी कर सकता है। इसके लिए वर-वधू दोनों का हिंदू होना भी जरूरी नहीं है। कोई एक पक्ष हिंदू होना चाहिए। आर्य समाज में इंटर कास्ट मैरिज भी होती हैं। इसके उलट स्पेशल मैरिज एक्ट किन्हीं दो धर्मों के लोगों की शादियों पर लागू होता है। यहां शादी रजिस्टर कराने के लिए पहले नोटिस जारी करने, मैरिज नोटबुक में दर्ज करने, उस नोटिस पर आपत्तियां लेने और संतुष्टि के बाद ही सक्षम अधिकारी द्वार मैरिज सर्टिफिकेट जारी करने का प्रावधान है। इसमें लंबा समय लगता है।
खबर के मुताबिक, पिछले साल 17 दिसंबर को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने आर्य समाज मंदिर में होने वाली शादियों में भी स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा 5 से 8 तक को लागू करने के आदेश दिए थे। हाईकोर्ट ने ये आदेश आर्य समाज मंदिर में दिसंबर 2019 में शादी करने वाले एक कपल की सुरक्षा की गुहार लगाने वाली याचिका पर दिया था।
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सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान ने दलील रखते हुए कहा कि हाईकोर्ट का आदेश आर्य समाजियों के धार्मिक स्वतंत्रता और समानता के मौलिक अधिकारों में दखल की तरह है। हाईकोर्ट ने शादियों पर रोक लगाने का आदेश जारी करते समय अपनी ही कोर्ट के उस आदेश पर ध्यान नहीं दिया, जिसमें आर्य समाजी शादियों पर रोक के सिंगल बेंच के फैसले को स्टे कर दिया गया था। सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस केएम जोसेफ और ऋषिकेश रॉय की बेंच ने ग्वालियर हाईकोर्ट के फैसले को स्टे कर दिया और मध्यप्रदेश सरकार को नोटिस जारी करके जवाब देने के लिए कहा है।
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मध्यभारत आर्य प्रतिनिधि सभा ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए कहा कि आर्य समाज की स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती ने की थी। इसके तहत एक सदी से ज्यादा समय से शादियां कराई जा रही हैं, जब हिंदू पर्सनल लॉ अस्तित्व में भी नहीं आया था। उसकी तरफ से कहा गया कि वैसे तो एमपी हाईकोर्ट का आदेश सिर्फ उसी राज्य तक सीमित है, लेकिन इसके देश भर में आर्य समाजी शादियों पर असर पड़ने का खतरा है।