दुर्ग, छत्तीसगढ़। कोरोना से बचाव के लिए जहा केंद्र और राज्य सरकार लोगों को लॉकडाउन का पालन करते हुए घरों में रहने के लिए कड़े कदम उठा रही है, वहीं दुर्ग जिले के सैकड़ों गांव कोरोना से जंग में मिसाल साबित हो रहे है। ग्रामीण शहर के पढ़े लिखे लोगों से कहीं आगे आकर देश में फैली महामारी से लड़ने सरकार के नियमों से आगे बढ़कर ग्रामीण नियमों को कड़ाई से पालन कर रहे है।
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गांव का नागरिक गांव से बाहर नहीं जाएगा वहीं गांव में बाहर का कोई भी व्यक्ति चाहे वो मेहमान ही क्यों ना हो अन्दर नहीं आएगा। भीतर सिर्फ सरकारी अधिकारी,स्वास्थ्य सेवाओं और पुलिस को ही इजाजत है। बहुत आवश्यक होने पर जाने वालो को कारण बताना पड़ रहा है जिसे पंच और सरपंच के आदेश के बाद ही आने जाने की छूट प्रदान की जा रही है। दुर्ग जिले के तीनो ब्लॉक दुर्ग धमधा और पाटन में ग्राम पंचायतो ने सरकार के लॉकडाउन के आदेश के बाद से ही अपना खुद का नियम ग्रामीणों की सहमति से बना लिया।
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गांव के भीतर आने जाने पर रोक लागा दी है। दुर्ग जिले के ग्राम पंचायत पीपरछेड़ी में लॉकडाउन के बाद से ही गांव के शुरुआत पर आने जाने वाले मुख्य मार्ग पर बैरिकेट्स लगा दिया गया है जो लॉकडाउन के दिन तक ऐसे ही रहेगा। वहीं सड़क के किनारे आने जाने के लिए छोड़े गए हिस्से में एक टेंट लगा दिया गया है जिसमें 24 घंटे ग्रामीण अपने निर्णय अनुसार 4 से 5 लोगो की बारी बारी ड्यूटी निर्धारित की गई है जो चार चार घंटे की रहती है।
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गांव से जरुरी काम से आने जाने पर ही छूट दी जा रही है। वह भी एक रजिस्टर में एंट्री होता है जिसमे जाने और आने का समय व्यक्ति किस काम से जा रहा है उसका उल्लेख है। वहीं कृषि मजदूरी कार्य और खाद्य सामग्रियों के दुकानदारों को छूट है। गांव के भीतर आने से पहले बैरिकेट्स पर एक ग्रामीण आने वाले के हाथों को सेनेटाइजर से साफ़ करवाता है तभी भीतर जाने दिया जा रहा है वही सभी को नाक और मुह ढंके रहना है।
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सेनिटाइजर का इंतजाम ग्रामीणों ने चंदा इकठ्ठा करके किया है। ग्रामीणों ने जगह जगह कोरोना वायरस के खतरे से बचाव के निर्देश लिखे हुए हैं। वहीं गांव में सभी को घर के भीतर रहने लगातार कोटवार के जरिये मुनादी करवाई जा रही है। किसी को इस लॉकडाउन में कोई समस्या तो नहीं इसका भी ध्यान रखा जा रहा है सरपंच सहित पंच ग्रामीणों के घरो में सोशल डिस्टेंस का पालन करते हुए पूछताछ करने जा रहे है। ये इस बात का सबूत है की वाकई नियमों का कठोरता से पालन तो ग्रामीण ही करते हैं। कोरोना से जंग में सिर्फ घरों पर ही रहकार इससे बचा और लड़ा जा सकता है इस बात को ग्रामीणों ने भली भांति समझ लिया अब शहर के लोगों को भी इस बात को जल्द समझ जाना चाहिए जो बेवजह इधर उधर घूमकर अपनी और अपने परिजनों के साथ समाज की जान को खतरे में डाल रहे हैं।